मानवता के प्राण गांधी

महात्मा गांधी के हत्या की खबर सुनकर 10 साल के अमरीकी बच्चे ने कहा "बंदूक का आविष्कार न हुआ होता तो कितना अच्छा होता" पढ़िए आप भी यह प्रेरक प्रसंग

एकाएक गृहपति कमरे में आये। उनकी मुखमुद्रा गम्भीर थी। उन्होंने कहा, “रेडियो पर अभी एक अत्यन्त भयानक समाचार आया है।” यह सुनकर हम सब उनकी ओर देखने लगे और तुरन्त ये हृदय-विदारक शब्द सुनाई पड़े, “गांधीजी का देहावसान हो गया।”

पर्लबक (अमेरिकी नोबल विजेता साहित्यकार)

अमेरिका में पेंसिलवेनिया के निकट देहाती क्षेत्रों में एक गांव है पेरेक्सीर। वहीं हमारी शांतिमयी झोपड़ी है। 31 जनवरी 1948 को वह दिन पिछले दिनों की तरह ही आरम्भ हुआ। हम सवेरे ही उठने के अभ्यासी हैं, क्योंकि बच्चों को कुछ दूर स्कूल जाना पड़ता है। नित्य की तरह ही आज हम जलपान के लिए मेज के चारों ओर इकट्ठे हुए और साधारण बातचीत करने लगे। खिड़कियों से बाहर घने हिमपात का दृश्य दिखलाई दे रहा था और आकाश की आभा भूरे रंग की हो रही थी। हमारे बच्चों को शंका हो रही थी कि कहीं और अधिक हिम-पात न हो।

एकाएक गृहपति कमरे में आये। उनकी मुखमुद्रा गम्भीर थी। उन्होंने कहा, “रेडियो पर अभी एक अत्यन्त भयानक समाचार आया है।” यह सुनकर हम सब उनकी ओर देखने लगे और तुरन्त ये हृदय-विदारक शब्द सुनाई पड़े, “गांधीजी का देहावसान हो गया।”

एकाएक गृहपति कमरे में आये। उनकी मुखमुद्रा गम्भीर थी। उन्होंने कहा, “रेडियो पर अभी एक अत्यन्त भयानक समाचार आया है।” यह सुनकर हम सब उनकी ओर देखने लगे और तुरन्त ये हृदय-विदारक शब्द सुनाई पड़े, “गांधीजी का देहावसान हो गया।”

मेरी इच्छा है कि भारत से हजारों मील दूर स्थित अमेरिका-निवासियों पर गांधीजी की मृत्यु से जो प्रतिक्रिया हुई, उसे भारतवासी जानें। हम लोगों ने हृदय को दहला देने वाला यह संवाद सुना। यह साधारण मृत्यु नहीं है। गांधीजी शांति की प्रतिमूर्ति थे और उन्होंने अपना सारा जीवन अपने देश की जनता की सेवा के लिए लगा दिया था। ऐसे शांतिप्रिय व्यक्ति की हत्या कर दी गई। मेरे दस वर्ष के छोटे बच्चे की आंखों में आंसू छलकने लगे और उसने कहा, “मैं चाहता हूं कि यदि बन्दूक बनाने का आविष्कार ही न हुआ होता तो बड़ा अच्छा था।”

हम लोगों में से किसी ने भी गांधीजी को नहीं देखा था, क्योंकि जब हम लोग भारतवर्ष में थे तब गांधीजी सदा जेल में ही थे। फिर भी हम सभी उन्हें जानते थे। हमारे बच्चे गांधीजी की आकृति से इतने परिचित थे, मानो गांधीजी स्वयं हमारे साथ घर में ही रहते थे। हमारे लिए गांधीजी संसार के इने-गिने महात्माओं में से एक महात्मा थे। पृथ्वी के उन गिने-चुने पीरों में से वे एक थे, जो अपने विश्वास पर हिमालय की तरह अटल और दृढ़ रहते थे। उनके संबंध में हमारी धारणा भी वैसी ही अटल है।

किसान ने मुझे रोका और पूछा, “संसार का प्रत्येक व्यक्ति सोचता था कि गांधीजी एक उत्तम व्यक्ति थे तो फिर लोगों ने उन्हें मार क्यों डाला? मैंने अपना सिर धुना और कुछ बोल न सकी। उसने संकेत से कहा, “जिस तरह लोगों ने महात्मा ईसा को मारा था, उसी तरह लोगों ने महात्मा गांधी को मार डाला।”

हमें भारतवर्ष पर गर्व है कि महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्ति भारत के अधिवासी थे। पर साथ ही हमें खेद भी है कि भारत के ही एक अधिवासी ने उनकी हत्या की। इस प्रकार दुःखी और सन्तप्त हम लोग चुपचाप अपने दैनिक कार्यों में लग गये।

भारतवासी संभवतः यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि हमारे देश में गांधीजी का यश कितने व्यापक रूप में फैला। मैं उनकी मृत्यु के एक घन्टे बाद सड़क से होकर कहीं जा रही थी कि एकाएक एक किसान ने मुझे रोका और पूछा, “संसार का प्रत्येक व्यक्ति सोचता था कि गांधीजी एक उत्तम व्यक्ति थे तो फिर लोगों ने उन्हें मार क्यों डाला? मैंने अपना सिर धुना और कुछ बोल न सकी। उसने संकेत से कहा, “जिस तरह लोगों ने महात्मा ईसा को मारा था, उसी तरह लोगों ने महात्मा गांधी को मार डाला।”

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उस किसान ने ठीक ही कहा था कि महात्मा ईसा की सूली के अतिरिक्त संसार की किसी भी घटना की महात्मा गांधी की गौरवपूर्ण मृत्यु से तुलना नहीं हो सकती। गांधीजी की मृत्यु उन्हीं के देशवासी द्वारा हुई। यह ईसा के सूली पर चढ़ाये जाने के बाद दूसरी ही वैसी घटना है। संसार के वे लोग, जिन्होंने गांधीजी को कभी नहीं देखा था, आज उनकी मृत्यु से शोक-संतप्त हो रहे हैं। वे ऐसे समय में मरे, जब उनका प्रभाव दुनिया के कोने-कोने में व्याप्त हो चुका था।

“कुछ दिनों से अमेरिका-निवासियों में महात्मा गांधी के प्रति बढ़ती हई श्रद्धा का अनुभव हम कर रहे थे। महात्मा गांधी के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा थी। महात्मा गांधी के प्रति जनता में वास्तविक आदर था और हम लोगों को यह प्रतीत होने लगा था कि वे जो कुछ कह रहे थे, वही ठीक था।”

गांधी श्रद्धांजलि ग्रंथ (एस.राधाकृष्णन)

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