कवियत्री श्रीमती सावित्री शुक्ल ‘निशा के जीवन पर एक दृष्टि:

जीवते शरदःशतम : ९० वें वर्ष में प्रवेश- के अवसर पर

देश और प्रदेश के साथ ही होशंगाबाद जिले को जिन विभूतियों पर गौरव और गर्व है उनमें से कवियत्री श्रीमती सावित्री शुक्ल ‘निशा’ एक हैं । स्वतंत्रता के पूर्व 13 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के इटारसी नगर में जन्म लेकर ‘निशा’ जी की प्रतिभा बाल्यकाल से ही प्रस्फु टित होने लगी थी,
जब पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लेखनी प्रकाशित होने लगी थी। 60 के दशक तक उनका लेखन परवान चढ़ने लगा था और उसके बाद आकाशवाणी और देश के वृहद कवि-सम्मेलनों में सशक्त और सार्थक व्यंग्य लेखन की अनूठी प्रतिभा के साथ वह एक जाना-माना नाम हो गईं ।

वर्ष 1977 में आपका प्रथम काव्य संग्रह ‘पलाश की पीड़ा’ जब प्रकाशित हुआ तब उसमें देश के लब्ध प्रतिष्ठित व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई ने अपने मन्तव्य प्रकट करते हुए लिखा था कि, … ‘‘आज के परिवेश में जब स्नेह की जगह अपरिचय, विश्वास की जगह छल, सच्चाई की जगह मुखौटा, करूणा की जगह क्रूरता, सहजता की जगह बनावट है, कवि की प्रतिक्रिया मोह-भंग, खंडन
और विद्रोह की होगी… और इस सबमें दर्द की एक अंर्तधारा होती है, जो पलाश का दर्द है।

सावित्री शुक्ल आम आदमी के इस दर्द में सहभागिनी हैं । इनकी कविताओं मे करूणा की एक अंर्तधारा होती है, जो बिरले लेखकों में होती है। करूणा की यह अंर्तधारा विश्व के महान कहानी लेखक चेखव में थी।’’ किताब का विमोचन करते हुए प्रख्यात कवि श्री भवानी प्रसाद मिश्र का मंतव्य था कि, सतपुड़ा के पर्वतों और पलाश की पीड़ा को अभिव्यक्त करती हैं निशा जी की कविताएं”.

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प्रकृति, मानव-मन, स्नेह और सौंदर्य, क्रूरता और करूणा के प्रति तीक्ष्ण दृष्टि और अप्रतिम परख रखने वाली कवियत्री स्वयं की अंर्तदृष्टि और काव्य-सृजन के दर्शन को इन शब्दों में प्रकट करती
हैं ….

चिडिया अपना घोसला बनाती है- वह भी एक कविता है। माँ अपने बेटे को अपने आंचल से ढंककर
-थपकियां देकर सुलाती है, वह भी एक कविता है।’’ और यह कि, ‘कविता कहीं बाहर से नहीं आती,
वह हमारे आस-पास ही है। पीड़ा जीवन की शाश्वत स्थिति है। मैंने पीड़ा को जिया है और अनकही पीड़ा को कविता में लिखा है
….’’।

निशा जी की कविताओं में प्रकृति और आम आदमी के संबंध, मनोभावों, सामाजिक संबंधों के तानों-बानों, शोषण और प्रकृति और जीवन की शाश्वस्ता को लेकर दार्शनिक दृष्टि से लिखी गई कवितायें सदा समकालीन प्रतीत होती है।

कवियत्री श्रीमती सावित्री शुक्ल ‘ निशा ‘ जी की कवितायेँ…

‘जुल्म अच्छा होता है, क्योंकि उससे इन्कलाब आता है,
वैसे ही जेसे कांटों की वजह से, गुलाब में शबाब आता है।

मत कोसो काली स्याही भरी रात को हरदम,
क्योंकि, उसके बाद ही तो, आफताब आता है।’

इस प्रकार की गहरी दृष्टि रखने की समझ और सुंदर भावों के साथ पीड़ा और निराशा में भी आशा के स्वर ही मनुष्य को जीने की प्रेरणा और संघर्षों से लड़ने की ताकत देते हैं। निशा जी की प्रकाशित कृतियां हैं – पलाश की पीड़ा, खामोशी का जहर, बच्चे मन के सच्चे, पप्पू की पतंग, रात बोलती रही और झील से बातें। ‘बच्चे मन के सच्चे’ कृति पर उन्हें म.प्र. शासन द्वारा ‘रवि शंकर शुक्ल’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । अपनी रचना-धर्मिता और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए सामाजिक और साहित्यिक दायित्वों का बीड़ा भी उन्होंने पूरी ईमानदारी और कर्मठता से निभाया। अनेक वर्षों तक वह ‘म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की गतिविधियों को सम्मेलन की होशंगाबाद जिला इकाई की अध्यक्ष के रूप में निभाती रहीं।

कवियत्री श्रीमती सावित्री शुक्ल आकाशवाणी, भोपाल से नियमित रूप से आमंत्रण पर वह कविता-पाठ करती रहीं, तो 80 के दशक में म.प्र. में दूरदर्शन के शुभारम्भ और भोपाल केन्द्र के उद्घाटन-अवसर पर आमंत्रित श्रोताओं की उपस्थिति में आयोजित ‘कवि सम्मेलन’ में भी उन्हें आमंत्रित किया गया था। बम्बई, बरेली, कानपुर, गोवाहाटी, जबलपुर, लखनऊ, पीलीभीत, पानीपत, जैसे नगरों-महानगरों से लेकर बाबई, पिपरिया, भोपाल और सोहागपुर जैसे मझौले और छोटे शहरों तक में वह स्व सथ और शालीन , ग रिमामय कवि सम्मेलनों के दौर में सशक्त और स्वस्थ-व्यंग्य की सार्थक हस्ताक्षर बनी रहीं इटारसी शहर जो उनका जन्म और कर्म-स्थान रहा, में अधिसंख्य लोगों में वह स्थानीय रिश्तों की सरसता के साथ ‘बहन, बहन जी’, भाभी या ‘बुआ’ संबोधनों से ही जानी जाती रहीं।

उनके राष्ट्रव्यापी आत्मीय रिश्तों और एक समय तक-जब लंबी दूरी की यात्राअें में ट्रेन बदलने के लिए ‘इटारसी’ एक महत्वपूर्ण रेल जंक्शन-पड़ाव हुआ करता था उनके देशबन्धुपुरा के निवास पर देश के लब्ध प्रतिष्ठित कवि-साहित्यकार, कवियत्रियाँं परिवार के सदस्य के रूप में आया करते थे। जिनमें स्व. हरिशंकर परसाई, स्व. बालकवि बैरागी, स्व. गोपाल दास, नीरज, स्व. मायाराम सुरजन, स्व. वीरेन्द्र मिश्र, माहेश्वर तिवारी, स्वर्गीय उमाकांत मालवीय , श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना, राजकुमार तिवारी सु मित्र इत्यादि जैसे अनेकों नाम प्रमुख हैं।

अब आयु के ९० वें वर्ष में कवियत्री श्रीमती सावित्री शुक्ल निशा जी विगत कई वर्षो से अपने द्वितीय पुत्र के साथ बड़ोदरा में निवासरत है, लेकिन उनका लेखन जारी है, इटारसी शहर और प्रदेश एवं देश के साहित्यिक जनों से उनका संपर्क, संवाद और स्नेह यथावत है।

जिस प्रकार, शाश्वत लेखन स्थायी और सदैव सामायिक होता है, निशा जी की कवितायें भी कालजयी हैं। उन्हें सादर स्मरण करते हुए उन्हीं की एक कविता को उनके लेखन और लेखनी के
चिर-स्थायी होने के संदर्भ में उद्धृत करना उपयुक्त प्रतीत हो रहा है-

मेरी कोई भी कविता, आखिरी कविता नही होगी शायद।

बीज, जो बोया है मैंने भावना का-

वह अंकुरित होता रहेगा,

पौधा बनेगा,

और पुष्पित भी होगा।

भावनाओं का उद्गम-स्थल

बहुत बड़ा होता है।

कविता-नदी जैसी होती है,

नदी कभी सूखती नही,

अनन्त धाराओं में बहती है नदी।

नदी कभी आखिरी नही होती,

इसलिए, मेरी कविता भी,

आखिरी नहीं होगी।

( ‘कविता नदी जैसी’)

(सुनील जनोरिया)
दर्जीपुरा, पुरानी इटारसी, इटारसी (म.प्र.) मोबाइल नं. 7566814122

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