यमुना माता को प्रदूषण मुक्त किया जाये
चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी --सूर्यपुत्री यमुना जी की जयंती
18 अप्रैल 2021 ,चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यमुना जी की जयंती के पर्व के रूप में यमुना जी की छठ पूजा के साथ मनाया जाता है। सूर्यतनया यमुना यम की बहन यमी हैं शनिदेव इनके अनुज है। ऐसी शक्ति सम्पन्ना माता यमुना की जयंती के सम्बन्ध में पौराणिक काल से ही मान्यता है की इस पर्व पर यमुना में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं ,सारी व्याधियां समाप्त हो जाती है और मानव को मोक्ष प्राप्त होता है। पर आज का संकट है की हम किस यमुना में स्नान करके व्याधियों को दूर करें और मोक्ष प्राप्त करें। कहाँ गई कृष्णप्रिया जिसके तट पर राधाकृष्ण की रासलीला होती थी ,जिसके तट पर परम ब्रह्म परमेश्वर गोपाल रूप में गोचारण करने आया। कुञ्ज निकुंज से पुलकित यमुना ,खगरव से मुखरित यमुना ,केकिनर्तित ,सुरभि समूह को आकर्षित करती सूर्यपुत्री यमुना मात्र वर्चुअल यमुना एक नाले के रूप में ही रह गई हैं।
शास्त्रों में कालिंदी जिसका उदगम हिमालय का कालिंद है उसे कालसलिला कहा गया है यह धरती पर त्रेता युग में अवतरित हुई। वेदों में यमुना के साथ ही गो और राधा का उल्लेख हुआ है –यमुनायामधि श्रुतमुद राधो गव्यं ,मृजेः नि राधो अश्व्यम -ऋग्वेद 5 /52 /17
योगीजन यमुना का सम्बन्ध योग दर्शन और हठयोग से करते है ,जहाँ कुण्डिलिनी जागरण ,षट्चक्रभेदन तथा अनन्तर शून्य में इड़ा –गंगा ,पिंगला –यमुना और सुषुम्णा –सरस्वती के संगम से सहस्रार कमल में अमृत बरसने लगता है तथा योगी अमृत पीकर दिगकाल को लांघकर अनहद नाद सुनता है तथा किशोरावस्था में ही स्थिर होकर इस शरीर से अमरत्व प्राप्त कर लेता है।
भक्तकालीन संत कवियों ने हठयोग साधना पद्धति को स्पष्ट करने के लिए गंगा ,यमुना का रूपक लिया। कबीर ने कहा –गंग जमुन के अंतरे सहज सुन्नि लो घाट। तहाँ कबीरा मठ रचा मुनिजन जोवैं बाट। .
कच्छपवाहिनी माता यमुना की जो दीनदशा है उसके सम्बन्ध में व्रज के वीतराग संत श्रीपाद महाराज में वर्षों पूर्व अपनी व्यथा की अभिव्यक्ति की थी —
कृष्णरूपिणी यह कालिंदी जो है श्रीहरि की पटरानी
रोते रोते सूख गया है उसके भी नयनो का पानी
गेहसर्जनी थी जो प्रभु की वही आज मार्जना चाहती
सबको पावन करने वाली आज अपावन बन कराहती
यमुना जयंती के पुण्य को प्रतिस्थापित करने के लिए आवश्यक है की यमुना माता को प्रदुषण से मुक्त किया जाए। आज हम अपने पापों को भोग रहे हैं। हमने सूर्यपुत्री ,यम और शनि की भगिनी को अपमानित किया है और उसी से व्याधियों से मुक्ति की अपेक्षा करते हैं। हम अपने पापों का प्रायश्चित करते हुए माँ की वंदना करे –ओउम नमो यमुनाये विश्वरूपिण्यै नरायणायै नमो नमः।