तीस्ता सेतलवाड , आरबी श्रीकुमार और  संजीव भट्ट  की सच्ची दास्तान


गुजरात दंगों के मामलों में दोषियों को सजा दिलाने का अभियान चलाने वाले जिन तीन लोगों – तीस्ता सेतलवाड , आरबी श्रीकुमार, संजीव भट्ट पर मुक़दमा करके गिरफ़्तार किया गया है, उनकी सच्ची दास्तान न्याय के लिए संघर्षों से भरी है। देश भर में इनकी गिरफ़्तारी की निंदा हो रही है। सोमवार 27 को विरोध प्रदर्शन की भी घोषणा की गयी है। आइए जानते हैं इनका और इनके परिवार का इतिहास।

चंद्र प्रकाश झा *

पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सेतलवाड को गुजरात के आतंकी निरोधक दस्ता (एटीएस) की टीम शनिवार के दिन 25 जून 2022 को अपनी हिरासत में लेकर मुंबई से अहमदाबाद ले गई। गुजरात एटीएस ने उन्हे मुंबई में अरब सागर तटवर्ती उनके पुश्तैनी बंगला निरंत पर लगभग घसीट कर अपनी हिरासत में लिया। इस कारवाई के लिए जान बूझ कर शनिवार का दिन चुना गया ताकि उनकी तरफ से तत्काल अदालती राहत हासिल करने का कोई मौका नहीं मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच द्वारा गुजरात दंगे की एक पीडिता जाकिया जाफरी की उस याचिका को खारिज करने के बाद यह घटनाक्रम शुरू हुआ जिसमें इन दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने के गुजरात हाई कोर्ट के आदेश की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी।

इस याचिका पर शुक्रवार को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने तीस्ता के खिलाफ कुछ प्रतिकूल टिपण्णी की थी। इसी टिपण्णी का सहारा लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मोदी सरकार परस्त न्यूज एजेंसी, एएनआई के साथ इंटरव्यू में गुजरात एटीएस की कारवाई को उचित बताया है।

तीस्ता सेतलवाड़

ये वही तीस्ता सेतलवाड़ हैं जिनके पितामह एमसी सेतलवाड़ स्वतंत्र भारत के पहले अटॉर्नी जनरल थे और जिनके परपितामह चिमणलाल हरिलाल सेतलवाड ने जालियावाला बाग में 400 हिंदुस्तानियों को मार देने वाले अंग्रेज जनरल डायर के खिलाफ ब्रिटिश अदालत में मुकदमा लड़ा और डायर का कोर्ट मार्शल कराया था।
ये वही तीस्ता हैं जो दंगो में मारे गए सैकड़ो लोगों के लिए न्याय की लड़ाई लड़तीं रही और उनमें से अनेक की शिक्षा- दीक्षा का भी भार उठाती रही है। उन्होंने अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 1993 में मुम्बई बम ब्लास्ट में मारे गए लोगों के परिवार के लिए भी अदालती लड़ाई लड़ सरकार से मदद दिलाई। उनके पिता बैरिस्टर थे और जनहित के मुद्दों पर अदालती लड़ाई लड़ते रहे।

आर बी श्रीकुमार

इसी बीच , गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच ने केरल मूल निवासी और भारतीय पुलिस सेवा यानि आईपीएस के 1971 बैच के अधिकारी आर बी श्रीकुमार को जालसाजी के आरोप में अपनी हिरासत में ले लिया जो उपरोक्त दंगों और अन्य मामलों में भी गुजरात में मोदीराज के ख़िलाफ़ बहादुरी से लड़े थे। गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद गुजरात पुलिस के 75 वर्षीय पूर्व महानिदेशक आरबी श्रीकुमार को जालसाजी और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गांधीनगर स्थित उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया। वह पुलिस सेवा से 2007 में रिटायर हुए थे। श्रीकुमार को भारत सरकार ने 1990 में सराहनीय सेवा पदक और 1998 में विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया था।

इंदौर के सोशल मीडिया एक्टिविस्ट गिरीश मालवीय के फौरी शोध के मुताबिक श्रीकुमार ने नानावती-शाह आयोग के सामने मोदी जी के खिलाफ गवाही दी थी। वह कुख्यात गोधरा कांड के दौरान गुजरात में सशस्त्र इकाई के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) थे और 2002 के दंगों के बाद डीजीपी (इंटेलिजेंस) बनाए गए थे। उन्होंने बतौर डीजीपी इंटेलिजेंस रिपोर्ट दी थी कि उन दंगों के बाद मोदी जी के बयान पहले से ही तनावपूर्ण सांप्रदायिक माहौल में आग लगाने का काम करेंगे।

श्रीकुमार ने गुजरात दंगों की जांच करने वाले जस्टिस जीटी नानावती और जस्टिस अक्षय मेहता कमीशन के सम्मुख दाखिल चार एफिडेविट में सरकारी एजेंसी और दंगाइयों के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया था। इस गवाही के कारण उन्हें गुजरात सरकार ने उन्हे पुलिस महानिदेशक पद पर नियुक्ति से वंचित कर दिया गया। उनके पितामह क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार-लेखक , बलरामपुरम जी रमन पिल्लई थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में लड़े नवशक्ति नाम से अखबार निकाला था।

श्रीकुमार की गुजरात बिहाइंड द कर्टेन शीर्षक अंग्रेजी किताब में गुजरात में 2002 में साम्प्रदाईक हिंसा के हालात और जुड़ी कई बातो का वितार से जिक्र है।इस किताब में यह भी लिखा है कि 2002 के गुजरात दंगों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की मौत के बाद उनकी पत्‍नी जकिया जाफरी से कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी मिलना चाहती थीं। लेकिन उनकी पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं ने उन्‍हें ऐसा करने से रोक दिया.

संजीव भट्ट


गुजरात में मोदी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी कारगुजारियों का पर्दाफास करने वाले राज्य काडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ट्रायल कोर्ट के आदेश पर तीन साल से जेल में बंद है.उनके खिलाफ उस व्यक्ति का कस्टोडियल टॉर्चर करने का आरोप है जो खुद पुलिस के अनुसार उनसे कभी नहीं मिले और वह पुलिस कस्टडी में नहीं मरा। संजीव भट्ट की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में दो बरस से लंबित है।उस पर सुनवाई के लिए अभी तक बेंच तय नहीं की गई है।

संजीव भट्ट

भीमा कोरेगांव पड़यंत्र


आपको याद दिला दें कि मोदी सरकार के कड़े आलोचक और दिल्ली से छापने वाली साँचा पत्रिका के संपादक गौतम नवलखा मोदी जी की हत्या का भीमा कोरेगांव पड़यंत रचने के मामले में पहले से जेल में बंद है। इसी मामले में गिरफ्तार फ़ादर स्टैन को जेल में यातना से मर ही गए। इस मामले के एक अन्य अभियुक्त और लगभग पूर्ण पक्षाघात पीड़ित जी.एन. साईबाबा कोर्ट के निर्णय पर कारावास की सजा भुगत रहे हैं।

https://sabrangindia.in/article/support-pours-teesta-setalvad

*सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाडी करने और स्कूल चलाने के अलावा स्वतंत्र पत्रकारिता और पुस्तक लेखन करते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

11 + 11 =

Related Articles

Back to top button