संवैधानिक मूल्यों को लागू करना सरकारों की पहली प्राथमिकता  होनी चाहिए :रामनाथ शिवेंद्र

आज लोकतांत्रिक मूल्य कटघरे में खड़े हैं : राजेश चौबे


रॉबर्ट्सगंज। जिस समतामूलक समाज का सपना आजादी के आंदोलन के दौरान परवान चढ़ा था आज वह बर्बाद हो रहा है. मुल्क नफरत, गैर बराबरी और कारपोरेट फासीवाद की आग में झुलस रहा है यदि समय रहते  स्वतन्त्रता, समता,बंधुता और इंसाफ पर आधारित संवैधानिक मूल्यों के लिए संघर्ष नहीं किया जाएगा तो हमारी बसुधैव कुटुम्बकम की विरासत खतरे में पड़ जाएगी।

आज जरूरत है कि संविधान की प्रस्तावना को आत्मसात कर उसे सुदूर ग्रामीण अंचलों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाए. जिससे जन मानस को न सिर्फ संवैधानिक मूल्यों की जानकारी हासिल हो बल्कि इन मूल्यों पर आधारित समाज निर्मित करने में भी आसानी हो। उक्त बातें राबेर्टसगंज के डिजायर सभागार में राइज एंड एक्ट प्रोग्राम के तहत आयोजित राष्ट्रीय एकता,शांति एवं न्याय विषयक सम्मेलन में वक्ताओं ने कही। 

मुख्य वक्ता रामनाथ शिवेंद्र ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान की आत्मा है इसे बचाये रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। आज प्रतिगामी ताकते न केवल संवैधानिक मूल्यों को चुनौती दे रही है बल्कि सदियों से स्थापित विश्व में हमारी पहचान के लिए भी खतरा पैदा कर रही हैं। धार्मिक पहचान और उसपर आधारित राष्ट्रवाद को महत्व दिए जाने से विभिन्न समाजों के बीच टकराव की स्थिति पैदा होगी. यह भारत जैसे विविधता वाले मुल्क के लिए ठीक नहीं है इससे सावधान रहने की जरूरत है।       

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता राजेश चौबे ने कहा कि सदियों से भारतीय समाज मेल-जोल से रहने का हामी रहा है. हमने पूरी दुनिया को सिखाया है कि विभिन्नता हमारी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है।आज दुनिया भर में राजनीति के आयाम बदले हैं और लोकतांत्रिक मूल्य कटघरे में खड़े हैं। हमारा मुल्क भी इससे प्रभावित हुआ है। बावजूद इसके यह सोच लेना कि सभी  सरकार की सोच के साथ है ठीक नहीं है। हमारी एक बड़ी जमात आज भी मौजूद खतरों के बीच जनता और मुल्क के सवालों को उठा रही है।     

रामजनम कुशवाहा ने कहा कि हमारी कोशिश छोटी है पर समाप्त नहीं हुई है। हम सरकार से तब तक लड़ते रहेंगे जब तक   एक बेहतर समाज का निर्माण न हो जाये। हमारी कोशिश को सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में देखा जा सकता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की शोध छात्रा अर्शिया खान ने कहा कि आज सियासत लोगों को जोड़ने की जगह बांटने का काम कर रही है।

हम एक ऐसे भारत की ओर बढ़ रहे हैं. जो नफरती उन्माद से परिपूर्ण है जब कि भारतीय समाज और राष्ट्र  प्रेम और अहिंसा पर आधारित रहा है। उन्होंने कहा कि आज बिना किसी अपराध के आदिवासियों को जेलों में डाल दिया जा रहा है. जबकि बड़े बड़े घपले-घोटाले करने वालों को तमाम छूट मिली हुई है। आज सियासत हमें तोड़ रही है जोड़ नहीं रही है। हमें सोचना पड़ेगा की वे कौन लोग हैं जो इस साझी विरासत के खिलाफ हैं। 

नाहिदा आरिफ ने कहा कि आजादी के आंदोलन और उससे भी सैकड़ों साल पहले से भारत साझी विरासत और मेल जोल की परंपरा को समेटे हुए निर्मित हुआ है जिसे आज कुछ ताकतें खत्म कर देना चाहती है. हमें इनसे सावधान रहना होगा।   द्वितीय सत्र में जिलेवार प्रतिनिधियों को समूह मे बाँट कर दलीय चर्चा द्वारा स्थानीय समस्याओं को जानने की कोशिश की गई तथा राइज एंड एक्ट कैसे समतामूलक समाज निर्माण करने में उनकी मदद कर सकता है। 

गोष्ठी को विभिन्न सामाजिक वर्गों के प्रतिनिधियों रामजनम कुशवाहा, सतीश सिंह, फजलुर्रहमान अंसारी, श्रुति नागवंशी, लक्ष्मण प्रसाद, हरिश्चंद्र बिंद, रीता पटेल अयोध्या प्रसाद, कृष्ण भूषण मौर्य, रामकृत, राजेश्वर,जयप्रकाश बौद्ध आदि ने भी सम्बोधित किया। गोष्ठी में पूर्वांचल के अनेक जिलों के लोग उपस्थित रहे।  कार्यक्रम का विषय स्थापना डॉ मोहम्मद आरिफ, संचालन कमलेश कुमार धन्यवाद ज्ञापन अयोध्या प्रसाद और स्वागत कृष्णभूषण मौर्य ने किया।

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