जिसे देख हम मुंह फेर रहे हैं वही दिखाती है ‘जय भीम’

गलती क्या है इनकी! यही कि ये पैदा हुए'

सोशल मीडिया पर एक दलित युवक की पिटाई का वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो कानपुर के अकबरपुर का बताया जा रहा है. खबरों के मुताबिक, प्रेम प्रसंग के शक में दलित युवक को पेड़ से बांधकर घंटों तक पीटा गया. यहां तक कि उसके प्राइवेट पार्ट में डंडा डालने की कोशिश की गई.

हिमांशु जोशी

राजस्थान के भीलवाड़ा के एक गांव में बकरी चोरी करने के आरोप में दलित युवक को पेड़ से बांधकर पीटने के मामला सामने आया है.

सोशल मीडिया पर एक दलित युवक की पिटाई का वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो कानपुर के अकबरपुर का बताया जा रहा है. खबरों के मुताबिक, प्रेम प्रसंग के शक में दलित युवक को पेड़ से बांधकर घंटों तक पीटा गया. यहां तक कि उसके प्राइवेट पार्ट में डंडा डालने की कोशिश की गई.

गांव घांगा खुर्द में एक दलित परिवार को बांध कर मारपीट और अश्लील हरकतें करने का मामला सामने आया है. आरोपियों ने इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किया है.

ये सारी खबरें 1995 की नही साल 2021 की ही हैं पर हम आज यह मानने को तैयार नही हैं कि हमारे साथ एक ऐसा भारत भी चल रहा है जहां जातिवाद का बोलबाला है, ऐसी खबरों से हम मुंह फेर लेते हैं. ‘जय भीम’ के निर्देशक और लेखक को शायद इन्हीं खबरों की वज़ह से फ़िल्म बनाने की प्रेरणा मिली हो.

प्रोफेसर शेखर पाठक और उमा भट्ट की समाज के दबाए हुए तबके के लिए आवाज़ उठाने के लिए दी प्रेरणा से मुझे फ़िल्म देख यह समीक्षा लिखने की प्रेरणा मिली.

पुलिस की कार्यप्रणाली, न्यायपालिका पर आम नागरिक का भरोसा, आदिवासियों के अधिकारों और आंदोलनों की शक्ति के इर्द गिर्द सिमटी यह फ़िल्म दिल झकझोरने वाले दृश्यों से भरी पड़ी है.

‘गलती क्या है इनकी! यही कि ये पैदा हुए’

1994-95 में हुई सच्ची घटनाओं पर बनी यह फ़िल्म जाति पूछ एक जेल से छूटने पर दूसरी जेल में भेजे जा रहे कैदियों के लिए इन शब्दों के साथ शुरू होती है.
भारतीय फिल्मों के इतिहास में सबसे ज्यादा चर्चा पा रही यह फ़िल्म शुरुआत से ही कसी हुई लगती है.

राजाकन्नू बने के० मणिकंदन को बाइक में पीछे बैठा उसका हाथ झटका दूरी बनाने वाले दृश्य और ‘दीया जलाने के समय दहलीज पर खड़ी क्यों हो रही है’ जैसे संवादों के साथ फ़िल्म छुआछूत पर प्रहार करते रहती है.

आगे चलकर फ़िल्म में राजाकन्नू और साथी की आंखों में मिर्च पाउडर डालने और जेल में महिला के कपड़े उतारने जैसे दृश्य दर्शकों को पुलिस बर्बरता की कहानी दिखाते हैं, जो आपके पूरे शरीर में सिहरन दौड़ाने पर कामयाब जरूर होंगे.

वकील चंद्रु बने सूर्या की एक मोर्चे में मुट्ठी बांधे फ़िल्म में एंट्री हुई है, वहीं से कोर्टरूम में उनके द्वारा किए गए बेहतरीन अभिनय की शुरूआत है.
बिना किसी सबूत के लड़ने वाले केस के लिए सबूत जुटाते सूर्या के साथ फ़िल्म रोमांच से भरपूर है और केस की हर सुनवाई जबरदस्त है.

प्रकाश राज एक ईमानदार पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं. सूर्या और प्रकाश राज के आपसी संवाद गज़ब के हैं और पुलिस की समाज में भूमिका पर भी स्पष्टता देते हैं.

संगिनी बनी लिजोमोल जोस साधारण तो दिखती हैं पर सिस्टम से लड़ती एक गर्भवती के रूप में उन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से अपने किरदार संगिनी को दर्शकों की यादों में अमर कर दिया. डीजीपी के साथ वाला दृश्य हो या डीजीपी के आदेश पर जेल बुलाई संगिनी को गांव वालों के सामने पुलिस जीप सहित घर छोड़ने वाला दृश्य ऐसा अभिनय कम ही देखने को मिलता है.

संगिनी को न्याय दिलाने में सहायता करने वाली शिक्षिका बनी राजिशा विजयन भी अपने बेहतरीन अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब हुई हैं, पुलिसिया ज़ुल्म ढहाने वाले सब इंस्पेक्टर बने तामीज़ एक बेहतरीन नकारात्मक चरित्र की भूमिका निभाने के लिए याद किए जाएंगे.

तमिलनाडु के हिल स्टेशन कोडईकनाल की खूबसूरत वादियों में फिल्माई गई फ़िल्म का छायांकन इतना बेहतरीन है कि कोडईकनाल को न जानने वाले लोग भी अब वहां तक पहुंचने का रास्ता गूगल पर सर्च करेंगे. खेतों में चूहे पकड़ने का दृश्य भी आपको फ़िल्म के बेहतरीन छायांकन का आनंद देगा.

‘पढ़िए सब कुछ मिल जाएगा’ जैसे गहरे डूबे हुए संवादों से फ़िल्म भरी पड़ी है. एक नही फ़िल्म के पचासों संवाद ऐसे हैं जो लोगों की ज़ुबान पर चढ़ जाएं.

फ़िल्म का संगीत कभी प्रकृति के साथ मिला हुआ ही लगता है तो कभी वह फ़िल्म के महत्वपूर्ण दृश्यों का रोमांच दोगुना कर देता है.

फ़िल्म में बाबा अम्बेडकर की सीखें भी समांतर चलती रहती हैं, जैसे फ़िल्म में सूर्या की पहली झलक के दौरान न्याय पर सभी के समान अधिकार पर बात की जाती है और अंतिम दृश्य में सूर्या के साथ बच्ची द्वारा अखबार पढ़ने का दृश्य शिक्षा की सब तक पहुंच को लेकर काफ़ी कुछ कह जाता है.
संगिनी का मुझे लिखना नही आता साहब कहना आपको आज भी बैंकों में अंगूठा लगाने वाले बहुत से चेहरे याद दिला देगा.

फ़िल्म में कोई कमी नही, कमी खुद में लगी है जो मुझे तमिल नही आती, नही तो फ़िल्म के हर संवाद की वास्तविकता के रोमांच से परिचित होता.

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उम्मीद है फ़िल्म देख सूर्या द्वारा निभाया किरदार चंद्रु देश के हर राज्य में पैदा होगा.
जय हिंद.

कलाकार- सूर्या, लीजोमोल जोस, राजिशा , के॰ मणिकंदन, प्रकाश राज
निर्देशक- टी०जे० ग्नानवेल
निर्माता- सूर्या, ज्योतिका
लेखक- टी०जे० ग्नानवेल
छायाकार- एस०आर० कथीर
वितरक- अमेज़न प्राइम वीडियो
संपादक- फिलोमिन राज
संगीतकार- शॉन रोल्डन
रेटिंग- 5/5
(समीक्षक- हिमांशु जोशी)
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