UP Election 2022: पश्चिमी यूपी में पहले चरण की वोटिंग बहुत कुछ कहती है…

यहां के किसान, जाट, युवा, दलित, मुसलमान, हर वर्ग ने ये तय कर लिया था कि उन्हें इस बार बीजेपी का सफाया करना है, जिसका असर बूथों पर देखने को ​भी मिला.

पश्चिमी यूपी में पहले चरण के मतदान हो चुके हैं. पिछले चुनाव की तुलना में यहां 2 प्रतिशत कम वोटिंग होने की खबरें आयीं. लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इसका बहुत ज्यादा असर पश्चिमी यूपी के चुनाव परिणामों पर देखने को मिलेगा. यहां के किसान, जाट, युवा, दलित, मुसलमान, हर वर्ग ने ये तय कर लिया था कि उन्हें इस बार बीजेपी को सबक़ सिखाना है, जिसका असर बूथों पर देखने को ​भी मिला. आइये, पहले चरण की वोटिंग को लेकर वरिष्ठ पत्रकारों और कुछ खास लोगों का क्या कहना है, जानने की कोशिश करते हैं…

सुषमाश्री

वीरेंद्र सेंगर, वरिष्ठ पत्रकार

पश्चिमी यूपी के नोएडा में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र सेंगर कहते हैं, अगर नोएडा में बीजेपी हारती है तो उसके वोट 50 प्रतिशत से नीचे चली जायेगी. इस बार यहां बीजेपी को काफी मेहनत करनी पड़ी है, इसके बावजूद बीजेपी को यहां बहुत कम वोट पड़े हैं. शहर के मुस्लिम, दलित, गरीब, सभी लोग परिवर्तन की बयार बहाने के लिये ही घर से बाहर चले गये. बीजेपी के कट्टर समर्थकों ने जाकर वोटिंग की लेकिन मोदी समर्थकों में वोट डालने को लेकर उतना जोश नहीं देखा गया और वैसे कितने ही लोग वोट डालने के लिये घर से निकले ही नहीं.

कुमार भवेश चंद्र, वरिष्ठ पत्रकार

द ​इंडियन पोस्ट के संपादक कुमार भवेश चंद्र ने कहा कि शहरों में दलितों, गरीबों, मुस्लिमों, खासकर झुग्गी बस्तियों से लोग परिवर्तन के लिये बूथों तक पहुंचे, जो साफ दिखाता है कि देश वाकई में दो भागों में बंट गया है, इसका असर धरातल पर भी देखने को मिल रहा है. यहां भी देखने को मिल रहा है कि अमीर और गरीबों के बीच की खाई पहले से कहीं बहुत ज्यादा बढ गयी है, जिसे पाटना अब शायद आसान नहीं होगा. इसी का असर पहले चरण की वोटिंग में गुरुवार को देखने को मिला. हालांकि, जहां तक महिलाओं की बात है ​तो उन्होंने माना कि योगी जी के काल में उन्होंने खुद को पहले से ज्यादा सुरक्षित पाया है, इसलिये माना जा सकता है कि महिलाओं के वोट बीजेपी के खाते में गये होंगे.

संजय शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

चैनल 4 पीएम के संपादक संजय शर्मा कहते हैं कि यूपी में पहले चरण की वोटिंग से पहले बीजेपी के सारे विज्ञापनों में से अचानक गृहमंत्री और बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का चेहरा हटा लिया गया. कारण साफ था. पहले चरण के चुनाव से पहले बीजेपी ने जो सर्वे करवाया, उसकी रिपोर्ट के मुताबिक किसानों ने मन बना लिया है कि इस बार ​बीजेपी का सूपड़ा साफ करना है. यही वजह रही कि आखिर के दिनों में न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी रैलियां करने पहुंचे और न ही अमित शाह का चेहरा सामने लाने की कोशिश की गयी. बीजेपी को समझ आ गया था कि धार्मिक ध्रुवीकरण की उनकी रणनीति इस बार पश्चिमी यूपी में किसी भी तरह से काम नहीं करने वाली है. वहीं, योगी आदित्यनाथ के शिमला वाले बयान पर जयंत चौधरी के पलटवार का भी किसानों पर काफी असर हुआ. उन्होंने तय कर लिया कि किसी भी कीमत पर वे ​हाथरस में जयंत पर चली लाठी का बदला वोट के माध्यम से इस बार बीजेपी से लेंगे. हालांकि, पिछली बार की तुलना में इस बार पश्चिमी यूपी में 2 प्रतिशत कम वोटिंग हुई है, लेकिन इसके बावजूद माना जा रहा है कि बीजेपी की हालत पश्चिमी यूपी में सही नहीं दिख रही.

संजय शर्मा ने ये भी बताया कि ज्यादातर मीडिया चैनलों को काफी पहले ही बीजेपी ने मोटी रकम दी थी. साथ ही कहा था कि वोटिंग वाले दिन चैनल को बीजेपी के बड़े नेताओं को लाइव दिखायेंगे. हुआ भी यही. लगभग डेढ लाख लोगों ने इस दौरान इन चैनलों को देखा भी, लेकिन फिर भी माना जा रहा है कि बीजेपी की हालत पश्चिमी यूपी में अच्छी नहीं लग रही है.

एम. रेहमान, मुजफ्फरनगर

मुजफ्फरनगर से आने वाले एम. रेहमान कहते हैं, इस बार कैराना नहीं चला, भाईचारा ही चला है. शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत जाटों का वोट पड़ा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में गठबंधन को बहुत अच्छा लगभग 70 प्रतिशत तक वोट पड़ा है. मुस्लिम वोटों का कोई डिविजन नहीं हुआ है, हालांकि हिंदुओं का वोट जरूर कुछ जगह पर डिविजन हुआ है, लेकिन मुसलमानों और जाटों के वोट बंटे नहीं हैं. जाटों का तो 60 फीसदी वोट लगभग गठबंधन को ही मिला है. यानी कहा जा सकता है कि हमारे पूरे जिले में बीजेपी और गठबंधन के बीच ही फाइट है. ऐसा लगता है कि इस बार यहां की कुछ छह सीटों में से तीन गठबंधन को मिलेंगी और तीन बीजेपी को, जबकि पहले सभी छह सीटें बीजेपी के पास थीं. कैराना और थानाभवन में गठबंधन जीत रहा है. श्यामली में हो सकता है कि बीजेपी एक सीट निकाल ले.

गन्ना किसान मंत्री सुरेश राणा को गन्ना किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. किसानों को इस सरकार में पिछली सरकार के मुकाबले कम दाम मिले, पिछला बकाया भी अब तक नहीं मिला और ब्याज भी नहीं मिला, जिसका खामियाजा सुरेश राणा को इस बार ​भुगतना पड़ रहा है.

प्रोफ़ेसर रविकान्त, लखनऊ

लखनऊ से प्रोफ़ेसर रविकान्त कहते हैं, चुनाव आयोग पूरा भाजपाई हो गया है! पहले, तो लगभग हर परिवार से एक नाम ही गायब कर दिया गया. दूसरा, पोलिंग बूथ इतनी दूर बनाया गया, जहाँ कुछ लोग पहुँचे ही नहीं. तीसरा, भाजपा ने अपने फेवर का वोट और साथ ही कुछ दूसरों का वोट भी पोस्टल बैलेट से डलवा लिया. सरकार ने खेला कर दिया है. जहाँ पर मार्जिन कम होगा, वहाँ भाजपा का प्रत्याशी जीत जाएगा. विपक्ष कब इस मुद्दे को उठाएगा? संगठन और कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता के कारण वोटर लिस्ट को नहीं जाँचा गया. ऊँची आवाज में नारे लगाने और हुजूम इकट्ठा करने से भाजपा के सामने नहीं लड़ा जा सकता. इस बात को कब समझेंगे विपक्षी दल?

विजेंद्र सिंह यादव, किसान नेता

किसान नेता विजेंद्र सिंह यादव ने पहले चरण की वोटिंग पर कहा कि पांच साल में बीजेपी ने किसी के लिये कुछ किया नहीं. बीजेपी की जुमलेबाजी, खोखले वायदे और ​जनता का मजाक उड़ाने वाली नीतियों का असर हुआ है. तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार ने किसानों के साथ जैसा व्यवहार किया था, उसका असर बूथों पर पूरी तरह से देखने को मिला है. आगे के चरणों में भी पश्चिम से चली इस हवा का असर देखने को जरूर मिलेगा.

डॉ. सुनीलम, किसान नेता

किसान नेता डॉ. सुनीलम ने कहा कि बड़ी संख्या में वोट डालने वालों के नाम काटे गये, बड़ी संख्या में ईवीएम के खराब होने की रिपोर्ट आयी, ऐसी कई और बातें हमें जगह जगह से सुनने को मिलीं, जिससे यह साफ हो जाता है कि बीजेपी को अपनी हार का आभास होने लगा है जिसके कारण उन्होंने कई तिकड़म करना शुरू कर दिया है. लखीमपुर खीरी के आरोपी आशीष मिश्रा को जमानत देने की खबर ने भी कल किसानों को एक बार फिर उस घटना की याद दिला दी. शायद यही वजह रही कि दोपहर के बाद ज्यादा वोटिंग हुई. उम्मीद की जा रही है कि ये सभी किसानों के साथ बीजेपी सरकार में हुई जोर जबरदस्ती के खिलाफ वोट करने के लिये बूथों तक पहुंचे.

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इसके अलावा बीएसपी सुप्रिमो मायावती का बुधवार रात वीडियो ट्वीट करके ये कहना कि किसी भी कीमत पर समाजवादी पार्टी की सरकार प्रदेश में नहीं बननी चाहिये, इससे उनके समर्थक दलितों को भी ये समझ आ गया कि बीजेपी के साथ जाने का तो कोई फायदा है नहीं, इसलिये उन्होंने भी सपा रालोद गठबंधन को अपने वोट दिये. जहां तक मुसलमानों की बात है तो उन्हें भी लगा कि कांग्रेस को फिलहाल वोट देने का कोई मतलब नहीं. इसलिये उनके वोट भी सपा रालोद गठबंधन को मिले. इसके अलावा जनता को भी दोनों लड़कों की साइकिल पर सवारी तेज नजर आयी, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने गठबंधन को ही अपने वोट देने का मन बनाया. वहीं, पीएम मोदी, शाह और योगी की धार्मिक ध्रुवीकरण की रणनीति इस बार बीजेपी के काम नहीं आयी.

विवेक कुमार जैन

पिछली बार आगरा की सभी नौ सीटें भाजपा के पास थीं. पिछली बार साढे 63 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो इस बार 60 प्रतिशत रह गया. यहीं नहीं, तकरीबन पूरे उत्तर प्रदेश में इस बार तीन से चार प्रतिशत मतदान घटा है. ये वही वोटर है जो सरकार से नाराज है और दूसरी पार्टियों को वोट देना नहीं चाहता, इसलिये इस बार उदासीनता के कारण घर से बाहर ही नहीं निकला.

पश्चिमी यूपी के वोटिंग पर पूरी चर्चा सुनने के लिये क्लिक करें…

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वहीं, महिलाओं की बात करें तो कुछ मुस्लिम महिलाओं को छोड़ दें अगर हम, तो बूथों पर जाकर हमने पाया कि ज्यादातर महिलाओं का झुकाव योगी जी की ओर था. उन्हें फ्री राशन मिल रहा था, सुरक्षा को लेकर भी वे योगी सरकार के फेवर में दिख रही थीं. यानी 50 प्रतिशत साइलेंट वोटर्स यानी महिलाओं का वोट हो सकता है कि बीजेपी की झोली में ही गिर रहा हो. हालांकि आगरा में इस बार बीजेपी की फाइट कुछ जगहों पर बसपा के साथ तो कुछ अन्य जगहों पर कांग्रेस के साथ भी दिखी.

मथुरा, गोवर्धन नगर जैसी कई सीटों पर भी बीजेपी को टफ फाइट नजर आ रही है. शहरी क्षेत्रों में बीजेपी के फेवर में ज्यादा वोट पड़ रहे हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में गठबंधन को. लेकिन हालात बताते हैं कि इस बार बीजेपी के लिये प्रदेश में सरकार बनाना आसान नहीं होगा.

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