कविता: स्पष्टता

कवि स्वामी दास’

स्पष्टता
 
स्पष्टता थी कहां उसके जीवन में
बस कल्पनाओं में ही जीया करता था
जीवन तो मिला था उसको साफ़ सुथरा सा
दुनिया के नज़रिए से मैला किया करता था
 
लगता था उसको जो भी
चल रहा दुनिया में वही सबकुछ था
लेकिन जिंदा रखने वाली सांसों के आगे
कुछ भी पाना और खोना तो तुच्छ था
कुछ भी मिलता या खो जाता तो
अपनी सांसों को भूला दिया करता था
 
सुरज को उगते चांद को ढलते
सांसों को अपने आप चलते
देखा करता था
असली प्रेम तो आस-पास था उसके
फिर भी प्रेम को जबरदस्ती का
व्यापार समझ कर किया करता था।
(यह कवि का कलम नाम है)
(घोषणा- प्रस्तुत रचना मेरी मौलिक रचना है और ये किसी भी काॅपीराईट का उलंघन नहीं करती है.)

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