पर्यावरण प्रदूषण , औषधीय वनस्पतियॉं और बीमारियाँ

कोरोना वायरस से हम कैसे लड़ें!

हिमांशु जोशी
हिमांशु जोशी

भारत में कोरोना की दूसरी लहर चल रही है, देश की स्वास्थ्य सेवाएं ध्वस्त हो चुकी हैं और तीसरी लहर का अनुमान भी लगाया जा रहा है। तड़पते कोरोना मरीज़ों के लिए अस्पतालों में बेडों पर जगह पाने के लिए हाथ जोड़ते नागरिकों की फ़ोटो और वीडियो से सोशल मीडिया भरा पड़ा है। सोशल मीडिया मंचों पर अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर, प्लाज़्मा दान की गुहार लगाते रिश्तेदारों को देख दिल पसीज़ उठता है। श्मशानों में अपने प्रियजनों के चेहरे आखिरी बार देखना भी नसीब नही हो रहा है।
कोरोना वायरस के इंसानों में प्रवेश करने का मुख्य कारण किसी जीव से इंसान का सीधा संपर्क बताया जा रहा है। मनुष्य ने पर्यावरण से बहुत छेड़छाड़ की है और पर्यावरण प्रदूषण अब भी पुरानी स्थिति में है। हमें कोरोना से जंग में हारने का सिक्के का एक पहलू तो हर जगह बताया जा रहा है, सरकार की स्वास्थ्य क्षेत्र में नाकामी को दिखाया जा रहा है पर सिक्के का दूसरा पहलू जिसके  लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं वह कहीं नही बताया जा रहा है।

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प्रकृति से छेड़छाड़ कर उपजी हर बीमारी का समाधान हमें प्रकृति से ही मिल जाता था।अर्जुन, हरसिंगार, हल्दी, तुलसी जैसी वनस्पतियों में औषधीय गुण होते हैं पर हमने विकास की इस अंधी दौड़ में न सिर्फ इन वनस्पतियों को प्रदूषित किया बल्कि इनके अधिक उत्पादन में भी कोई कार्य नही किया।
बीबीसी में कई वर्षों तक कार्य कर चुके और पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष योगदान पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित देश के वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने प्रदूषण से पर्यावरण पर हो रहे नुकसान और औषधीय वनस्पतियों की उपयोगिता पर बात की प्रो एस के बारिक से जो सीएसआईआर-एनबीआरआई (राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान), लखनऊ के निदेशक हैं। इससे पहले प्रो एसके बारिक नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग में पढ़ाते थे।

(पूरा इंटरव्यू सुनने के लेख के नीचे लिंक क्लिक करें )

प्रदूषण की भयावहता पर कितनी चिंता

रामदत्त त्रिपाठी ने प्रो बारिक से पहला प्रश्न यह किया कि हमें प्रकृति में हो रहे प्रदूषण की भयावहता पर कितनी चिंता करनी चाहिए।
प्रो बारिक कहते हैं कि प्रकृति में हो रहे प्रदूषण की भयावहता का एक प्रमाण कोरोना भी है। वनस्पति कोरोना को हराने में हमारी बहुत मदद कर सकती हैं क्योंकि वनस्पतियों में बहुत से औषधीय गुण होते हैं। भारत में लगभग 6500 ऐसे पौधे हैं जिनमें औषधीय गुण मौजूद है। एक परीक्षण में पता चला है कि कालमेघ पौधे में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो कोरोना से लड़ने में सक्षम हैं।ऐसे बहुत से पौधे होते हैं जो अलग-अलग बीमारियों से लड़ने में सक्षम हैं पर किसी भी वनस्पति से दवाई बनने में कुछ समय लगता है।

कोरोना में हमें प्रदूषण से कितना नुकसान हुआ


रामदत्त त्रिपाठी का दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि कोरोना में हमें प्रदूषण से कितना नुकसान हुआ है?

इसके जवाब में प्रो बारिक कहते हैं कि हम सीधे तौर पर यह नही कह सकते कि कोरोना प्रदूषण की वज़ह से ज्यादा फैला है पर प्रदूषण की वज़ह से कोरोना मरीज़ अधिक प्रभावित जरूर हुए हैं।कुछ प्रदूषक जैसे कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइ ऑक्साइड, सस्पेण्डेड पार्टिकुलेट मैटर आदि हमारे श्वसन तंत्र को कमज़ोर कर देते हैं तो वहीं लेड और फार्मल्डिहाइड जैसे प्रदूषक हमारे फेफड़ों को कमज़ोर बना देते हैं।

इस वज़ह से कोरोना को मरीज़ के शरीर पर अधिक प्रभाव छोड़ने का मौका मिल जाता है।हमें इन प्रदूषकों को कम करने के प्रयास करते रहने होंगे जिसमें फैक्ट्रियों, खेतों को जलाने और कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण शामिल है।

इसके निदान के रूप में हमें ऐसे पौधों को उगाना चाहिए जो इन प्रदूषकों को एक बैरियर के रूप में रोकने में सहायता करते है। यह दो प्रकार के पौधे हो सकते हैं पहले पानी और मिट्टी प्रदूषक अवशोषित पौधे और दूसरे वायु प्रदूषक सहिष्णु पौधे

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प्रदूषण से औषधीय पौधों की औषधीय क्षमता घट जाती है

चरकसंहिता अध्ययन करने के बाद रामदत्त त्रिपाठी ने यह जाना कि भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों की वज़ह से औषधीय पौधों की औषधीय क्षमता घट-बढ़ जाती है जैसे तुलसी की औषधीय क्षमता जगह-जगह घटते-बढ़ते रहती है। इसी पर वह प्रो बारिक की राय भी लेते हैं।
प्रो बारीक कहते हैं कि भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार औषधीय पौधों की क्षमता भी बदलती रहती है। लकडोंग (मेघालय) और उसके चारों ओर बीस वर्ग किमी क्षेत्र के अंदर होने वाली हल्दी में पाए जाने वाली महत्वपूर्ण सामग्री कुर्कुमिन का प्रतिशत उस क्षेत्र की भूमि की वजह से 10-13 प्रतिशत रहता है।लकडोंग से साठ किलोमीटर नीचे आने पर इसकी क्षमता घट कर 6-10 प्रतिशत हो जाती है और उससे कई किलोमीटर दूर स्थित लखनऊ में हल्दी के अंदर कुर्कुमिन का प्रतिशत मात्र 4 प्रतिशत के आसपास रह जाता है।

वर्तमान परिस्थिति में उपयोगी कतिपय वानस्पतिक औषधियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंनें कहा कि गुरिच , दालचीनी, लौंग, जावित्री, तुलसी,  अजवायन सदृश औषधियां अत्यन्त उपयोगी हैं।मरिच में मौजूद piperin नामक तत्व bioavilability enhancer की तरह कार्य करता है, जो आहार तथा औषध द्रव्यों के पोषक तत्वों को अधिक से अधिक मात्रा में शोषण करने में मदद करता है। इसी प्रकार, लौंग में मौजूद  uginol नामक aromatic constituent antiseptic और antimicrobial होने की वजह से अत्यन्त लाभकारी है। लौंग  की कली को मुंह में रखने से भी इसके औषधीय गुण का लाभ मिल सकता है। इन सभी द्रव्यों में volatile aromatic compound पाया जाता है जो कि श्वसनवह संस्थान पर अत्यन्त गुणकारी प्रभाव दिखा सकते हैं। कर्पूर एवं अजवायन का भाप श्वसनवह संस्थान को मजबूती प्रदान  करता है जिससे कि उसके आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढती है। तुलसी एवं अश्वगंधा अपने adaptogenic गुण के कारण हमारे शरीर को परिस्थितियों के अनुरुप ढलने की क्षमता प्रदान करते हैं।

प्रो बारिक कहते हैं कि पौधे अपनी पत्तियों और जड़ों से जो प्रदूषक ले रहे हैं उससे नुकसान होता है। यह प्रदुषक पौधों के विभिन्न हिस्सों में पहुंच जाते हैं और जब यह औषधीय पौधे औषधि के तौर पर लिए जाते हैं तो औषधीय गुणों के साथ यह प्रदूषक भी मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर भविष्य में मानव शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं।

पोधों में यह प्रदुषण दो प्रकार के प्रदूषकों से होता है, पहले प्रदूषक वह होते हैं जो पत्तों के ऊपर गिरते हैं दूसरे वह होते हैं जो प्रदूषित मिट्टी के माध्यम से पौधों में प्रवेश कर जाते हैं।

मांसाहार भोजन, शाकाहार से ज्यादा जहरीला


चौथा प्रश्न – कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र में चमड़े के बहुत से कारखाने हैं और इस वजह से उस क्षेत्र के नाले प्रदूषित हो रहे हैं। वहां की सब्जियां और फल खाने से लोगों को गम्भीर बीमारियां हो रही हैं, इस समस्या पर एनबीआरआई के वैज्ञानिक कानपुर गए तो उन्हें क्या निष्कर्ष मिला?
प्रो बारिक कहते हैं कि पौधे अपनी पत्तियों और जड़ों से जो प्रदूषक ले रहे हैं उससे नुकसान होता है।उनसे बनने वाली घरेलू दवाइयों को हम सही समझते हैं पर वह मरीज़ों का और अधिक नुकसान करती है।
मांसाहार भोजन, शाकाहार से ज्यादा जहरीला बन जाता है। बकरी जो घास खाती है उससे यह प्रदूषक उसके अंदर चले जाते हैं और जैविक आवर्धन की वजह से उसे खाने पर हमारा दस गुना अधिक नुक़सान होता है।

पार्टिकुलेट मेटर जो कि वायु में मौजूद छोटे कण होते हैं, यह विभिन्न आकारों के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकते है। ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल, खाना पकाने का धुआं, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया इसके स्त्रोत हैं। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं।
जब हम सांस लेते हैं तो ये कण हमारे फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पढ़ सकते हैं। साथ ही उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।वायु प्रदूषण की वजह से हमारे शरीर में कोरोना के लिए रास्ते खुल रहे हैं।

प्रदूषकों को कम करने में पौधों की सहायता


बहुत से पौधे इन प्रदूषकों को कम करने में सहायता करते हैं इसलिए हमारे पूर्वजों ने घर के पास बेल, नीम और पीपल के पेड़ लगाने के नियम बनाए थे। एक पेड़ हर प्रकार के प्रदूषकों को अवशोषित नही कर सकता इसके लिए हर प्रदूषक के लिए अलग पेड़ लगाने की बात कही गई है।
किस प्रदूषक के लिए किस जगह कौन सा पेड़ लगाया जाए इसका समाधान करने के लिए एनबीआरआई ने ‘ग्रीन प्लानर एप’ बनाया है।जैसे वाहनों से निकलने वाली गैसों की वजह से लोगों को सांस की गम्भीर बीमारियां हो रही हैं, पेड़ पौधे इन गैसों को अवशोषित कर ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। इससे हवा की गुणवत्ता बेहतर होती है, सड़क किनारे या डिवाइडर पर सही प्रजाति के पौधे लगाए जाएं तो प्रदूषण कम किया जा सकता है। नीम, साल, बरगद,  सड़क किनारे लगाए जा सकते हैं तो गुड़हल, हरसिंगार को डिवाइडर पर लगाया जा सकता है।
मनी प्लांट घर के अंदर मौजूद प्रदूषकों  से हमें बचाता है। यह फॉर्मलाडिहाइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे एयरबोर्न टॉक्सिन को दूर रखता है।

अंतरराष्ट्रीय जीव विज्ञान संघ (IUBS)  जो विश्व भर में जैव विज्ञान के अध्ययन को बढ़ावा देता है द्वारा एनबीआरआई को अमरीका, मेक्सिको, नेपाल, बांग्लादेश, इक्वाडोर सहित दस देशों में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिए पौधों की विभिन्न प्रजातियों को पहचानने का कार्य दिया गया है। इसके साथ ही एनबीआरआई पर ही यह छोड़ा गया है कि वह किस वैज्ञानिक विधि द्वारा यह कार्य करते हैं।

उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण मुख्य समस्या


पांचवे प्रश्न के रूप में रामदत्त त्रिपाठी प्रो बारिक से गोरखपुर के आसपास जंगलों के कटान की वज़ह से लोगों के बीच सालों से फैले एक वायरस और पन्ना में हीरों की खदानों में काम कर रहे मज़दूरों की बीमारियों का उदाहरण दे पर्यावरण से छेड़छाड़ के परिणामों पर चर्चा करते हैं।

प्रो बारिक कहते हैं कि हम इन सब पर शोध करते रहते हैं पर इससे कुछ नही होता है। उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण मुख्य समस्या है, अलग-अलग उद्योगों से अलग-अलग प्रकार के प्रदूषक निकलते हैं।उनके आस-पास ग्रीन बेल्ट क्षेत्र बना पौधों का विकास करने की आवश्यकता है।

रामगंगा और काली नदी प्रदूषित


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कागज़, शराब और चीनी के कारखानों की वज़ह से रामगंगा और काली नदी प्रदूषित हो रही हैं जो अंत में गंगा को प्रदूषित करती हैं. यमुना भी भयंकर रूप से प्रदूषित है.

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वनों का कटान भी एक मुख्य समस्या बनी हुई है। जंगल कटने की वज़ह से वहां जानवरों के लिए जगह नही बचती और वह मनुष्यों के बीच आने लगते हैं। जंगल कटने की वज़ह से पारिस्थतिकी तंत्र पर भी गलत असर पड़ता है और उससे होने वाले जलवायु परिवर्तन की वज़ह से रोगाणु ऐसे क्षेत्रों में भी पनपने लगते हैं जहां वह पहले नही आ सकते थे।
जंगल कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। आज हम ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए घण्टों लाइन लगा रहे हैं, हमें ऑक्सीजन ठीक वैसे ही खरीदनी पड़ रही है जैसे हमने वर्षों पहले पानी खरीदना शुरू कर दिया था।

अब इस बीमारी से हम कैसे लड़ें


प्रो बारिक से रामदत्त त्रिपाठी का अंतिम प्रश्न यह है कि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं वैसे ही ध्वस्त हो चुकी हैं और हमारे पास इसको लेकर ज्यादा बज़ट भी नही है, अब इस बीमारी से हम कैसे लड़ें?

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प्रो बारिक कहते हैं कि आपातकाल में तो हमें मरीज़ को ऑक्सीजन सिलेंडर लगा कर ही ठीक करना होगा पर यदि हमें इसका स्थाई समाधान चाहिए तो हमें भविष्य में प्रदूषकों को रोकने के लिए पौधें लगाने ही होंगे।हम सत्तर से सात सौ ऐसे पेड़ों की लिस्ट बना रहे हैं जिनमें औषधीय गुण होने के साथ प्रदूषकों को रोकने की क्षमता भी हो।

हमें अपने घर के चारों ओर बरगद, पीपल, अशोक जैसे पेड़ लगाने चाहिए जिनमें औषधीय गुण तो हों ही साथ ही वह हवादार भी हों। यह पेड़ हमारे लिए प्रदूषण को तो रोकेंगे ही साथ में छाया देकर हमारे घर में चलने वाले एसी, पंखों की जरूरत को भी खत्म कर हमारा बिजली का बिल कम करेंगे।हम जितना ज्यादा पेड़ लगाएंगे हमारा उतना ही अधिक कल्याण होगा।

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हिमांशु जोशी, उत्तराखंड।मोबाइल- 9720897941

One Comment

  1. महत्वपूर्ण लेखहै,,आज हम नहि जागेगे तो हमेशाके लीये समझाना पडेगा,,,घरती का कवचहै वृक्ष
    जोशीजी धन्यवाद,,,,🙏🛖🌿

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