हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने की आदिवासियों की मुहिम को मिलेगा मुकाम?

हसदेव अरण्य क्षेत्र

गहराते कोयला और बिजली संकट ने देशवासियों की नींदें उड़ा दी हैं. चारों ओर बिजली की कटौती और कोयला संकट को लेकर हाहाकार मचा है. ऐसे में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में रहने वाले कुछ आदिवासियों का कोयला खदान न खुलने देने को लेकर चलाई जा रही पैदल यात्रा मुहिम कई सवाल खड़े कर रहा है. कोयले की कमी के कारण बढ़ते बिजली संकट को देखते हुए लोग यह तय नहीं कर पा रहे कि आखिर आदिवासियों की इस मांग को जायज कहें या नाजायज. वहीं, इस बीच आंदोलनरत आदिवासियों का यह समूह खुश है कि उनकी मुलाकात राज्यपाल और सीएम से हो पाई और चर्चा के बाद सीएम ने उन्हें यकीन दिलाया है कि उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा. खासकर सीएम ने इस बात का यकीन दिलाया कि मदनपुर गांव में कोयला खनन नहीं किया जाएगा.

-सुषमाश्री

हालांकि, छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन परियोजनाओं के विरोध में 2 अक्टूबर को कोरबा के मदनपुर गांव से 300 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू करने के दस दिन बाद सैकड़ों आदिवासी सोमवार को राज्य की राजधानी रायपुर पहुंचे. राजधानी पहुंचने के बाद मंगलवार को ग्रामीणों ने राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात की.

ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलने के लिए भी समय मांगा. शनिवार को हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष उमेश्वर सिंह ने कहा कि अपनी मांगों को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री, दोनों से हमारी बातचीत हुई. पांचवीं अनुसूची और पेशा कानून में ग्राम सभा को जिस तरीके से नजरअंदाज कर हमारे गांव में कोयला खदान बनाया जा रहा है, उस पर चर्चा हुई.

लल्लूराम में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक उमेश्वर सिंह ने बताया कि हमारी ओर से मदनपुर क्षेत्र को बचाने की बात हुई थी. पूरा क्षेत्र हमारे संघर्ष के साथ है. मुख्यमंत्री ने मदनपुर क्षेत्र को संरक्षित रखने की बात कही है. साथ ही यहां कोयला खदान न खोलने का आश्वासन सीएम ने दिया है.

उन्होंने यह भी कहा कि आज तक पावर प्लांट लगा ही नहीं तो फिर कोयला क्यों निकाला जा रहा है? पैसा कमाने के लिए पर्यावरण और जंगलों को बर्बाद किया जा रहा है. सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि फर्जी ग्रामसभा के तहत भूमि अधिग्रहण किया गया था, उस पर भी जांच करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि जल जंगल और जमीन बचाने के लिए हम पिछले 10 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं. ये बचेगा तभी हम संतुष्ट होंगे. इसके बिना हम नहीं रह सकते.

सिंह ने कहा कि सीएम ने आश्वासन दिया है कि मदनपुर क्षेत्र संरक्षित रहेगा. पतुरिया गिड़मूडी खदान नहीं खुलेगा. सीएम ने परसा में फर्जी ग्रामसभा की शिकायतों की जांच और कार्रवाई को लेकर भी आदिवासियों को भरोसा दिलाया.

सिंह ने यह सवाल किया कि भैयाथान में लगने वाले पावर प्लांट के लिए इसका इस्तेमाल होना था, लेकिन वो पावर प्लांट लगा ही नहीं तो क्यों जंगल दिया रहा है? आदिवासियों ने कहा कि जब हमारे जल जंगल और जमीन बच जाएंगे, तभी हमें अपनी मांगों के पूरा होने का भरोसा हो पाएगा.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन

इससे पहले बुधवार को बातचीत के दौरान पदयात्रा में शामिल छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ल ने कहा, हम हसदेव अरण्य क्षेत्र में सभी कोयला खनन परियोजनाओं को तत्काल रद्द करने की मांग कर रहे हैं और आगे ग्राम सभा से पूर्व सहमति के बिना कोयला असर क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 के तहत की गई सभी भूमि अधिग्रहण कार्यवाही को तुरंत वापस लिया जाए.

शुक्ला ने आगे कहा था कि अन्य मांगों में परसा कोयला ब्लॉक की पर्यावरण और वन मंजूरी को रद्द करना और ग्राम सभा की फर्जी सहमति को लेकर कंपनी और अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए, भी था. ग्रामीणों ने हंसदेव क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण और किसी भी खनन या अन्य परियोजनाओं के आवंटन से पहले ग्राम सभाओं से ‘नि:शुल्क, पूर्व और सूचित सहमति’ के कार्यान्वयन और सरगुजा जिले के घाटबर्रा गांव के सामुदायिक वन अधिकार टाइटल को बहाल करने की भी मांग की, जिसे 2016 में रद्द कर दिया गया था.

पदयात्रियों की अम्बेडकर चौक में नारेबाजी

रायपुर पहुंचने के बाद बुधवार को पदयात्रियों ने अम्बेडकर चौक जाकर हसदेव क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को रद्द करने के लिए नारेबाजी भी की थी. फतेहपुर गांव के निवासी मुनेश्वर पोर्ते ने कहा कि हम यहां सीएम से मिलने आए हैं और अपनी मांगों को उनके सामने रखेंगे. हम अपने जंगलों को खोना नहीं चाहते और संविधान ने हमें उनकी रक्षा करने का अधिकार दिया है. उन्होंने आगे कहा कि हम अपनी मांग पूरी होने तक राजधानी नहीं छोड़ेंगे.

1,70,000 हेक्टेयर में फैला है हसदेव अरण्य

मध्य भारत में 1,70,000 हेक्टेयर में फैले घने जंगल के सबसे बड़े सन्निहित हिस्सों में से एक है और इसमें 23 कोयला ब्लॉक हैं. 2009 में, पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य को अपने समृद्ध वन क्षेत्र के कारण खनन के लिए ‘नो-गो’ क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया था, लेकिन इसे फिर से खनन के लिए खोल दिया क्योंकि कानून को अंतिम रूप नहीं दिया गया था.

नईदुनिया टीम की एक रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी छात्र-छात्राओं के मुताबिक हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने के लिए अगर जान भी चली जाए तो वे इसके लिए भी तैयार हैं. कोयले का खदान किसी भी कीमत पर खुलने नहीं देंगे. उनका कहना है कि कोयला खदान खुलने से जंगल के जीवन का आधार ही खत्म हो जाएगा.

बता दें कि पिछले एक दशक से लगातार सरगुजा और कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य को बचाने के लिए वहां रहने वाले गोंड़, उरांव, पंडो और कंवर आदिवासी समुदाय के लोग आज भी संघर्षरत हैं. ग्राम सभाओं के अधिकारों के हनन के खिलाफ न्याय की गुहार लगाने के लिए दस दिनों में वे 300 किलोमीटर चलकर रायपुर पहुंचे. गुरुवार को इन आदिवासियों ने राजधानी की सड़कों पर रैली भी निकाली.

31 जुलाई 2020 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र स्थित पांच कोयला खदानों को खनन लिस्ट से हटा दिया गया था. तब केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इन पांचों खदानों के नाम भी बताए थे. इनमें मोरगा साउथ, मोरगा टू, मदनपुर नार, सियांग और फतेहपुर ईस्ट के नाम शामिल थे. इन खदानों में खनन को लेकर राज्य सरकार ने तब आपत्ति भी जताई थी. साथ ही इसके पीछे वजह यह बताई थी कि इससे पर्यावरण को लगातार नुकसान हो रहा है.

पंचायत व ग्रामीण विकास मंत्री का समर्थन

अलग अलग खबरों पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि पिछले दिनों हसदेव अरण्य को बचाने के लिए 300 किलोमीटर पैदल चलकर रायपुर पहुंचे ग्रामीणों को पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव का भी समर्थन मिला. दशहरे के दौरान बुधवार देर रात टिकरापारा के साहू भवन में सिंहदेव ने सरकार को नो गो एरिया की लक्ष्मण रेखा याद दिलाई. साथ ही कहा कि, जो इस लाइन को पार करेगा वह 10 सिर वाला (ग्रामीणों ने कहा रावण) कहलाएगा. उन्होंने ग्रामीणों से कहा, आपकी मांगें जिन कानों तक पहुंचेगी, वे सोच-समझकर कदम उठाएंगे, ताकि आपके प्राकृतिक और जायज हित सुरक्षित हों.

सिंहदेव ने कहा, मैं भी अपनी ओर से आपकी मांगों के साथ मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखूंगा. उस समय जो नो गो एरिया घोषित हो गया, उससे आगे जाते हैं तो मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कि मेरा भी विरोध है. जो लकीर खिंच गई, वह लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए. लक्ष्मण रेखा पार करने पर क्या होता है वह रामायण की कथा में हम सब ने देखा-पढ़ा है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नो गो एरिया की वह लक्ष्मण रेखा पार न हो और सीता हरण जैसी स्थिति न बने.

ग्राम सभा जो तय करे वही हो

टीएस सिंहदेव ने हसदेव अरण्य क्षेत्र से आए ग्रामीणों से चर्चा की. साथ ही उनकी भी बात सुनी. उन्होंने कहा कि अभी सरकार के पास पूरा अवसर है. उसकी मानसिकता भी यही होगी कि वह राम रूपी कार्य करे. आपके हितों की रक्षा करे, आपके साथ रहे. जो जायज बात है, उसके तहत आपकी मांगों को सुने और पूरा करे. इस दौरान पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ बिलासपुर विधायक शैलेश पाण्डेय भी ग्रामीणों के बीच पहुंचे थे.

बाद में प्रेस से बातचीत के दौरान टीएस सिंहदेव ने यह भी कहा कि ग्रामीण उस क्षेत्र में खनन का विरोध कर रहे हैं. इस बाबत हमने शुरू से ही माना है कि ग्राम सभा जो तय करे, उसी के हिसाब से काम होना चाहिए. उन पर दबाव डालकर या दूसरे तरीकों से खदान की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.

क्या है यह नो गो एरिया का मामला

सरगुजा और कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध और पुराने जंगलों में गिना जाता है. पर्यावरण के जानकार इसे “छत्तीसगढ़ का फेफड़ा” कहते हैं. 2010 में इस क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया था. पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया, जब जयराम रमेश केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री थे तो वे नो गो एरिया का कॉन्सेप्ट लाए थे. यानी इस सीमा के आगे खदानों को अनुमति नहीं दी जाएगी. उस लक्ष्मण रेखा का पालन करना जरूरी है.

आदिवासियों के चेहरे पर तनाव और थकान

दूसरी ओर, हसदेव बचाओ पदयात्रा में शामिल अधिकतर युवा आदिवासियों के चेहरे पर भले ही थकान दिखाई दे रही थी, लेकिन जल, जंगल और जमीन को बचाने का जोश उनमें अब भी बरकरार था. मदनपुर गांव की संगीता सत्या आडिल ने कहा कि चार अक्टूबर से मेरे गांव के अलावा आसपास के दर्जन भर से अधिक गांवों के बड़े बुजुर्ग, महिलाएं, छात्र-छात्राएं आदि पदयात्रा करके रायपुर में शासन के सामने अपनी मांग रखने आए हैं. गांव वालों की मर्जी के बगैर भला कैसे कोयला खदान खुल सकती है.

फते​हपुर गांव की बसंती दीवान का कहना था कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में जबरदस्ती खोली जा रहीं कोयला खनन परियोजनाओं का हम सालों से विरोध करते आ रहे हैं. कोयला खदान खुलने से जंगल तो नष्ट होंगे ही, वायु और जल भी प्रदूषित हो जाएगा. आदिवासियों के जीवन का यही तो आधार है.

कोयला खदान की मंजूरी के खिलाफ ग्रामीण

पतुरिया डांड गांव की सुनीता श्याम ने कहा कि कोयला खनन होने से आसपास के तीस से चालीस गांव प्रभावित होंगेे. इन गांवों को बचाने के लिए हम सभी रायपुर आए हैं. सरकार को हमारी जायज मांगों को मानना ही पड़ेग. किसी भी कीमत पर गांवों में कोयला खदान नहीं खुलने देंगे.

कोयले की कमी से देश में गहराता जा रहा है बिजली संकट, अंधेरे में डूब सकता है भारत

श्यामपारा (तारा) गांव की चमेली सिंह पोर्ते ने कहा कि आदिवासियों के जीवन का आधार ही जल, जंगल और जमीन है. अगर यहीं बर्बाद हो जाएंगे तो हम लोग जी कैसे पाएंगे. इसे बचाने के लिए रायपुर में अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने आए हैं. इसी गांव की पुष्पलता आडिल ने कहा कि चार अक्टूबर से लगातार पदयात्रा करके यहां आए हैं. कोयला खदान न खुले, इसका आदेश सरकार को करना ही पड़ेगा.

बर्बाद हो जाएगा जल जंगल जमीन

सरगुजा जिले के हरिहरपुर (तारा) गांव के बालसाय कोर्राम ने कहा कि परसा कोल खदान को सरकार तत्काल रद करे. अन्य खदानों के खुलने से भी जल, जंगल और जमीन बर्बाद हो जाएगा. ग्राम सभा में फर्जी तरीके से कोयला खदान खोलने का प्रस्ताव पारित किया गया है.

हम लोग अपनी आजीविका और संस्कृति को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, परंतु इन सब प्रयासों और भारी जनविरोध के बावजूद सभी प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ाकर आदिवासी समुदाय के लिए बनी पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 आदि को नजरअंदाज कर लगातार खनन परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है. स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी इस मुद्दे को लेकर अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. सारे विरोध को कुचल कर गैरकानूनी रूप से खनन परियोजनाओं को शुरू करने की कोशिश की जा रही है.

ये मांगे लेकर राजधानी पहुंचे आदिवासी ग्रामीण

  • हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त की जाए.
  • बिना ग्रामसभा की सहमति के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट के तहत किए गए भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए.
  • पांचवी अनुसूची क्षेत्र में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान लागू किए जाएं.
  • परसा कोल ब्लॉक के लिए ग्राम सभा फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त किया जाए और ऐसा करने वाले अधिकारी और कम्पनी पर FIR दर्ज हो.
  • घाटबर्रा गांव के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांवों में सामुदायिक वन अधिकार और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दी जाए.
  • अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून का पालन कराया जाए.

आखिर क्या है हसदेव अरण्य का संकट

2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित होने के बाद कुछ समय के लिए यहां हालात सामान्य रहे. केंद्र में सरकार बदली तो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन शुरू हुआ. ग्रामीण इसके विरोध में आंदोलन करने लगे. 2015 में राहुल गांधी इस क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन किया. कहा कि इस क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे.

अचानक नहीं उत्पन्न हुआ है कोयला संकट, इसके चलते चरमरा सकती है देश की बिजली व्यवस्था

छत्तीसगढ़ में सरकार बदली लेकिन इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई. हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद (ICFRE) ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी, जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है. इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है.

क्या है हसदेव अरण्य क्षेत्र से क्या है अडानी ग्रुप का संबंध

27 जून 2020 को न्यूज क्लिक में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री ने अप्रैल 2020 में हाथी रिजर्व और कोयला खनन के बीच के संघर्ष को हल करने को लेकर बात करते हुए अपनी सरकार की योजना का जिक्र किया था. लेकिन संरक्षणवादियों को इस बात का डर सताने लगा कि यह रिजर्व अडानी की कोयला खदानों से घिरकर कहीं खुली हाथी जेल में न बदल जाए.

बता दें कि छत्तीसगढ मध्य भारत का एक राज्य है, जहां भारत के सबसे बडे जंगल में से एक के नीचे कोयले का विशाल क्षेत्र है.

अडानी ग्रुप पहले से ही इस इलाके में एक बडे कोयला खनन के कार्य में लगा है. जिस जमीन और पानी पर स्थानीय लोग निर्भर हैं, उनके क्षरण को लेकर इस खनन कार्य की आलोचना पहले भी होती रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस इलाके में नए खदानों की एक श्रृंखला विकसित करने की योजना है.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

16 + one =

Related Articles

Back to top button