बनावटी बुद्धिमत्ता भूमण्डल बर्बादी की बुनियाद!

टेक्नोलॉजी के दौर में हम 5वीं पीढ़ी में हैं और इसकी सबसे बड़ी देन है आर्टिफीशियल इण्टेलिजेंस यानी एआई। अगर आप 'एआई' को सिर्फ रोबोट से जोड़ रहे हैं तो ऐसा नहीं है। बल्कि रोबोट ऐसी मशीन है जिसमें एआई प्रोग्राम फीड किये जाते हैं ताकि वह बेहतर तरीके से कार्य निष्पादन (परफॉर्म) कर सके।

समय-चक्र

डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर

दुनियाभर में आजकल बनावटी बुद्धिमत्ता का दौर है। लोगों को लग सकता है कि इस समय सबसे अधिक चर्चा या, हड़कम्प तो कोरोना की नयी किस्म को लेकर है जिसे ‘ओमिक्रॉन‘ नाम दिया गया है। …परन्तु यह केवल भ्रम होगा! दरअसल, कोरोना भी बनावटी बुद्धिमत्ता का ही एक उत्पाद अथवा, संस्करण है। ( तथापि इस पर बात बाद में करेंगे।) हाँ! उल्लेख अवश्य कि ‘कोरोना के आविष्कार’ के पीछे छुपे मक़सद को 2020 की शुरुआत में ही विश्लेषित करते हुए उज़ागर किया था। आज विश्वभर के बहुतायत वैज्ञानिक अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे होंगे। इनसे अलग अमेरिका और चीन एक-दूसरे को रौंदने की होड़ में हैं। दोनों के ही अरमान एवं लक्ष्य व्यावसायिक फ़ायदे पर टिके हैं। इसके लिए दोनों ने अपनी नियंत्रित मशीनरी पूरी तरह अपने लक्ष्य हासिल करने को झोंक दी है। ख़ुद को ‘दुनिया का दारोगा’ समझने वाला अमेरिका कभी दो डग आगे दिखता है, तो अगले दिन चीन उसे पीछे छोड़ देने का दम्भ दिखाता नज़र आता है। इसी के बीच भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिन्स का विचार गूँजता है कि “आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस मानव इतिहास में सर्वाधिक बड़ी तथा सबसे नुकसानदेह खोज़ सिद्ध हो सकता है!” आज का चिन्तन हॉकिन्स के ही विचारों की रोशनी में है। ऊपर कहा गया आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस ही बनावटी बुद्धिमत्ता अर्थात ‘एआई’ है। इसे कहीं ‘कृत्रिम उत्थान’ तो कहीं और नाम दिये जा रहे हैं।

बुद्धि क्या है

सहज रूप में बुद्धि एक अनदेखा गुणात्मक बल है। यह हमारे, साथ ही दूसरों की क्रियाओं से अनुभूत समझ से सीखने में सहायता करती है। इसके परिणामस्वरूप हमारे व्यवहार में बदलाव सम्भव हो पाता है। यह उपयुक्त प्रतिक्रियाओं तथा संज्ञानात्मक योग्यता की एक सामूहिक अथवा, व्यवहृत अभिव्यक्ति रूपी स्वाभाविक शक्ति होती है। इसका सञ्चालन आत्मनिष्ठ स्तर पर होता है। इसका नैसर्गिक स्वभाव सृजन है जो संसार का हित चाहता है। जिस चिन्तन, सोच, समझ का उद्देश्य किसी को पछाड़ने की भावनाश्रित हो, स्वभावतः वह विनाशकारी ही होगा।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता

सहज बुद्धि के विपरीत (सरलतम शब्दों में) कृत्रिम बुद्धिमत्ता वह गतिविधि है जिसके द्वारा मशीनों को बुद्धिमान बनाने का काम किया जाता है…जबकि बुद्धिमत्ता वह गुण है जो किसी इकाई को अपने वातावरण में उचित और दूरदर्शिता के साथ कार्य करने में सक्षम बनाता है।

तकनीकी परिभाषा

‘आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस’ वह बुद्धिमत्ता है जो मशीनें प्रदर्शित करती हैं। यह हमें ऐसी मशीनें बनाने की अनुमति देता है जो कई कार्य कर सकती हैं तथा (समर्थकों के दावे के अनुसार) त्रुटि के बिना वास्तविक समस्याओं को हल कर सकती हैं। उनके मुताबिक़ (वास्तव में), ‘एआई’ दोहराव वाले कार्यों को स्वचालित करके दक्षता एवं उत्पादकता में सुधार कर सकता है।

काम का ढंग

बनावटी बुद्धिमत्ता के ज़रिये कम्प्यूटर सिस्टम या, रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है। उसी के आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है। अर्थात ‘आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस’ कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या, फिर मनुष्य की तरह ‘इण्टेलिजेंस’ से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है।

लाभ और नुकसान

अपने सोच में बनावटी बुद्धिमत्ता दुनियाभर में स्वाभाविक बुद्धि को निरर्थक करके मनुष्य को केवल एक औज़ार बनाकर रख देगी। यह हर कार्य के लिए मशीनों पर आश्रित होगा। इससे कमोबेश समूची दुनिया की आबादी पर अङ्कुश लगाने की कोशिश हो रही है। और भी अनेक लोग कृत्रिम बुद्धि (एआई) को मानवता के लिए ख़तरा मानते हैं, अगर यह अनावश्यक रूप से प्रगति करता है! अन्य मानते हैं कि एआई, पिछले तकनीकी क्रान्ति के विपरीत, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का ख़तरा पैदा करेगा। यह दृष्टिकोण अधिक सही समझ आता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भाषा

‘प्रोलॉग’ एक कम्प्यूटर भाषा है जिसका उपयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए किया जाता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता में प्रयुक्त कुछ अन्य भाषाएँ हैं- एआईएमएल (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मार्कअप लैंग्वेज), आईपीएल, लिस्प, स्मालटॉक, स्ट्रिप्स, प्लैनर, ‘आर’, पाइथन, हासकेल, सी++ औऱ पर्ल।

सहयोगी भाषा

‘ब्लैकरॉक’ के एआई इञ्जन ‘अलादीन’ का उपयोग कम्पनी के भीतर और ग्राहकों के लिए निवेश निर्णयों में मदद करने हेतु किया जाता है। कार्यात्मकताओं की इसकी विस्तृत शृंखला में समाचार पढ़ने के लिए प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण का उपयोग शामिल है, जैसे समाचार, ब्रोकर रिपोर्ट और सोशल मीडिया फीड।

बुद्धि के प्रकार

सनातन ‘वेदिक’ सोच में बुद्धि को कल्याणकारी सोच, समझ तथा व्यवहार निरूपित किया गया है। इसके विपरीत कथित ‘आधुनिक युग’ में इसके निमित्त कई वैज्ञानिक मान्यताओं का चलन है। इस सम्बन्ध में ‘बर्ट’ तथा ‘वर्नन’ का पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धान्त इस प्रकार है:-
(1) सामान्य मानसिक योग्यता
(2) मुख्य समूह कारक
(3) लघु समूह कारक
(4) विशिष्ट मानसिक योग्यता

बुद्धि का मापन

सामान्यतया बुद्धि को पैमाने से बाहर समझा जाता रहा है। इसके विपरीत वर्तमान दौर में बुद्धि-लब्धि निकालने के लिए मानसिक आयु को वास्तविक आयु से भाग दिया जाता है; जैसे- यदि किसी बालक की वास्तविक आयु 8 वर्ष है और वह 10 वर्ष के सामान्य बालकों का कार्य पूर्ण कर लेता है तो उसकी मानसिक आयु 10 वर्ष होगी। दशमलव को पूर्ण बनाने के लिए 100 से गुणा कर देते हैं।

बुद्धि के स्वरूप

बुद्धि को सामान्यतः सोचने-समझने और सीखने तथा निर्णय करने की शक्ति के रूप में देखा-समझा जाता है। इन्हीं शक्तियों के आधार पर व्यक्ति को कुशाग्र, तेज बुद्धि, प्रतिभाशाली, बुद्धिमान, चतुर आदि विशेषणों से अलङ्कृत किया जाता है। एक सामान्य व्यक्ति की दृष्टि में वही व्यक्ति बुद्धिमान है जो साक्षर एवं ज्ञानी है।

टेक्नोलॉजी के दौर में हम 5वीं पीढ़ी में हैं और इसकी सबसे बड़ी देन है आर्टिफीशियल इण्टेलिजेंस यानी एआई। अगर आप ‘एआई’ को सिर्फ रोबोट से जोड़ रहे हैं तो ऐसा नहीं है। बल्कि रोबोट ऐसी मशीन है जिसमें एआई प्रोग्राम फीड किये जाते हैं ताकि वह बेहतर तरीके से कार्य निष्पादन (परफॉर्म) कर सके।

हम अपने आसपास की वस्तुओं पर दृष्टि डालें तो ‘एआई’ तकनीक (टेक्नोलॉजी) से जुड़े कई उदाहरण सामने आते हैं। उदाहरणार्थ- कम्प्यूटर या, फोन पर लूडो और शतरंज जैसे गेम खेलना, एलेक्सा जैसे वर्चुअल असिस्टेण्ट को बोल कर कमाण्ड देना यानी वॉइस रिकग्नाइजेशन, ऑटोमैटिक चलने वाली गाड़ियाँ तथा कई सारे रोबोट उपकरण (डिवाइस)। ये सभी बनावटी बुद्धिमत्ता का हिस्सा हैं। यद्यपि इन सबके बावज़ूद इस तकनीक में अभी बहुत सारे विकास होने हैं।

एआई के नफ़े-नुकसान

वर्तमान (आधुनिक ‘टेक्नोलॉजी’ की पाँचवी पीढ़ी) से एक कदम आगे की बात करें तो आने वाले समय में मशीनों पर ‘आर्टिफीशियल इण्टेलिजेंस टेक्नोलॉजी’ की पकड़ काफी मजबूत हो जाएगी। ऐसे में कई सारे बदलाव देखने मिलेंगे। उदाहरण के लिए चिकित्सा क्षेत्र में शल्य क्रिया (ऑपरेशन्स) करने के ‘रोबो’ की मदद ली जाएगी, ऐसे में इलाज कम समय में और बेहतर तरीके से हो सकेगा। आर्मी में ‘रोबोट’ इस्तेमाल किये जा सकते हैं, इससे इंसानों की जान पर आने वाला ख़तरा टल जाएगा। घर के रोजमर्रा के काम रोबो से करवाये जाएँगे। (इससे बेकारी बढ़ेगी।) इसके अतिरिक्त शिक्षा एवं दूसरे क्षेत्रों में ये टेक्नोलॉजी काम आएगी। एआई तकनीक के पैरोकारों के अनुसार कुल मिलाकर अगर कल्पना (इमेजिन) की जाए तो फिल्म ‘रोबोट’ की तरह कोई ऐसी मशीन जो चिट्ठी-रोबो की भाँति सभी काम कर सके- वैज्ञानिक इसके लिए काम कर रहे हैं। ये सब कुछ सिर्फ एक दुरुस्त ‘एआई’ प्रोग्रामिंग से ही सम्भव हो सकता है परन्तु प्रश्न उठता है कि कहीं ये टेक्नोलॉजी भी ‘चिट्टी रोबो’ की तरह फेल न हो जाए, या फिर कहीं इंसान इस टेक्नोलॉजी के ज़रिये अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहा है?

एआई कितना ख़तरनाक

दूसरी तरफ़ बनावटी बुद्धिमत्ता कितना नुकसानदेह हो सकती है, इसे यों समझ सकते हैं। जानकारों के मुताबिक़ विनिर्माण एवं और उत्पादन से जुड़े क्षेत्रों में ‘एआई’ पर्याप्त लाभदायक हो सकता है, क्योंकि मज़बूत सामग्री से बने होने की वजह से इंसानों के मुकाबले रोबोट से लम्बे समय तक काम लिया सकता है। इससे कम्पनियों को तो काफी फायदा होगा मग़र आम आदमी के लिए बेरोजगारी और मुसीबतें बढ़ जाएँगी। इससे अनेक क्षेत्रों में लोगों की नौकरियाँ समाप्त हो जाने की भरपूर आशङ्का है। तब अनुपयोगी होते हुए सहज मानव-बुद्धि बेकर हो जाएगी। जिस तेजी बनावटी बुद्धिमत्ता के उपकरणों का विकास हो रहा है, उससे नयी-नयी दिक़्क़तें भी सामने आ रही हैं। ‘वॉइस’ और ‘फेस रिकग्नाइजेशन’ टेक्नोलॉजी के जरिये उपयोगकर्ता की निजता पर ख़तरा बना रहता है। आवश्यक नहीं कि एआई मशीनें हर बार उपयोग करने वाले के निर्देशन (कमाण्ड) को सही तरीके से समझ सकें। कई अर्थों में इसका असर उल्टा हो सकता है।

भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिन्स ने कहा था:- “भौतिक रूप से (फिजिकली) आदमी धीमी गति से ‘ग्रोथ’ करता है, लिहाज़ा वह मशीनों का मुक़ाबला नहीं कर पाएगा। उसकी बुनियादी जरूरतों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा और यहीं से इंसान के अन्त की शुरुआत हो सकती है।”

एआई कितना सीमित?

विशेषज्ञों के अनुसार यद्यपि बनावटी बुद्धिमत्ता को लेकर कितनी ही बड़ी बातें की जाएँ लेकिन स्टोरेज के मामले में ये सीमित है। एक ओर जहां इंसान के दिमाग में असीमित ‘डेटा स्टोर’ हो सकता है, वहीं हर मशीन की अपनी सङ्ग्रहण सीमा होती है। फ़िलहाल इस टेक्नोलॉजी में इसका कोई तोड़ नहीं निकल पाया है। इसके अलावा निर्णय लेने या, गफ़लत दूर करने में बहिनमशीनें इंसान का मुकाबला नहीं कर सकती हैं!

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