मेयार सनेही नहीं रहे

गंगा-जमुनी तहज़ीब के अलम्बरदार शायर

अपने पुरखों की विरासत को सम्भालो वरना,

अबकी बारिश में ये दीवार भी गिर जाएगी/

 इस बदलते दौर में ‘मेयार सनेही’ बनारस की मिली जुली संस्कृति की एक ऐसी कड़ी थे जिन्होंने न केवल तमाम लोगों को जोड़े रखा बल्कि इस विरासत को अपने जिंदगी का मकसद भी बना रखा था.

मेयार सनेही नहीं रहे
मेयार सनेही नहीं रहे

 उनकी रचना “खयाल के फूल” से एक उदाहरण—-

अफ़वाह उड़ाई जाएगी,  जज़्बात उभारे जायेंगे,

हमलोग अगर ख़ामोश रहे हमलोग भी मारे जाएगें/

जीतोगे न तुम हारेगें न हम इस जंग से बस इतना होगा,

कुछ लोग तुम्हारे जाएगें , कुछ लोग हमारे जाएगें/

गुलशन में बहारों की डोली महफ़ूज़ न रहने पाएगी,

जब तक न  यहाँ रखवालों के किरदार सवांरे जाएगें/

अंजाम को अपने पहुंचेंगे नफ़रत को हवा देने वाले,

जब ख़ुद भी इन्हीं अंगारों से वो लोग गुज़ारे जाएगें/

मेयार वो पहला दिन होगा इंसाफ़ का मेरी बस्ती में,

जिस रोज़ ग़रीबों के बच्चे इज़्ज़त से पुकारे जाएगें/

मेयार सनेही, जो अब हमारे बीच नहीं रहे.विनम्र श्रद्धांजलि

यशोदा श्रीवास्तव

यशोदा श्रीवास्तव
यशोदा श्रीवास्तव, नेपाल मामलों के विशेषज्ञ

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