आदि शंकराचार्य और केदारनाथ का क्या है रिश्ता

केदारनाथ में मौजूद है आदि शंकराचार्य की समाधि

आदि शंकराचार्य और केदारनाथ का आखिर रिश्ता क्या है? क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ जाकर आदि शंकराचार्य की समाधि स्थल पहुंचकर वहां उनके 13 फीट लंबे और 35 टन वजन वाली विशाल मूर्ति का अनावरण किया. यह सवाल कितने ही भारतीयों के मन में आज कौंध रहा है. तो आइए जानते हैं कि कौन थे आदि शंकराचार्य और केदारनाथ का आखिर रिश्ता क्या था?

मीडिया स्वराज डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज शुक्रवार को केदारनाथ धाम पहुंचे. इस दौरान उन्होंने केदारनाथ मंदिर में बाबा केदार का रुद्राभिषेक करने के बाद श्री आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया. 13 फीट लंबे और 35 टन वजन वाले इस मूर्ति का अनावरण आज पीएम मोदी ने किया. गौरतलब है कि आदि शंकराचार्य ने ही केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था.

आदि शंकराचार्य को लेकर बोले पीएम मोदी

प्रधानमंत्री ने कहा कि आदि शंकराचार्य जी ने पवित्र मठों की स्थापना की, चार धामों की स्थापना की, द्वादश ज्योतिर्लिंगों के पुनर्जागरण का काम किया.

आदि शंकराचार्य ने सबकुछ त्यागकर देश, समाज और मानवता के लिए जीने वालों के लिए एक सशक्त परंपरा खड़ी की है. साथ ही कहा कि हमारे यहां सदियों से चारधाम यात्रा का महत्व रहा है. द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन की, शक्तिपीठों के दर्शन की, अष्टविनायक के दर्शन की, ये सारी यात्राओं की हमारे यहां परंपरा है.

ये तीर्थाटन हमारे यहां जीवन काल का हिस्सा माना गया है. अब हमारी सांस्कृतिक विरासतों को, आस्था के केंद्रों को उसी गौरवभाव से देखा जा रहा है, जैसा देखा जाना चाहिए. आज अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर पूरे गौरव के साथ बन रहा है, अयोध्या को उसका गौरव वापस मिल रहा है.

कौन थे आदि शंकराचार्य:

श्री आदि शंकरचार्य ने भारतवर्ष के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी, जो आज भी बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं.

शंकर आचार्य का जीवन

शंकराचार्य को चार मठों की स्थापना करने के लिए जाना जाता है. 507-50 ई. पूर्व में केरल में कालपी ‘काषल’ नामक गांव में जन्मे शंकराचार्य के पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था. लंबे समय तक पत्नी समेत शिव की अनंत आराधना और साधना करने के बाद शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा.

शंकर महज तीन साल के थे, जब उनके पिता का देहांत हो गया. वे बड़े ही मेधावी और प्रतिभाशाली थे. 6 साल की अवस्था में ही वे प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ साल की अवस्था में उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था.

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को शंकराचार्य यानि शंकर आचार्य की जयंती मनायी जाती है. केरल में जन्मे आदि शंकराचार्य ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी के भारतीय आध्यात्मिक धर्म गुरु माने जाते हैं. उस दौरान भिन्न-भिन्न मतों में बंटे हिंदू धर्मों को जोड़ने का काम उन्होंने किया. उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को समेकित किया और पूरे भारत में चार मठ की स्थापना की.

हिंदू धर्म को एकजुट करने में शंकराचार्य का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. उनके द्वारा स्थापित चार मठ देश की चारों दिशाओं में स्थित हैं. कहा जाता है कि इन मठों की स्थापना करने के पीछे आदि शंकराचार्य का उद्देश्य समस्त भारत को एक धागे में पिरोना था.

चार दिशाओं में की चार मठों की स्थापना:

हिंदू धर्म को एकजुट करने में शंकराचार्य का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. उनके द्वारा स्थापित चार मठ देश की चारों दिशाओं में स्थित हैं. कहा जाता है कि इन मठों की स्थापना करने के पीछे आदि शंकराचार्य का उद्देश्य समस्त भारत को एक धागे में पिरोना था.

ये चारों स्थान हैं-

  1. उत्तराखंड में ज्योतिर मठ, जिसे ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम भी कहा जाता है, यहां आज पीएम मोदी पहुंचे हैं.
  2. रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ या श्रृंगेरी पीठ.
  3. गुजरात के द्वारका में शारदा मठ, जिसे द्वारिका शारदा पीठ भी कहते हैं.
  4. उड़ीसा के पुरी में गोवर्धन मठ, जिसे पुरी गोवर्धन पीठ भी कहते हैं.

आदिगुरु शंकराचार्य ने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था. ये शंकर के अवतार माने जाते हैं. इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है. आदि शंकरचार्य ने सनातन धर्म के वैभव को बचाने और सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

आदिगुरु शंकराचार्य ने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था. ये शंकर के अवतार माने जाते हैं. इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है. आदि शंकरचार्य ने सनातन धर्म के वैभव को बचाने और सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

आदिगुरु शंकराचार्य की प्रतिमा:

केदारनाथ में 2013 में आये जल प्रलय आपदा में आदि शंकराचार्य की समाधि पूरी तरह तबाह हो गई थी. इसके बाद आदि शंकराचार्य की मूर्ति को फिर से स्थापित किया गया है. यह मूर्ति मंदिर के पीछे स्थापित है, जहां शंकराचार्य ने अपनी समाधि ली थी. वहीं, इस मूर्ति के निर्माण के लिए लगभग 130 टन के एक ही शिला का चयन किया गया था.

शंकरचार्य की इस प्रतिमा के निर्माण के लिए अलग-अलग मूर्तिकारों ने कई मॉडल दिए थे. ऐसे क़रीब 18 मॉडलों में से इस का चयन प्रधानमंत्री की सहमति के बाद किया गया. मैसुरू के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने यह मूर्ति बनाई है. उनकी पांच पीढ़ियां इस काम में जुटी हैं. अरुण समेत 9 लोगों की टीम ने मिलकर इस मूर्ति को तैयार किया है.

सितंबर 2020 में मूर्ति बनाने का काम शुरू हुआ और तकरीबन एक साल तक लगातार चलता रहा. इस साल सितंबर महीने में मूर्ति को मैसुरू से चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए उत्तराखंड पहुंचाया गया था. शंकराचार्य की प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 12 फीट है.

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प्रतिमा निर्माण के दौरान शिला पर नारियल पानी का खूब इस्तेमाल किया गया है, जिससे आदि शंकराचार्य की मूर्ति से “तेज” का आभास हो सके. मूर्ति निर्माण कार्य में 9 लोगों की टीम ने काम किया. सितंबर 2020 में इसका काम शुरू हुआ था और तकरीबन एक साल तक अनवरत चलता रहा.

प्रतिमा के निर्माण के लिए लगभग 130 टन की एक ही शिला का चयन किया गया. शिला को तराशने और काटने- छांटने के बाद प्रतिमा का वजन लगभग 35 टन रह गया. ब्लैक स्टोन पर आग, पानी, बारिश, हवा के थपेड़ों का असर नहीं होगा.

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