देश के पहले समलैंगिक जज हो सकते हैं सौरभ कृपाल, SC कॉलेजियम ने पांचवीं बार की सिफारिश
इससे पहले भी चार बार सौरभ कृपाल के जजशिप की सिफारिश की जा चुकी है, लेकिन हर बार केंद्र ने इसे अपनी मंजूरी नहीं दी.
सौरभ कृपाल के पार्टनर निकोलस जर्मेन बाकमैन स्विट्जरलैंड के रहने वाले हैं. वे ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं. खबरों के मुताबिक, केंद्र सरकार हर बार सौरभ की सिफारिश इसलिए मंजूर नहीं कर रही क्योंकि उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं. हालांकि, कृपाल इस तथ्य से सहमत नहीं. उनका कहना है कि उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से ही उन्हें जज बनाने की सिफारिश का फैसला टाला जाता रहा है.
मीडिया स्वराज डेस्क
अमेरिका और ब्रिटेन के बाद अब जल्द ही भारत में भी पहला समलैंगिक जज बनने का मौका सीनियर वकील सौरभ कृपाल को मिल सकता है. 49 साल के सौरभ कृपाल दिल्ली हाईकोर्ट के जज बनाये जा सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की 11 नवंबर की बैठक में यह सिफारिश की गई है. देश में यह पहली बार हुआ है, जब सुप्रीम कोर्ट ने खुले तौर पर खुद को समलैंगिक स्वीकार करने वाले न्यायिक क्षेत्र के व्यक्ति को जज बनाने की सिफारिश की है.
बता दें कि केंद्र की ओर से चार बार कृपाल के नाम को लेकर आपत्ति जताने के बावजूद इस बार कॉलेजियम ने अपनी ओर से इसके लिए सिफारिश की है. हालांकि, अब तक यह साफ नहीं कहा जा सकता है कि अगर कृपाल की नियुक्ति होती है तो कब तक हो पाएगी, क्योंकि केंद्र सरकार इस बार फिर से कॉलेजियम को रिव्यू के लिए भी कह सकती है. बता दें कि कृपाल के समलैंगिक होने से बजाय उनके पार्टनर के विदेशी होने की वजह से केंद्र उनके नाम पर चार बार आपत्ति जता चुका है.
2017 में पहली बार की गई थी कृपाल के नाम की सिफारिश
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी उम्मीदवारी को अब तक चार बार टाला जा चुका है. पहली बार दिल्ली उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा 2017 में उनके नाम की सिफारिश की गई थी, जिसकी अध्यक्ष न्यायमूर्ति गीता मित्तल थीं, लेकिन सरकार ने कथित तौर पर कृपाल के साथी के स्विस नागरिक होने की खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
बता दें कि कृपाल के साथी Nicolas Germain Bachmann एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और उनका ट्विटर हैंडल इस बात की तस्दीक करता है कि दोनों लंबे समय से साथ हैं और एक दूसरे की बेहद कदर भी करते हैं. यकीन न हो तो आप खुद ही इनका ट्विटर अकाउंट चेक कर सकते हैं, जो पूरी तरह सौरभ कृपाल के जज बनने की खबरों से अटा पड़ा है…
https://twitter.com/nicogbachmann?lang=uk
पहले चार बार सिफारिश को टाल चुकी है केंद्र सरकार
LGBTQIA समुदाय के अधिकारों की पुरजोर वकालत करके चर्चा में आने वाले कृपाल के नाम की सितंबर 2018, जनवरी 2019 और अप्रैल 2019 में फिर से सिफारिश की गई, लेकिन हर बार सिफारिश को टाल दिया गया. आखिरी बार अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सिफारिश का फैसला टाला था. इस बार, मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के अलावा न्यायपालिका के दो अन्य वरिष्ठ सदस्यों, जस्टिस यूयू ललित और एएम खानविलकर के परामर्श के बाद कृपाल की पदोन्नति की सिफारिश के लिए यह मार्ग प्रशस्त किया गया है. हालाँकि, अब भी यह महज एक सिफारिश है, जिसे सरकार द्वारा स्वीकार किया जाना शेष है.
कृपाल के पार्टनर का विदेशी होना केंद्र की आपत्ति का कारण
इस साल मार्च में तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने केंद्र से कृपाल को हाईकोर्ट का जज बनाने के बारे में रुख जानना चाहा था, लेकिन केंद्र ने एक बार फिर इस पर आपत्ति जाहिर की थी. केंद्र ने कृपाल के विदेशी पुरुष साथी को लेकर चिंता जताई थी.
20 साल से निकोलस और कृपाल हैं साथ
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सौरभ कृपाल के पार्टनर निकोलस जर्मेन बाकमैन स्विट्जरलैंड के रहने वाले हैं. वे ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं. केंद्र सरकार हर बार सौरभ की सिफारिश इसलिए मंजूर नहीं कर रही क्योंकि उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं. हालांकि, कृपाल इस तथ्य से सहमत नहीं. उनका कहना है कि उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से ही उन्हें जज बनाने की सिफारिश का फैसला टाला जाता रहा है. बता दें कि निकोलस जर्मेन बाकमैन और कृपाल पिछले 20 साल से पार्टनर हैं.
कृपाल विदेशी पार्टनर को इसका एकमात्र कारण नहीं मानते
हर बार केंद्र की ओर से कृपाल के जजशिप से इनकार के लिए उनके पार्टनर के विदेशी होने को कारण बताया जाता है, हालांकि खुद कृपाल इसे एक कमजोर बहाना बताते हैं. कृपाल ने इसी साल जून में द क्विंट को दिए एक साक्षात्कार में दावा किया था कि उनकी उम्मीदवारी को खारिज करने का एकमात्र कारण एक विदेशी पार्टनर नहीं हो सकता.
पूर्व न्यायाधीशों की पत्नी भी रह चुकी हैं विदेशी
कृपाल ने अपनी इस बात को साबित करने के लिए जस्टिस विवियन बोस का उदाहरण दिया. उन्होंने याद दिलाया कि विवियन सुप्रीम कोर्ट में भारत के सबसे महान न्यायाधीशों में से एक रहे हैं, जिनकी पत्नी अमेरिकी थी. यही नहीं, उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीशों रवि धवन और पटनायक का भी उदाहरण दिया, जिनकी पत्नी विदेशी नागरिक थीं.
अपने इंटरव्यू के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन कृपाल के बेटे सौरभ कृपाल ने कहा, “तो निश्चित रूप से एक विदेशी पार्टनर होने से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिए कोई गंभीर सुरक्षा जोखिम नहीं हो सकता है. असल में इसके पीछे मेरा समलैंगिक होना ही मुख्य कारण है.”
वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, असल में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जब केंद्र से कृपाल के बैकग्राउंड के बारे में इनपुट मांगा था तो सरकार ने इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि IB ने कृपाल के कुछ फेसबुक पोस्ट का हवाला दिया, जिनमें उनके विदेशी पार्टनर भी शामिल थे.
कौन हैं सौरभ कृपाल?
सौरभ कृपाल सीनियर वकील और पूर्व चीफ जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे हैं. सौरभ पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ बतौर जूनियर काम कर चुके हैं. वे कमर्शियल लॉ के एक्सपर्ट भी हैं. कृपाल ने दो दशकों से अधिक समय तक कानून का अभ्यास किया है. इस साल मार्च में, कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था.
सौरभ कृपाल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है, वहीं लॉ की डिग्री ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पूरी की है. वहीं कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से लॉ में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई की है. वे सुप्रीम कोर्ट में करीब 20 साल प्रैक्टिस कर चुके हैं. साथ ही यूनाइटेड नेशंस के साथ जेनेवा में भी काम कर चुके हैं. वे समलैंगिक हैं और LGBTQ के अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं. उन्होंने ‘सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट’ किताब को एडिट भी किया है.
धारा 377 खत्म करवाने का केस लड़कर चर्चा में आए थे सौरभ
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 पर अहम फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. इसके साथ ही अदालत ने सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाने को अपराध के दायरे से बाहर कर धारा 377 को रद्द कर दिया था. इस मामले में सौरभ कृपाल ने पिटीशनर की तरफ से पैरवी की थी.
सौरभ, अरुंधति काटजू और मेनका गुरुस्वामी सहित वकीलों की टीम का हिस्सा थे, जो उस मुकदमे में सबसे आगे थे, जिसके कारण 6 सितंबर, 2018 को धारा 377 को ऐतिहासिक रूप से पढ़ा गया. कृपाल इस मामले में दो मुख्य याचिकाकर्ताओं नवतेज जौहर और रितु डालमिया के वकील थे. अदालत ने उस दिन एक ही लिंग के दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.
पदोन्नति की सिफारिश पर किसने क्या कहा
- इसे देश में LGBTQIA अधिकारों के लिए हाथ में एक बड़े शॉट के रूप में देखा जा रहा है. एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी ने ट्वीट करते हुए इसकी सराहना की है.
- मानवाधिकार रक्षक और अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, “आखिरकार हम एक समावेशी न्यायपालिका बनने के लिए तैयार हैं, जो यौन अभिविन्यास पर आधारित भेदभाव को समाप्त कर रही है.”
- फिल्म निर्माता अपूर्व असरानी ने ट्वीट किया, “सौरभ कृपाल समलैंगिक के रूप में पहचान रखते हैं और एलजीबीटीक्यू अधिकारों के बारे में मुखर हैं. HC की सिफारिश के बावजूद कॉलेजियम ने 4 बार उनकी पदोन्नति पर कॉल को टाल दिया. आज वह दिल्ली हाई कोर्ट में जज बनने वाले हैं. बॉब डायलन के शब्दों में, ‘द टाइम्स दे आर ए-चेंजिंग’.”
- फैलो फिल्म निर्माता ओनिर ने भी इस कदम की सराहना करते हुए ट्वीट किया, “आज सुबह के साथ बधाई देने के लिए कितनी खूबसूरत सशक्त खबर है. उन सभी LGBTQIA कार्यकर्ताओं का सम्मान और आभार, जिन्होंने इसे संभव बनाने के लिए खुले तौर पर संघर्ष किया है.”
- समान अधिकार कार्यकर्ता हरीश अय्यर ने सबरंगइंडिया से कहा, “अगर सिफारिश स्वीकार कर ली जाती है, और सौरभ कृपाल को वास्तव में न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, तो यह LGBTQIA+ समुदाय उपहास और अदृश्यता के इतिहास के बाद भारत को आगे बढ़ने में मदद करेगा। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस समुदाय ने सेवा की है, सेवा कर रहे हैं और देश की सेवा करेंगे. यह कदम बंद कोठरी के दरवाजे खोल देगा और दुनिया को हमारे जीवन, योगदान और एक कारण से परे अस्तित्व के बारे में बताएगा.”
समलैंगिकता क्या है?
समलैंगिकता का मतलब होता है किसी भी व्यक्ति का समान लिंग के व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण. साधारण भाषा में किसी पुरुष का पुरुष के प्रति या महिला का महिला के प्रति आकर्षण. ऐसे लोगों को अंग्रेजी में ‘गे’ या ‘लेस्बियन’ कहा जाता है.
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क्या है कॉलेजियम सिस्टम?
कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा चार सीनियर मोस्ट जजों का पैनल होता है. यह कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के अप्वाइंटमेंट और ट्रांसफर की सिफारिशें करता है. ये सिफारिश मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जाती हैं. इसके बाद अप्वाइंटमेंट कर दिया जाता है.
रिव्यू के लिए भी कह सकता है केंद्र
कॉलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों पर केंद्र फिर से विचार करने के लिए भी कह सकता है, लेकिन अगर कॉलेजियम फिर से अपनी बात दोहराए तो केंद्र इनकार नहीं कर सकता. हालांकि, नियुक्ति में देरी की जा सकती है.
अमेरिका, ब्रिटेन में भी हैं समलैंगिक जज
बेथ रॉबिन्सन, अमेरिका
रॉबिन्सन को इसी महीने की 3 तारीख को अमेरिका के फेडरल सर्किट कोर्ट की जज नियुक्त किया गया है. वे फेडरल अपील कोर्ट की पहली लेस्बियन महिला जज हैं.
सर टेरेन्स ईथरटन, ब्रिटेन
ईथरटन ने सितंबर 2008 लॉर्ड जस्टिस ऑफ अपील की शपथ ली थी। वे ब्रिटेन के पहले घोषित समलैंगिक लॉर्ड जस्टिस ऑफ अपील हैं.