प्रकृति में सब बराबर हैं और उससे छेड़छाड़ करने का परिणाम हम सब भुगतेंगे

कुछ नया करके देखो - भाग 2

मंजुल भारद्वाज ने साल 1992 में  द एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउंडेशन की स्थापना की थी जो थिएटर आफ रेलेवेंस के सिद्धांत पर आधारित है।उसके 25 साल पूरे होने पर स्मृति ने अपने जन्मदिन 17 मई 2017 पर, दिल्ली के मुक्तधारा और ‘अलायन्स फ्रांसौयज़’ सभागृह में ‘थियटर आफ रेलेवंस नाट्य उत्सव’ के अंतर्गत तीन नाटकों के मंचन के आयोजन का निर्णय लिया। 
अनहद नाद- अनहर्रड साउंड्स आफ यूनिवर्स, गर्भ, न्याय के भंवर में भंवरी। इन तीनों नाटकों के रचयिता मंजुल भारद्वाज हैं।
इसके साथ ही मस्केरी दम्पत्ति ने ‘क्रिएटर एन्विज़निंग फॉर्म’ का आयोजन भी किया जहां जीवन में कुछ अलग करने की चाह रखने वाले लोग भी आएं, उसमें राजनीतिक, कला, लेखन जैसे किसी भी क्षेत्र के लोग शामिल हो सकते थे। इसी आयोजन के बीच सिद्धार्थ की मंजुल भारद्वाज से पुनः मुलाकात हुई।

जीवन जीने की दृष्टि क्या है


मंजुल ने सिद्धार्थ से पूछा कि तुम्हारे जीवन जीने की दृष्टि क्या है?सिद्धार्थ बोले कि मैंने अपनी मां को वादा किया था कि वह ऑस्कर जीतेंगे और वही उनके जीवन की सबसे बड़ी सफलता होगी।मंजुल ने सिद्धार्थ को बताया कि आप एक लक्ष्य लेकर चल रहे हैं पर आपकी जीवन दृष्टि तो है ही नही।
26 सितम्बर 2017 को मंजुल की यह बात सुनकर सिद्धार्थ अंदर तक हिल गए और उन्हें रात भर नींद नही आई।सुबह उठते ही उन्होंने मंजुल से कहा कि वह लोगों को कहानियां सुनकर और सुनाकर खुशियां बांटना चाहते हैं और यही उनके जीवन का दर्शन है।मंजुल ने सिद्धार्थ से बोला कि तुमने यह सन्तों वाली बात कही है।
किस्मत सिद्धार्थ के लिए आगे के रास्ते खोल रही थी। अगले दिन उनके ऑफिस पहुंचते ही बॉबी बेदी ने उनसे कहा कि गुरुद्वारे पर फ़िल्म वाले प्रोजेक्ट के फंड रुक गए हैं और हमें यह काम रोकना होगा।सिद्धार्थ ने ऑफिस से नीचे आकर स्मृति को फोन किया और बोला कि हमारे मन की बात हो गई है। बह्मांड हमसे जो चाहता है वह हो रहा है। ऊपर वाले ने पेड़ की डाल काट कर बोला है उड़ो और वापस इस घोसले में कभी मत आना और न ही किसी दूसरे पेड़ पर जाना।
वापस ऑफिस जाकर सिद्धार्थ ने बॉबी को धन्यवाद ईमेल लिखा। उन्होंने लिखा कि बॉबी आपने मेरे लिए जो भी किया वह मेरे पिताजी ने भी कभी मेरे लिए नही किया, उन्होंने मुझे हमेशा बचाया ही पर आपने मुझ पर विश्वास किया कि मैं उड़ सकता हूं। ऊपरवाले ने आपको मेरी उड़ान के लिए एक ज़रिया बनने के लिए चुना है। इन सब के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
दिल की आवाज़ सुनने पर हमारे आगे के रास्ते खुद ही खुलने लगते हैं वैसे ही सिद्धार्थ के साथ हुआ। प्रोजेक्ट छोड़ते ही उन्हें अपने प्रोजेक्ट्स के लिए पार्टनर मिल गए जो उनके एनिमेशन को डेवलप कर आगे बेचने के लिए तैयार थे। एक एजुकेशन कम्पनी ने उन्हें हफ़्ते में तीन दिन अपने स्टूडियो में क्रिएटिव डायरेक्शन और ट्रेनिंग देने के लिए अस्सी हज़ार रुपए ऑफर किए।

    नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन अहमदाबाद के                           छात्र और सिद्धार्थ
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन अहमदाबाद ने अपने छात्रों को थ्री डी एनिमेशन के ज़रिए कहानी सुनाने के लिए सिद्धार्थ को अहमदाबाद बुलाया। मस्केरी परिवार जनवरी 2018 को अपनी कार में Soulify का बैनर लगा कर दिल्ली से अहमदाबाद चल दिया।सिद्धार्थ के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन अहमदाबाद के सफ़र पर  एक किताब ‘आई एम पॉसिबल‘ भी छपी है।

इस यात्रा के बाद वह लोग दिल्ली में अपने घर पर हर रविवार Soulify- Creators connect नाम से कहानी सुनने सुनाने का एक सत्र रखने लगे।
इसके बाद Soulify परिवार ने पूरी धरती को ही अपना घर मानते हुए पूरी दुनिया में अपनी कहानी सुनने सुनाने और खुशियां बांटने का निर्णय लिया।
soulify.org.in के द्वारा यह परिवार कहानी कहने के माध्यम से लोगों को उनके अपने दिल की आवाज़ तक पहुंचाते हैं। इसमें वह ‘थिएटर आफ रेलेवंस’ की प्रकिया द्वारा लोगों के मुखोटे को उतार जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। यह वही मुखोटा होता है जो उन्होंने समाज के सामने खुद को भुलने के बाद लगाया होता है।
इस प्रक्रिया में सहभागी खुद के सृजनात्मक, रचनात्मक और कलात्मक अभिव्यक्तियों द्वारा अपने आयामों को गढ़ने की दृष्टि निर्माण करते हैं।जैसे जो लोग सालों से शारीरिक जड़ता में हैं , स्वाभाविक है कि वह मानसिक और भावनात्मक तनाव से जूझ रहे हों। उन्हें नाट्यशाला द्वारा अपनी जड़ता को आत्मचेतना की ओर बढ़ने की संभावनाओं से मुलाकात करवाई जाती है।सहभागी नाचना, गाना, लिखना, नाटक का मंचन करने के आनंद में बखूबी खुद को निखारते हैं। नाटक का मुख्य उद्देश्य रूढ़िवादिता तोड़ जीवन को खुल कर जीना होता है।
प्रकृति से हमारे रिश्तों के बारे में बात की जाती है जैसे प्रकृति में सब बराबर हैं और उससे छेड़छाड़ करने का परिणाम हम सब भुगतेंगे।
स्मृति नाटकों के माध्यम से मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन लाने के साथ उनके दिलों की दबी आवाज़ को बाहर निकालती हैं।सिद्धार्थ अपने फ़िल्म लेखन के अनुभवों का प्रयोग करते हैं। वह लोगों को यह बताते हैं कि कहानी कैसे लिखी जाती है। उनका मानना है कि हर किसी में कोई न कोई गुण अवश्य होते हैं जो वह किसी और के साथ बांट सकता है।
कहानी लिखने के तरीके को समझाने के लिए सिद्धार्थ ने ‘कहानी के सात रंग‘ नाम से एक टूल बनाया है।जिसके अनुसार कहानी वह होती है जो लोगों को प्रभावित करे, यह कोई घटना हो सकती है जो लिखने वाले का अपना अनुभव होगा। लोग कहानी के पात्रों से प्रभावित होंगे जिसकी अपनी सीमाएं भी होंगी।  कहानी में उतार चढ़ाव होने चाहिए।कहानी का नायक जब कोई सपना देखता है तभी कहानी बननी शुरू होती है।हम हमेशा कहानी के खलनायक से नफ़रत करते हैं और खुद को एक पीड़ित के रूप में देखते हैं जबकि हमें उस खलनायक को धन्यवाद कहना चाहिए कि उसकी वज़ह से हमने खुद को समझा और मज़बूत किया। हम भी किसी की कहानी में खलनायक हो सकते हैं जो कहीं न कहीं उसका रास्ता रोक रहे होते हैं।
यह प्रक्रिया खलनायकों के प्रति प्रतिभागियों के दिल में दया की भावना पैदा करती है।

‘कहानी के सात रंग’ मुख्य रूप से हमारा जीवन जीने का तरीका ही

‘कहानी के सात रंग’ मुख्य रूप से हमारा जीवन जीने का तरीका ही है। नायक की कहानी उसके वातावरण और उसको मिलने वाले सहयोग के अनुसार अलग-अलग हो जाती हैं। अगर हम अपने जीवन के सभी रंगों को समझ लें तो खुद को भी समझ जाएंगे।
अद्वैत भी soulify.org.in में अहम भूमिका निभाते हैं। मस्केरी दम्पत्ति के इस सफर में जब कुछ बातें जटिल हो जाती हैं तो अद्वैत के पास उनका सीधा और सरल रास्ता होता है। अद्वैत की रुचि एरोनॉटिक्स में है जिसके लिए उन्होंने मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में ‘एम्बरी रिडल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी अमरीका’ से ऑनलाइन कोर्स भी कर लिया है।
Soulify परिवार की यह यात्रा गांधी जी की किताब ‘एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ से बहुत अधिक प्रभावित है जिसमें वह गांधी जी की तरह ही आत्म-जागरूकता विकसित करने के लिए प्रयोग करते जा रहे हैं।
अपने इस सफ़र में मस्केरी दम्पति ने अब तक बहुत कुछ सीखा और सिखाया है।

                    रामगढ़ में कार्यशाला
उन्होंने अरबिंदो आश्रम स्कूल, नई दिल्ली में बच्चों के साथ वोकेशनल ट्रेनिंग में थिएटर का आयोजन किया।
 उत्तराखंड स्थित रामगढ़ के एक विद्यालय में अपनी कार्यशाला आयोजित करने के बाद सिद्धार्थ ने उस पर ‘हमारा रामगढ़’ नाम से एक किताब भी लिखी है।

उन्होंने मेघालय स्थित ‘बेथानी सोसाइटी‘ में अपने मिशन को साझा किया और तिरना गांव में कार्यशाला आयोजित की। बेथानी सोसाइटी शिक्षा और पर्यावरण के अनुकूल आजीविका के माध्यम से दिव्यांगों के लिए अवसर पैदा करती है।
Soulify परिवार अपनी इस यात्रा के दौरान ‘पीपल्स एक्शन ग्रुप फ़ॉर इंक्लूशन एंड राइट्स‘ पागीर से भी मिला। पागीर लद्दाख में दिव्यांग जनों के अधिकारों की वकालत करता है।
लद्दाख में ही Soulify परिवार की मुलाकात सोनम वांगचुक से हुई। सोनम एक इंजीनियर, अन्वेषक और शिक्षा सुधारक हैं, वह साल 1988 में बने स्टूडेंट्स एजुकेशनल एन्ड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सेकमोल) के संस्थापक निदेशक भी हैं। सेकमोल की स्थापना लद्दाख के शिक्षा तंत्र में सुधार लाने के लिए की गई थी। सेकमोल में भी Soulify की कथाकारिता पर कार्यशाला का आयोजन हुआ।
सेकमोल से ही निकले स्टांज़िन दोरज़ाई से मिलकर भी मस्केरी परिवार को काफ़ी कुछ सीखने और समझने का मौका मिला।
स्टांज़िन अपनी वृतचित्र ‘द शिफ़र्ड्स ऑफ द ग्लेशियर‘ के लिए कई राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड जीत चुके हैं
लेह की जेल में भी Soulify ने कैदियों के साथ एक कार्यशाला का आयोजन किया था।

               लेह जेल में मस्केरी दम्पति
वह अपने आप में अनोखी राजस्थान की मशहूर ‘स्वराज यूनिवर्सिटी‘ भी गए, यह यूनिवर्सिटी आत्म निर्देशन में सीखने पर ज़ोर देती है।
वहां उन्होंने अपनी कार्यशाला का आयोजन किया।
इस यात्रा की शुरुआत करने के लिए मस्केरी परिवार ने अपनी आर्थिक जरूरतों को कम किया। पुणे का अपना एक फ़्लैट बेच अस्सी प्रतिशत लोन खत्म किया और दूसरे फ़्लैट के दस हज़ार किराए से उनका काम चल जाता है। उनके हर पड़ाव पर कोई अगर उनके रहने, खाने और गाड़ी के तेल का ख़र्च देना चाहता है तो वह खुशी से उसे रख लेते हैं।

देश के अलग-अलग कोनों पर जाने पर इस परिवार को हर जगह अलग मौसम भी मिलता है जिसकी वजह से इनका स्वास्थ्य भी खराब रहता था पर अब वह बदलते मौसम की आदत और अपने खान-पान में सुखद बदलाव ला रहे हैं।

            देहरादून में Soulify परिवार
soulify.org.in के सफर में मेरी मुलाकात इस अद्भुत दम्पत्ति से देहरादून में हुई थी और अब कोरोना की इस दूसरी लहर में यह परिवार जयप्रकाश नारायण के सहयोगी और सर्वोदय के अध्यक्ष रहे वरिष्ठ गांधीवादी अमरनाथ भाई के साथ हिमाचल प्रदेश के पालमपुर नगर में हैं और वहां दिन भर खेती करने के बाद रात सुकून से सोते हुए भी उनका सफर दुनिया को खोजते हुए चलता जा रहा है।

ऐसे नाटक देखने और कहानी सुनने से अपने भविष्य की उम्मीदें खो चुके अनाथ बच्चों, जेल में बंद कैदियों और कोरोना की वजह से अवसाद में जी रहे लोगों के चेहरे पर मुस्कान और अपने भविष्य को लेकर सकारात्मकता तो आ ही सकती है।


ऐसे नाटक देखने और कहानी सुनने से अपने भविष्य की उम्मीदें खो चुके अनाथ बच्चों, जेल में बंद कैदियों और कोरोना की वजह से अवसाद में जी रहे लोगों के चेहरे पर मुस्कान और अपने भविष्य को लेकर सकारात्मकता तो आ ही सकती है।

हिमांशु जोशी, उत्तराखंडमोबाइल- 9720897941

संत राम का ठीहा

Leave a Reply

Your email address will not be published.

5 + 14 =

Related Articles

Back to top button