राम मंदिर-बाबरी मस्जिद पर महत्वपूर्ण खोज करने वाले इतिहासकार डी एन झा

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद पर महत्वपूर्ण खोज करने वाले इतिहासकार प्रो डी एन झा हमारे बीच नहीं रहे. मगर इतिहास की लिखी उनकी पुस्तकें हमेशा
कायम रहेंगी. वर्ष 1940 में बिहार के मध्य वर्ग के एक परिवार में पैदा
हुए प्रो डी एन झा  81 बरस के थे. वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा के संस्मरण.

दिल्ली युनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉक्टर डी एन झा
द्विजेंद्र नारायण झा Prof D N Jha के निधन की खबर हमें चार फरवरी की देर शाम बिहार के
अपने गांव में मिली. निधन की सूचना हमें नई दिल्ली में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी )
के मुख्यालय , ए के गोपालन भवन में पार्टी बुक शौप की प्रभारी और पुरानी
मित्र वंदना शर्मा जी और राजेंद्र शर्मा से मिली. वह माकपा के हिंदी मुखपत्र ‘ लोक लहर ‘ के
सम्पादक और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र हैं.
दोनों ही दिल्ली के ही तीस हज़ारी परिसर के एक कोर्ट में हमारे अदालती
विवाह के गवाह भी है.

उन्होंने इतिहासकार डी एन झा के निधन की खबर का विवरण देने से पहले ही यह बताया कि इसकी पुष्टि बीबीसी न्यूज बुलेटिन से भी हुई है.

पेशेवर पत्रकार होने के नाते हमने डी एन झा के निधन के बारे में  ‘ गडबड गोदी
मीडिया ‘ की सम्भावित करतूत से पहले  ही सोशल मीडिया पर दे देने की ठान
उसी तारीख में आधी रात के कुछ मिनट पहले समुचित विस्तार से दे भी दी.

साम्प्र्दायिक्ता  विरोधी

दिवंगत इतिहासकार डी एन झा डीएन झा हमारे रिश्तेदार नही थे और न ही हम कभी उनके या इतिहास के
छात्र रहे. उनसे बहुत पहले अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद
विध्वंस के उपरांत लखनऊ से दिल्ली में साम्प्र्दायिक्ता  विरोधी एक
सम्मेलन में शिरकत के लिये जाने पर आमने सामने की भेंट हुई थी. हम उनकी
इतिहास विषयक पुस्तको को पढ चुके थे.

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अयोध्या मामले में सम्मन पर बतौर
गवाह पेशी के लिये रोहतक (हरियाणा) से पहुंचे प्रख्यात पुरातत्वविद
सूरजभान ( अब दिवंगत ) जी ने हमें प्रो डीएन झा के बारे में विस्तार से
बताया था. रोहतक में बसे जेएनयू के पूर्व छात्र एवम प्रसिद्ध कवि मनमोहन
जी ने हमें फोन कर यह कोशिश करने कहा था कि सूरजभान जी को लखनऊ प्रवास
में कोई दिक्कत नहीं हो. हमने वही किया.सूरजभान जी के बार बार पूछ्ने पर
हमने उन्हे एक पत्रकार के रूप में अयोध्या मामले के बारे में अर्जित अपनी
जानकारी और अनुभब के बारे में भी अवगत कराया था.

दिल्ली के उस सम्मेलन से पहले तब एक अखबार ‘ संडे मेल ‘ में  कार्यरत
मित्र रामदत्त त्रिपाठी जी के आग्रह पर लिखा हमारा एक लेख सम्पादकीय पेज
पर तस्वीर के साथ प्रमुख्ता से प्रकाशित हो चुका था. प्रो डी एन झा ने हम
से उस लेख की सराहना कर आगे भी इसी तरह के वैचारिक लेख लिखते रहने कहा.
जाहिर है इस से हमारा मनोबल बढा. बहुत बाद में हम दोनो और प्रो मुखिया भी
फेसबुक मित्र बन गये और आपस में अयोध्या माम ले और अन्य मुद्दो पर भी
प्राइवेट मेसेज आदि के जरिये भी जीवंत सम्पर्क बना रहा .

 हमने एक बार जब उनसे निवेदन किया कि हम कुछ खबरनवीस , पत्रकारिता को
समकालीन इतिहास लेखन का प्रथम ड्राफ्ट मानते हैं तो प्रो मुखिया ने बताया
कि भारत की स्वतंत्र्ता की सन 1857 में पहली लडाई के बारे में कार्ल
मार्क्स ने एक अमेरिकी अखबार को जो कई डिस्पैच भेजे थे वह उनके इतिहासकार
ही नहीं  पत्रकार भी होने की परिचायक है,

इतिहास की उनकी पुस्तकें

प्रो डीएन झा हमारे बीच नहीं रहे मगर इतिहास की लिखी उनकी पुस्तकें हमेशा
कायम रहेंगी. वर्ष 1940 में बिहार के मध्य वर्ग के एक परिवार में पैदा
हुए प्रो डी एन झा  81 बरस के थे.

प्रो डीएन झा इतिहास के वास्तविक और वैज्ञानिक परिभाषकों की अग्रणी कतार
में चट्टान की तरह अडिग थे.  वे प्राचीन भारत के इतिहास लेखन को
पोंगापंथी साम्राज्यवादी लेखन और पुनरुत्थानवादी मिथकीय सांप्रदायिक
विद्वेष के लेखन के भ्रमजाल से मुक्ति दिलाने वाले साहसिक इतिहासकार थे।

प्रो डीएन झा , इतिहास लेखन के माध्यम से निहित राजनीतिक स्वार्थां वालों
और प्रतिगामी एवं पूर्वाग्रही तत्वों के लेखन का अपने निधन तक मुकाबला
करते रहे। इतिहास का कोई भी सच्चा और संजीदा विद्यार्थी उनके योगदान का
ऋणी रहेगा ।

भारतीय इतिहास कांग्रेस के शांतिनिकेतन अधिवेशन में उनका उद्घाटन भाषण
*The Hindu Identity* ,  उनकी पुस्तक *The Myth of Holy Cow* , और
*Ancient India * तथा प्रोफेसर रामशरण शर्मा  द्वारा लिखित टैक्स्ट बुक
*प्राचीन भारत * पर पाबंदी के विरुद्ध लिखी गई * In Defence of Ancient
India* पुस्तक के लिए वे इतिहास के अध्येताओं और इतिहासकारों के बीच
हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे।

वे सोशल एक्टिविस्ट के भी रूप में युनिवर्सिटी कैंपस में , लाइब्रेरी परि
सर में भी सक्रिय थे. पुरातात्विक स्थलों के बारे में उनका महती शोध
कार्य, अध्येताओं और समाज के विभिन्न हल्कों में भी उनके योगदान को
ऐतिहासिक माना जाएगा।

इतिहास रचयिता

प्रो डी एन इतिहासकार ही नहीं थे बल्कि इतिहास रचयिता भी थे. वे स्वयं भी इतिहास
निर्माताओं सा जीवन जिये ।

अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में उनका संदर्भ उनकी
इसी भूमिका का परिचय देती है।

वे संविधान की प्रस्तावना के समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर होने
वाले हमले के विरोध में उठी आवाज़ों के अदम्य साथी बनकर सामने खड़े रहे।

वे सैकड़ों शोधकर्ताओं और शोधार्थियों के शिक्षक, निदेशक, मित्र, नेता और
फ़िलोसफ़र रहे जिन्होंने भारतीय इतिहास लेखन को समृद्धि प्रदान की।

उनका इतिहास लेखन भारतीय राष्ट्र की बहुलवादी सांस्कृतिक विरासत, वर्तमान
और भविष्य को एकता के सूत्र में पिरोनेवाला था,

कृपया इसे भी पढ़ें :

https://mediaswaraj.com/frontier-gandhi-badshah-khan-trilok-deep/

वह हमारे पुरा ने मित्र एवम जेएनयू के पूर्व छात्र कामरेड राजीव झा के
चाचा थे। राजीव भी राजेंद्र शर्मा की तरह माकपा के मुखपत्र “लोक लहर” के
संपादकीय विभाग में कार्यरत हैं ।

मूल रूप से बिहार के मधुबनी निवासी

प्रोफ़ेसर डी एन झा

इतिहासकार डी एन झा डॉक्टर द्विजेंद्र नारायण  झा मूलतः बिहार के पूर्ववर्ती दरभंगा ज़िले के
निवासी थे जो अब विभक्त होकर नया जिला , मधुबनी बन गया है. उन्होने एक
सामंती ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के बावज़ूद अपने ज्ञानार्जन और
विवेकबोध से ब्राह्मणवादी संस्कृति का तिरस्कार कर सार्वभौमिक भारतीय
सर्वहारा संस्कृति का संवाहक होना स्वीकार किया। यहीं वे इतिहासकार के
साथ इतिहास बनाने वाले की भूमिका में दाख़िल होते हैं।

इतिहासकार डी एन झा फेसबुक पर भी सक्रिय थे और हमारे जैसे अनगिनत पत्रकारों और लेखकों का
अयोध्या मामले तथा अन्य संदर्भों में भी इतिहास के तथ्यों के जरिए
मार्गदर्शन करते रहे.

इतिहासकार डी एन झा जन्म 1940 में मधुबनी (बिहार) के पट्टी टोल में हुआ था। उन्होंने
कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएट और पटना
यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री ली थी। वह शुरुआत में पटना यूनिवर्सिटी में
प्रोफेसर थे। फिर दिल्ली विश्वविद्याल में प्रोफेसर बन गए। इसके बाद
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभागाध्यक्ष भी बने। वे इंडियन काउंसिल
ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च के सदस्य भी थे। वह इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के
अध्यक्ष और सचिव दोनों रहे।

उन्होंने प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर काम किया। वह साक्ष्यों
पर आधारित अपनी बेबाकी के लिए मशहूर रहे। उन्हें हमेशा ऐतिहासिक तथ्यों
और एम्पिरिकल एविडेंस के तरफदार के तौर पर याद किया जाता रहेगा। वह बिना
किसी साक्ष्य के कोई बात नहीं कहते थे। साक्ष्यों की बदौलत ही वह भारतीय
इतिहास की विकृत धारणाओं को हमेशा चुनौती देते रहे।

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद पर महत्वपूर्ण खोज

उन्होंने गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल कहे जाने को चुनौती
दी थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि गाय को बहुत बाद के समय में पवित्र
माना जाने लगा। लेकिन पह ले ऐसा नहीं था. उन्होंने भारतीय इतिहास में
धार्मिक हिंसा का दस्तावेजीकरण भी किया। उन्होंने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद
मसले पर महत्वपूर्ण खोज की थी। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को
उन्होंने निराशाजनक बताया था। मस्जिद के नीचे मंदिर होने की बात उन्होंने
नहीं मानी थी।

 Prof D N Jha ने 1991 में तीन अन्य इतिहासकारों के साथ मिलकर उन्होंने ‘ बाबरी मस्जिद ओर
 रामाज बर्थप्लेस? हिस्टोरियन्स रिपोर्ट टू द इंडियन नेशन ’ रिपोर्ट
तैयार की थी जिसमें  पुरातात्विक और अन्य साक्ष्यों के आधार पर कहा गया
था कि बाबरी मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर नहीं था।

प्रो डीएन झा की किताब ‘ द मिथ ऑफ होली काऊ ’ को लेकर काफी विवाद रहा. इस
के 26 संस्करण छपे हैं. इस किताब के मुताबिक, वैदिक और उत्तर वैदिक काल
में हिंदुओं में गोमांस भक्षण किया जाता था।

कुल मिलाकर प्रो डीएन झा को मौजूदा साम्प्र्दायिक फासीवादी सियासत के
लड़ाका के रूप में भी याद किया जाता रहेगा.

चंद्र प्रकाश झा , वरिष्ठ पत्रकार

CP Jha senior journalist
चंद्र प्रकाश झा CP Jha

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