क्या UP में टल सकते हैं विधान सभा चुनाव!

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के बढ़ते प्रभाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता जताई है। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयुक्त से अनुरोध किया है कि विधानसभा चुनाव में कोरोना की तीसरी लहर से जनता को बचाने के लिए राजनीतिक पार्टियों की चुनावी रैलियों पर रोक लगाई जाए। उनसे कहा जाए कि चुनाव प्रचार दूरदर्शन और समाचार पत्रों के माध्यम से करें।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की चुनाव आयोग से अपील, रैली प्रचार रोकें, चुनाव टालने पर करें विचार

कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुये उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को कुछ महीनों के लिये टालने की बात उठने लगी है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कोरोना महामारी की वजह से उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव कुछ समय के लिए टालने की सलाह देकर राजनीतिक हलकों में सनसनी फैला दी है। 

हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकर ) का हवाला देते हुये यूपी में चुनाव फिलहाल टालने पर प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग को विचार करने की सलाह ​दी है।

न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयुक्त से अनुरोध किया है कि विधानसभा चुनाव में कोरोना की तीसरी लहर से जनता को बचाने के लिए राजनीतिक पार्टियों की चुनावी रैलियों पर रोक लगाई जाए। उनसे कहा जाए कि चुनाव प्रचार दूरदर्शन और समाचार पत्रों के माध्यम से करें। 

Allahabad haikort order
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश

उन्होंने आगे कहा कि पार्टियों की चुनावी सभाएं एवं रैलियों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं। प्रधानमंत्री चुनाव टालने पर भी विचार करें, क्योंकि जान है तो जहान है।

कहीं यह बीजेपी का प्लान बी तो नहीं!

राजनीतिक विश्लेषक संजय शर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की इस पहल पर संदेह जताया है कि यूपी में बीजेपी को फिलहाल जीत की उम्मीद नजर नहीं आ रही। यही वजह है कि उनकी ओर से यह कदम उठाये जा रहे होंगे। उन्होंने याद दिलाया कि अगर इसके पीछे वाकई कोरोना संक्रमण का खतरा ही होता तो फिर हमें बिहार और बंगाल के चुनावों को याद करना होगा। वहां बीजेपी को अपनी जीत की उम्मीद थी, इसलिये कोरोना काल में भी चुनाव स्थगित नहीं किये गये। फिर, आज कोरोना के नाम पर यूपी के चुनाव टालने के पीछे की रणनीति हमारे अंदर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति संदेह पैदा करती है।

राजनीतिक विश्लेषक व समीक्षक संजय शर्मा ने इस मामले पर यूपी के पंचायत चुनावों को याद करते हुये कहा कि तब यूपी में कोरोना से मरने वालों की संख्या गिनती से बाहर हो चुकी थी। राज्य में हर ओर लाशें ही लाशें नजर आ रही थीं। यहां तक कि गंगा में भी लाशों के ढेर बहते दिख रहे थे। इस दौरान जनता कई बार हाईकोर्ट के समक्ष जाकर चुनाव पर रोक लगाने की गुहार करती रही, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी एक न सुनी। फिर आज तो यूपी में कोरोना के मामले इतने भी नहीं दिख रहे हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट चुनाव रोकने की सलाह चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री को दे।

दरअसल, इसके पीछे बीजेपी का प्लान बी हो सकता है। हो सकता है कि बीजेपी छह महीने के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्यपाल के माध्यम से प्रदेश में सरकार चलाना चाहती है ताकि यूपी में योगी का चेहरा जनता भूल जाये और राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के माध्यम से अंदरखाने पीएम मोदी ही यूपी की बागडोर संभालें। इस दौरान प्रदेश में विकास और शिलान्यास की गंगा बहा दी जाय, जिससे जनता योगी सरकार को भूल जाय। इसके पीछे बीजेपी की यह मंशा भी हो सकती है कि योगी को पीछे करके बीते पांच वर्षों से प्रदेश में खुद को दरकिनार महसूस कर रहे ब्राह्मण और दलित समुदाय के लोगों की सरकार के प्रति नाराजगी को भी दूर किया जा सके। यकीनन बीजेपी अपने प्लान बी की बदौलत राज्य में बीजेपी के विरोध में चल रही हवा का रुख पलटना चाह रही है।

यूपी की राजनीति में अगले 15 दिन बेहद महत्वपूर्ण

संजय शर्मा आगे कहते हैं कि निस्संदेह यूपी की राजनीति में अगले 15 दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाले हैं, क्योंकि खुद समाजवादी पार्टी भी चुनाव की तिथियों की घोषणा का इंतजार करना चाह रही है। समाजवादी पार्टी में बीजेपी के कुछ अन्य नेता और मंत्री भी शामिल होने की योजना बना रहे थे, लेकिन राज्य में अगर राष्ट्रपति शासन लगता है तो यकीनन यह सब रुक जायेगा और फिर यूपी की राजनीति में बहुत कुछ बदल जायेगा। ऐसे में समाजवादी पार्टी भी अब चुनाव की तिथियों की घोषणा तक बहुत ज्यादा शोरशराबा करना पसंद नहीं करेगी।

बहरहाल, कोरोना के नाम पर यूपी चुनावों को टालने के पीछे वाकई सरकार है या फिर खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे आगे बढ़कर संज्ञान में लिया है ताकि सरकार इसकी गंभीरता पर विचार कर सके, यह तो वक्त ही बतायेगा।

न्यायमूर्ति शेखर कुमार ने यूपी में चुनाव टालने की बात जेल में बंद आरोपी संजय यादव की जमानत पर सुनवाई के दौरान की है। संजय के खिलाफ इलाहाबाद के थाना कैंट में मुकदमा दर्ज है। उसे बृहस्पतिवार को जमानत मिल गई। हाईकोर्ट ने कहा कि संभव हो तो फरवरी में होने वाले चुनाव को एक-दो माह के लिए टाल दें, क्योंकि जीवन रहेगा तो चुनावी रैलियां, सभाएं आगे भी होती रहेंगी।

जीवन का अधिकार हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में दिया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि दैनिक समाचार पत्र के अनुसार 24 घंटे में 6 हजार नए मामले मिले हैं। 318 लोगों की मौतें हुई हैं। यह समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है। इस महामारी को देखते हुए चीन, नीदरलैंड, आयरलैंड, जर्मनी, स्कॉटलैंड जैसे देशों ने पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लगा दिया है।

बहरहाल, कोरोना के नाम पर यूपी चुनावों को टालने के पीछे वाकई सरकार है या फिर खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे आगे बढ़कर संज्ञान में लिया है ताकि सरकार इसकी गंभीरता पर विचार कर सके, यह तो वक्त ही बतायेगा।

राजनीतिक विश्लेषक राम दत्त त्रिपाठी का कहना है कि जस्टिस शेखर कुमार यादव की प्रधानमंत्री को दी गयी सलाह अजीबोग़रीब है। समय से चुनाव करना एक संवैधानिक अनिवार्यता है और इसका निर्णय करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। ज़मानत के मामले में इस तरह विधान सभा चुनाव टालने की टिप्पणी करना और प्रधानमंत्री को सलाह देना विधि सम्मत नहीं है।

इसी तरह श्री त्रिपाठी के अनुसार अदालत द्वारा कोरोना मामले में सरकार की प्रशंसा करना भी अनावश्यक था।

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