मैं सरकारी अस्पताल हूं

— डॉ मुकेश वाघेला

खंडहर हूं, पर खुश हूं

बूढ़ा हूं पर गर्वित हूं

थका हूं, पर अर्पित हूं

मैं सरकारी अस्पताल…..

सोया नहीं सदियों से भी

जागा गहरी नींदों में भी

रुके, थके हारे सभी

नहीं हारा ,थक कर भी

हर धड़कन पर समर्पित हूं

मैं सरकारी अस्पताल हूं

मां की पायल न बिकने दूंगा

बेटी का ब्याह न रुकने दूंगा

बच्चों की शिक्षा न टूटने दूंगा

मजबूर की ज़मीन न गिरवी रखने दूंगा

आंखों में आस जगाता हूं

मैं सरकारी अस्पताल हूं

रक्त में हो लथपथ काया

मृत्यु की छायी हो छाया

जेब में न हो कौड़ी ,माया

नहीं पूछता कुटुंब ,कबीला

बस जुट जाता कर्तव्य पथ पर

जीवन धर्म को समर्पित हूं

*मैं सरकारी अस्पताल हूं*।

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