ये हवाएं गांव की

चंद्र विजय चतुर्वेदी

डा चन्द्र विजय चतुर्वेदी , प्रयागराज

ये हवाएं गांव की

लाख प्रदूषित हो गई हों

नव्यता के धूल से

आधुनिकता के धुआँ से

भर गई हों

पर पास से जब भी

गुजरती हैं कभी

अनजान सी लगती नहीं

गांव के मेहमान से

मिलने दौड़ पड़ती हैं तभी

पूर्वके कुछ सुहाने गंध

शेष उनमें  है अभी

स्पर्श से संताप हरती हैं सभी

गांव के खेतों की माटी

जान लेती है अभी भी

गांव में आया है कोई

पीढ़ियों का साथ

जिससे निभ रहा

हर मास के हर पाख के

संझा सबेरे की धूप का एहसास

जिसको है अभी

धरती है माँ

आकाश है पिता जिनका

वे मनुज निस्सहाय

लावारिस हैं नहीं

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