ज्ञानवापी मस्जिद बनाम विश्वनाथ मंदिर विवाद में  नया मोड़ स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद  शनिवार को पूजा  के लिए जाएंगे

(मीडिया स्वराज डेस्क)

बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद बनाम विश्वनाथ मंदिर विवाद में उस समय एक नया मोड़ आया जब शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद ने घोषणा की है कि वे शनिवार को भगवान् आदि विश्वेश्वर के पूजन के लिए जाएंगे।उन्होंने केंद्र सरकार से उपासना स्थल अधिनियम 1991 को तत्काल समाप्त करने की माँग की है, “ताकि हिन्दू पुनः अपने स्थान को ससम्मान प्राप्त कर सकें और न्याय हो।” याद दिला दें कि पिछले दिनों न्यायालय के आदेश पर सर्वे के दौरान मस्जिद के वजूखाने के जलाशय में शिवलिंग के आकार का एक विशाल पत्थर मिला, जिसे मुस्लिम समुदाय फ़व्वारा कहता है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने ज्ञानवापी मंदिर मस्जिद विवाद पर एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, “हमारे शास्त्रों में स्थाप्यं समाप्यं शनि भौमवारे कहकर शनिवार को शुभ दिन कहा गया है। प्रकट हुए स्वयम्भू आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान् के पूजन के लिए शनिवार का दिन अत्यन्त उत्तम है। अतः इस दिन शुभ मुहूर्त में हम स्वयं पूजा पद्धति को जानने वाले विद्वानों एवं पूजा सामग्री के साथ भगवान् आदि विश्वेश्वर के पूजन के लिए जाएंगे।”

1991 के काला कानून को समाप्त करे

अविमुक्तेश्वरानंद ने ज्ञानवापी मंदिर मस्जिद विवाद पर यह भी कहा कि इस सन्दर्भ का 1991 का क़ानून न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।इस समय केन्द्र की सरकार बहुमत में है। उनको चाहिए कि वे उपासना स्थल अधिनियम 1991 को तत्काल समाप्त करें ताकि हिन्दू पुनः अपने स्थान को ससम्मान प्राप्त कर सकें और न्याय हो।

एक वक्तव्य में अविमुक्तेश्वरानंद ने ज्ञानवापी मंदिर मस्जिद विवाद पर कहा कि विगत वैशाख पूर्णिमा दिन सोमवार को काशी में शताब्दियों से तिरोहित श्रीविश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के पुनःप्रकट होने से पूरे देश के सनातन धर्मावलम्बियों में ख़ुशी का माहौल है ।करोड़ों लोग प्रकट प्रभु के दर्शन-पूजन के लिये उत्सुक हैं और इसके लिए काशी की यात्रा करना चाहते हैं ।

प्रकट होते ही दर्शन-स्तुति-पूजा का नियम

शास्त्रों में प्रभु के प्रकट होते ही दर्शन करके उनकी स्तुति करने का, राग भोगपूजा -आरती कर भेंट चढ़ाने का नियम है ।कौशल्या जी के सामने श्रीराम के प्रकट होने पर कौशल्या जी द्वारा रामजी की स्तुति और देवकी जी के सामने कृष्ण जी के प्रकट होने पर देवकी वसुदेव के द्वारा स्तुति करने का वर्णन मिलता है ।इसी तरह उन्हें विविध पूजोपचार और भेंट चढ़ाने के वर्णन भी मिलते हैं ।

प्रकट प्रभु की पूजा में विलम्ब अनुचित

प्रभु के प्रकट होते ही उनकी स्तुति पूजा, राग-भोग होना चाहिए था । परम्परा को जानने वाले सनातनियों ने तत्काल स्तुति पूजा के लिये न्यायालय से अनुमति माँगी जिनमें शृंगार गौरी और आदि विश्वेश्वर सम्बन्धित मुक़दमों के अनेक पक्षकारों सहित पूज्यपाद शंकराचार्य जी की शिष्याएँ अविरल गंगा तपस्विनी साध्वी पूर्णाम्बा और शारदाम्बा तथा काशी विश्वनाथ मंदिर के महन्त परिवार के सदस्य भी थे ।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आगे कहा कि न्यायालय ने आवेदनों की सुनवाई के लिए तारीख़ पर तारीख़ देते हुये अब 4 जुलाई की तारीख़ लगा दी है ।जबकि पूजा और राग-भोग एक दिन भी रोका नहीं जाना चाहिए ।

भारतीय संविधान के अनुसार भी देवता 3 वर्ष के बालक शास्त्रों में तो यह बात बताई ही गई है कि देवता को एक दिन भी बिना पूजा के नहीं रहने देना चाहिए ।

तदनुसार भारत के संविधान में भी यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि कोई भी प्राण प्रतिष्ठित देवता 3 वर्ष के बालक के समकक्ष होते हैं। जिस प्रकार 3 वर्ष के बालक को बिना स्नान भोजन आदि के अकेले नहीं छोड़ा  जा सकता उसी प्रकार देवता को भी राग भोग आदि उपचार पाने का संवैधानिक अधिकार है। इसी कारण किसी भी मन्दिर की सम्पत्ति देवता के नाम पर होती है परन्तु उनकी सेवा के लिए सेवईत पुजारी आदि अनिवार्य रूप से नियुक्त होते हैं जो  देवता की सेवा करते हैं। भगवान आदि विश्वेश्वर अब प्रकट हुए हैं अतः उन्हें राग भोग से वंचित करना संविधान के भी विपरीत है।

न्यायालय को चाहिए था कि एक अन्तरिम आदेश पारित करते हुये वे इस सन्दर्भ में कोई (अस्थायी ही सही) व्यवस्था बना देते । यदि उन्हें क़ानून व्यवस्था के बने रहने के सन्दर्भ में कोई डर था तो वे किसी एक व्यक्ति को नियुक्त कर सकते थे जो आस्तिक हिन्दू समुदाय की ओर से दी गई पूजा सामग्री श्रीविश्वेश्वर तक पहुँचा सकता था। या इसी तरह की कोई व्यवस्था बना देते। 

शंकराचार्य  का आदेश, पूजा होती रहे

इस सन्दर्भ में जब मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य लाभ कर रहे पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज को बताया गया तो उन्होंने तत्काल अपने शिष्य स्वामिश्रीः  अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती को आदेश किया कि जाओ और आदि विश्वेश्वर भगवान की पूजा शुरू करो। 

भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य द्वारा रचित मठाम्नाय महानुशासनम् के अनुसार उत्तर भारत का क्षेत्र ज्योतिष्पीठ का कहा गया है और इस समय ज्योतिष्पीठ पर हमारे पूज्य गुरुदेव स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज विराजमान हैं। ज्ञानवापी काशी में होने से इस क्षेत्र का धार्मिक उत्तरदायित्व पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर के अन्तर्गत आता है। धर्म के क्षेत्र में शंकराचार्य का ही निर्णय सर्वोपरि होता है। अतः उनके आदेश का पालन समस्त हम सभी सनातनियों को करना चाहिए। 

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