लालची विकास से विरासत मिटाने की लीला बनारस है

भारत सरकार का नेतृत्व अब शब्दों की परिभाषा अपने अनुकूल बदलने में सफल और सक्षम है। इसलिए 2024 के चुनाव की तैयारी 2022 में होने लगी है। अब परीक्षार्थी और परीक्षा देने वाले अलग-अलग है। परीक्षार्थी और परीक्षा देने वाला एक ही व्यक्ति होता है। वर्ष 2022 का चुनाव जिसकी परीक्षा है, वह परीक्षा नहीं दे रहा है।

विरासत स्वराज यात्रा 2021-22

स्थान – तरुण आश्रम भीकमपुरा अलवर, राजस्थान

आज विरासत स्वराज यात्रा तरूण आश्रम भीकमपुरा में रही। यहां तरूण भारत संघ के कार्यकर्ताओं एवं ग्रामीणों को विरासत के वारे में बतलाते हुए जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, लालची विकास ही विरासत का विनाश, नेता अब विकास को विरासत एवं विरासत को विकास करने वाले बन गए है।

भारत सरकार का नेतृत्व अब शब्दों की परिभाषा अपने अनुकूल बदलने में सफल और सक्षम है। इसलिए 2024 के चुनाव की तैयारी 2022 में होने लगी है। अब परीक्षार्थी और परीक्षा देने वाले अलग-अलग है। परीक्षार्थी और परीक्षा देने वाला एक ही व्यक्ति होता है। वर्ष 2022 का चुनाव जिसकी परीक्षा है, वह परीक्षा नहीं दे रहा है।

*2022 की परीक्षा लखनऊ या देहरादून के परीक्षार्थियों को देनी है, लेकिन परीक्षा देने वाला अब दिल्ली से उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड़ में सभी जगह विद्यार्थी बनकर पहुँच रहा है। यह काम कोलकाता में हुआ था, जिसकी परीक्षा थी, वह परीक्षा नहीं दे रहा था। परीक्षा देने वाला तो दिल्ली से ही जा रहा था। वहां की जनता ने उस नकलची दूसरा आदमी है, उसको पकड़ लिया और दूसरे सभी फर्जी परीक्षार्थियों को पकड़कर बुरी तरह अपमानित करके परीक्षा से निकाल दिया था। लखनऊ देहरादून में भी यही घटना घटेगी?

चुनावी वोट के लालच में विकास से विरासत का संबंध बनाना जनता को गुमराह करना है। आज का विकास तो ज्ञान-विद्या और विरासत के विस्थापन से ही शुरू होता है। समाज के मन मानस में लालच भाव पैदा करके सभी को बिगड़ता है। आज के आधुनिक विकास से मौसम का मिजाज बिगड़ता और धरती को बुखार चढ़ता है। यही विनाश आज के विकास से ही हुआ है। इसी की देन कोरोना वायरस एवं बाढ़-सुखाड़ है।

गंगा जी में चबूतरा बनाकर गंगा जी को मोड़ना, मंदिरों को तोड़ना और सड़कों को चैड़ा करना, काशी की विरासत को मिटाता है। वहाँ की विरासत से मन मस्तिष्क को सिकोड़ता और छोटा बनाता है। धरती, नदी, तालाबों, जल, जंगल पर अतिक्रमण और प्रदूषण करता है। सभी का शोषण करके शोषक को और अधिक तेज बड़ा शोषक बना देता है। गरीब को अधिक गरीब और अमीर को अधिक अमीर बनाने के रास्ते बना कर देता है।

लालची विकास की दलगत राजनीतिक मानसिकता ने महात्मा गांधी की सत्याग्रह आश्रम विरासत को भी लालची विकास का सपना दिखाकर, सादगी, सत्य-अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले, ट्रस्टीशिप सिद्धांत को मानने वाले साबरमती आश्रम से जुड़े सभी की बोलती बंद कर दी हैं। ये भी विश्वनाथ मंदिर के महंत की तरह एक दिन बोलेंगे, जब साबरमती का सत्याग्रह आश्रम भी एक बड़ा बाजार मोल बनकर खड़ा होगा। तब ही गांधीवादियों तथा अन्य सभी की आंखों में चुभेगा, तभी सभी सत्यागृह शुरू करेंगे? काम शुरू होने से पहले हमनें अपने सत्याग्रह का संकल्प सरकार को बता दिया था। बापू तीर्थ को जैसा है, वैसा ही बनाकर रखें। सरकारी योजना को रोको। यही सरकारी ट्रस्ट नहीं, जन ट्रस्ट बनायें।

आने वाले समय में साबरमती बापू तीर्थ वैश्विक पर्यटन में बदल जाएगा। जैसे आज जालियांवाला बाग में जाने वाले आजादी क्रांति को भुलाकर पर्यटन की भ्रांति में फंस जाते है। मैं, तो उस स्थान को अपनी स्वतंत्र क्रांति की विरासत मानकर कई बार देखने गया। यह जालियांवाला बाग पहले क्रांति भाव जगाकर, अंग्रेजियत की गुलामी के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की याद दिला देता था। अब तो वह स्थान क्रांति को स्मरण नहीं कराता है, बल्कि एक पर्यटक भाव पैदा करता है। मेरे मन में इसके बदले रूप को देखकर अच्छा नहीं लगा। सभी कुछ बदलने पर केवल आहत होकर लौटते है। मैं भी ऐसे ही लौटा था।

यहाँ आजादी क्रांति की विरासत को पर्यटन में बदलना विकास के नाम पर किया गया है। यह विकास उसी दृष्टि और दर्शन का है, जो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड चुनाव में विकास को विरासत कहा है। इस चुनाव में केवल विकास के नाम पर अब वोट नहीं मिल रहा है और धार्मिक शब्दों ने अब थोड़ा आंदोलनों में ढि़ढक पैदा कर दी, तो धार्मिक नारों से चुनाव आयोग ने बचने की चेतावनी दे दी है। इसलिए ले-देकर केवल प्राचीन काशी, अयोध्या, मथुरा की विरासत बचाने के ही नारे अब बचे हैं। विरासत को विकास से जोड़कर बोलने से जनता को नए नामों से भ्रमित करना आसान है। इसलिए अब पूरे भारत में विरासत शब्द को सरलता से चुनाव में उपयोग किया जा सकता है।

विरासत स्वराज यात्रा तो हमने भारत की सादगी, सहजता, से जन्मे सत्य अहिंसा को अपनाकर ‘‘जियो और जीने दो’’ इस भारतीय ज्ञान तंत्र की विद्या द्वारा आधुनिक शिक्षा में पैदा किए, लालच से मुक्ति हेतु आरंभ थी। यह यात्रा विकेंद्रित प्रबंधन द्वारा संचालित है। इसे चलाने हेतु कोई दान दाता और ग्राहता नहीं है। पूरी यात्रा कब तक चलेगी, मालूम नहीं, लेकिन इसके संचालन हेतु एक रुपया भी किसी से नहीं लेना और नहीं देना है। स्वयं यात्रा संचालकों की स्वस्फूर्त यात्रा है।

सादगी में प्रकृति से उतना ही लेना जितना श्रम निष्ठ बनकर, प्रकृति को लौटा सकते हैं। प्रकृति हमारी सारी जरूरत पूरी करने में तो सक्षम है। पर यह हमारा किसी एक का भी लालच पूरा नहीं कर सकती। लालच द्वारा सब के साथ-सबका विकास कैसे होगा? 7 वर्षों में समझ नहीं आया है। झूठा नारा और विरासत विनाशक लालची विकास सभी को भ्रमित करने वाला है।

वोट माँगने वाले लालची हैं। अपने लालच को पूरा करने हेतु अतिक्रमणकारी, प्रदूषणकारी व शोषणकारी अपनी विधि से यह किसी भी तरह लालच पूरा करेंगे। विकास के नाम पर हो या विरासत के नाम पर, विकास और विरासत दोनों शब्दों की परिभाषा एक ही बनाई है। ‘चुनावी विजय हेतु’ आजकल विकास और विरासत की परिभाषा इसी चुनाव में पहली बार ही एक बनाई है।

शोषक प्रदूषक और अतिक्रमण के दुष्प्रभाव समाज को जब दिखने लगते हैं, तभी वह बौखलाकर इस अतिक्रमण प्रदूषण और शोषण करने वाली प्रक्रिया को ही विरासत बताकर जनसभाओं में इसे बचाने के नारे लगाने लगते है। विकास का विनाश जब जनता की नजरों में चुभने लगता है, तभी राजनेता व शोषक तत्पर होकर उस विकास को विरासत बनाने की भरसक कोशिश में जुट जाते है। इसी चुनाव में यह पहली शुरूआत है।

बनारस के विकास ने दुनिया को गंगा जी और विश्वनाथ मंदिर का बड़ा दिखावा किया है। इस दिखावे से विश्वनाथ मंदिर के महंत-पुजारी पहले तो बहुत खुश दिखाई देते थे, बनारस की गलियाँ और मंदिर जब टूट रहे थे, तब भी बोले और जब टूट गए तो अब रो रहे है। विश्वनाथ मंदिर को मोल बना दिया। मंदिर से मोल बनाने का काम लालची विकास है। ऐसा विकास ही विरासत को नष्ट करता है।

काशी जी को अब बनारस ही बोला जायेगा। काशी तो ज्ञान और विद्या की राजधानी थी। बनारस शिक्षा की राजधानी है। शिक्षा लाभ हेतु पाते है, विद्या सबके शुभ हेतु पाते थे। काशी जी को अब लाभ हेतु लालची शिक्षा द्वारा बनारस बन रही है। यहाँ का तेज विकास काशी विरासत को मिटाने में सफल हुआ है। लालची शिक्षा और विकास को तेज करने में सफल शहर बन रहा है। ज्ञान और विद्या की राजधानी काशी विश्वनाथ अब विकसित बनारस कैसे बन रहा है? सभी जाकर देखों।

अंत में सभी ने कहा कि, हमें तो अपने राजस्थान की बढ़ती हरियाली और पानी ही देखकर संतोष है। हम इसी में लगे रहकर आनंदित हूं।
यात्रा कल जलगांव महाराष्ट्र पहुंचेंगी।

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