आस्था चिकित्सा : शारीरिक और मानसिक दोनों रोगों में कारगर
चिकित्सा में आस्था अथवा दैवव्यपाश्रय की उपादेयता : आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोगों को मुख्य रूप से शारीरिक रोग और मानसिक रोग में वर्गीकृत किया गया है । पुनः इन रोगो की चिकित्सा को मुख्य रूप से तीन विधाओं में बांटा गया हैं -दैवव्यापाश्रय (spiritual therapy), युक्तिव्यापाश्रय (rational and logical therapeutic intervention) और सत्वाव्जय (psychotherapy)। ज्वर के परिपेक्ष में तो आयुर्वेद में स्पष्टतः ऐसा वर्णन हैं कि ज्वर शरीर एवं मन दोनों को ही प्रभावित करता हैं। अतः ज्वर चिकित्सा में युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा के साथ साथ सत्वाव्जय एवं दैवव्यापाश्रय चिकित्सा का भी उतना ही योगदान हैं। ये बात भिन्न हैं की आज के परिपेक्ष में ज्यदातर चिकित्सक ज्वर चिकित्सा को युक्तिव्यापाश्रय तक ही केंद्रित करते हैं। विश्वास मानव मनोविज्ञान का एक अभिन्न अंग है। दैवव्यापाश्रय एक प्रकार की आस्था चिकित्सा है जो शारीरिक रोग और मानसिक रोग दोनों ही प्रकार के रोगो के प्रबंधन में उपयोगी हैं।
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दैवव्यापाश्रय चिकित्सा
मंत्र (भजन), औषधि बंधन (बांधने वाले औषधीय पौधे), मणि धारण (रत्नों का पहनना), मंगलकर्म (शुभ समारोह), उपहार (भेंट), होम (यज्ञ) नियम (धार्मिक पालन), प्रायश्चित, उपवास, स्वासत्यन (शुभ भजनों का जप), प्राणिपात (भगवान के प्रति समर्पण) और यात्रागमन (तीर्थयात्रा पर जाना) आदि का समाभाव दैवव्यापाश्रय चिकित्सा समाभाव चिकित्सा के अंतर्गत वर्णित हैं और ऐसा माना जाता हैं की यहाँ देवप्रभाव से कार्य करती हैं ।
विष्णुसहस्रनाम के जप का विधान
ज्वर की चिकित्सा में विष्णुसहस्रनाम के जप का विधान बताया हैं। हजार नामों के साथ स्थिर और सर्वज्ञता है । ब्रह्मा, इंद्र, अग्नि, गंगा और वायु की पूजा करके ज्वर पर काबू पा सकते हैं । माता-पिता के प्रति भक्ति, शिक्षकों का सम्मान, ब्रह्मचर्य, तपस्या, सत्यवादिता, नियमों का पालन, ॐ अक्षर की पुनरावृत्ति, वेदों का श्रवण और संत व्यक्तियों के आने से ज्वर से मुक्ति मिलती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि मंत्र अलग-अलग ध्वनि तरंगें उत्पन्न करता है जो मन की शांति में मदद कर रहे हैं। ब्रह्मांड ऊर्जा के साथ उत्तेजित कर शरीर के अंदर की ऊर्जा को प्रभावित करते हैं।
एक विशिष्ट आवेग के साथ बोले गए मंत्र बोले गए शब्द के भीतर ब्रह्मांडीय ऊर्जा के भीतर ऊर्जा को प्रकट कर सकते हैं और मानव शरीर के भीतर और बाहर वांछनीय परिवर्तन करने के लिए अग्रणी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को प्रेरित कर सकते हैं ।
प्रभावित हिस्से पर कुछ औषधीय पौधों को बांधना ओषधि कहा जाता है। पोटाली से तैयार हिंगू, वाचा, तुरुष्कर और रक्षोघन बच्चे की गर्दन के चारों ओर बंधा होना चाहिए – विषमज्वर की चिकित्सा में उल्लेख किया गया है ।
रक्षा कर्म के लिए हमारी धर्मिक परम्पराओ में स्वस्तिवाचन किया जाता हैं। आज जैसे विज्ञान ने मंत्र की प्रमाणिकता को अनुसंधान के माध्यम से स्वीकारा हैं , ठीक वैसे ही ये सभी विषय भी शोध के विषय हैं और हमारा विश्वास हे कि भविष्य में आयुर्वेद में वर्णित इन क्रिया कलापो की भी चिकित्सा में प्रमाणिकता सार्थक सिद्ध होगी।
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