कोरोना काल में भुजंगासन द्वारा प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

“सर्व रोग विनाशनम”

योगाचार्य दीपक श्रीवास्तव योगासन करते हुए)

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– योगाचार्य दीपक श्रीवास्तव

हावर्ड मेडिकल स्कूल (अमेरिका), विश्व स्वास्थ्य संगठन (स्विट्जरलैंड), मिनिस्ट्री ऑफ आयुष (भारत) ने समय-समय पर मानव समाज की रक्षा की जरूरत को  समझते हुए कोविड-19 से लड़ने के लिए एक्सरसाइज में योग को स्वीकार किया गया है। जिसका शरीर पहले से सामान्य कमजोर या बीमार है चाहे वह हृदय रक्तचाप श्वसन प्रक्रिया के लिए मधुमेह आंतरिक अवयव की बिगड़ती स्थिति, शारीरिक व मानसिक स्थिति से परेशान, शरीर की मांसपेशियां नस-नाड़ी-तंत्रिका की नाजुक अवस्था एवं कम लचीलापन व जोड़ सख्त होते हैं। ऐसे शरीर में इम्यूनिटी सिस्टम रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती है। इन लोगों की शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए योगाभ्यास में भुजंगासन की मुख्य भूमिका है। 

भुजंगासन

परिचय 

इस आसन का आकार फैले फन को उठाएं भुजंग या सर्प जैसा बनता है। इसलिए योग शास्त्र व अन्य शास्त्रों में ऋषि, मुनि व योगियों ने इसकी पहचान भुजंगासन यह सर्प आसन के नाम से दी है।

विधि

सर्वप्रथम पूर्ण भुजंगासन के अभ्यास के लिए बिछाए आसन पर पेट के बल लेटते समय माथे से लेकर दोनों पैर के सीधे घुटने व उंगलियां जमीन से लगाते हुए दोनों एड़ियां आपस में स्पर्श करें। दोनों हाथ की कोहनी को मोड़ते समय दोनों हथेली की सीधी उंगलियां कंधे के नीचे जमीन पर रखें। अब चेहरे से नाभि तक का भाग धीरे-धीरे श्वास भरते हुए ऊपर उठाने के लिए पहले चेहरा फिर गर्दन, छाती व पेट से नाभि तक का भाग ऊपर उठा ले। ऐसी स्थिति में उठे शरीर का वजन जमीन पर रखी हथेली पर डालते समय कलाई, कोहनी एवं कंधों को एक सीध में अवश्य लाएं। अब ऊपर उठे चेहरे को सामने लाने के लिए पेट की मांसपेशियां, रीड की हड्डी और सिर को पीछे खींचते समय गर्दन पर दबाव डालना आवश्यक है। पूर्ण भुजंगासन में शरीर के लचीलेपन की जरूरत देखते हुए नाभि जमीन को स्पर्श करें या अधिकतम एक इंच तक उठाएं। पूर्ण भुजंगासन की अंतिम स्थिति में देर तक रहने के लिए सामान्य श्वास लेते व छोड़ते रहे। अपने आसन को  सामर्थ्य अनुसार रोकने के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में वापस आने के लिए श्वास छोड़ते हुए सर्वप्रथम सिर को धीरे-धीरे सामने लाते हुए फिर भुजाओं को कोहनी से मोड़कर पीठ के ऊपरी भाग को तनाव मुक्त बनाते समय पहले नाभि फिर पेट, छाती दोनों कंधे गर्दन अंत में माथा जमीन पर लाते हैं। ऐसे पूर्ण भुजंगासन की स्थिति शास्त्रानुसार है जो नियमित अभ्यास द्वारा ही संभव है।

अर्ध भुजंगासन

परिचय

योग शास्त्र अनुसार पूर्ण भुजंगासन लगाने की विधि को पूर्णतया बता दिया है, लेकिन आज वह लोग जो पूर्ण भुजंगासन नहीं लगा पाते इसको सरल बनाने के लिए हमारे ऋषि, मुनि, महर्षि व योगियों द्वारा अर्ध भुजंगासन के बारे में पहले ही बता चुके हैं, जिसे अधिकांश स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध, युवा-युवती, योगी, रोगी, निरोगी सभी लोग निरंतर अभ्यास करते हुए पूर्ण भुजंगासन की ओर अग्रसर हो सके। 

अर्ध भुजंगासन उन लोगों के लिए एक चमत्कार की तरह है जिन्हें पीठ की समस्या है जिनका शरीर अत्यधिक कड़ा है तथा जिन की हड्डियों व मांसपेशियों में लचीलापन बहुत कम है। अभ्यास काल के दौरान हल्दी को पीसकर दूध के साथ पीने से शरीर की मांसपेशियां व नस-नाड़ी में कोमलता और रक्त भी शुद्ध हो जाता है। यह आसन उन लोगों के लिए है जो पीठ व श्वास की समस्याओं से जूझ रहे हैं।

विधि 

अर्ध भुजंगासन के सही तकनीक का उपयोग करने के लिए सर्वप्रथम अपने दोनों पैरों को एक साथ सीधा रखते हुए पेट के बल लेट जाएं अगर पीठ में दर्द हो तो अपने दोनों पैरों में अधिकतम एक फीट तक का अंतर रखें तत्पश्चात  सामने से चेहरे को उठाने के लिए कोहनी और हथेली को जमीन पर स्पर्श करें और चेहरा, गर्दन व छाती को सामने से ऊपर की ओर उठाएं अर्ध  भुजंगासन की अंतिम स्थिति में देर तक रहने के लिए सामान्य श्वास लेते व छोड़ते रहे। अपने आसन की स्थिति सामर्थ्य अनुसार रोकने के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में वापस आने के लिए श्वास छोड़ते हुए सर्वप्रथम अपने नाभि, छाती, कंधे, गर्दन और माथे को अपनी पूर्व स्थिति में वापस  ले आए। अर्थ भुजंगासन के लिए कलाई और कोहनी जमीन को स्पर्श करें एवं कोहनी के सीध में कंधे का होना आवश्यक है इसमें कलाई से कोहनी एवं कोहनी से कंधे की सीध 90 डिग्री होने की पहचान है। रीड की हड्डी बहुत सख्त या तकलीफ में है तो चेहरे को ऊपर उठाने के लिए निपुण योग विशेषज्ञ की देखरेख में पहले 30 डिग्री से शुरुआत, फिर 60 डिग्री तत्पश्चात, 90 डिग्री तक उठाने का प्रयत्न करें यह तीनों डिग्री की अवस्था कलाई कोहनी और कंधों के मध्य की है। इस स्थिति में चेहरे पर खिंचाव देते समय गर्दन पर दबाव देना आवश्यक है।

लाभ

“सर्व रोग विनाशनम”

यह आसन सब रोगों का नाशक है। हमारे जीवन में शरीर का मूल, बढ़ती उम्र की गिरती अवस्था को पुनः संजीवनी की प्राप्ति भुजंगासन में विदित है। मस्तिष्क से पैर के अंगूठे तक  के संपूर्ण तंत्रिकाओं को सुचारु रुप से लचीला बनाने में मदद कर स्वास्थ्य प्रदान करता है। रीड की हड्डी में कठोरता को कम करता है साथ ही पीठ के क्षेत्र व कमर से अशुद्ध रक्त हटाता है। इस आसन के अभ्यास से कमर पतली तथा सीना चौड़ा व संपूर्ण शरीर सुंदर व कांति मान हो जाता है। इसके अभ्यास से ग्रीवा, छाती, कटी, जंघा, हस्त-पाद, मजबूत स्वस्थ और रोग मुक्त हो जाते हैं। इस आसन के नियमित अभ्यास द्वारा मेरुदंड की शुद्धता, सांस की सभ्यता, नस-नाड़ी-तंत्रिका का लचीलापन मिलने पर पूरे शरीर के स्वास्थ्य को सुरक्षित कवच मिलता है। यह आसन स्त्री-पुरुष, बाल-युवा, वृद्ध, रोगी, निरोगी और योगी सभी कर सकते हैं। इस आसन के अभ्यास द्वारा स्त्री से संबंधित अनेक बीमारियों जैसे स्त्री के गर्भाशय से संबंधित समस्या का निदान तथा मासिक धर्म को नियमित करने में सहायक है। शरीर के पाचन तंत्र को शक्ति मिलती है जिससे कब्ज, बदहजमी तथा वायु विकार दूर होता है। आमाशय के सभी अंगों जिसमें अग्नाशय यकृत पित्ताशय की थैली आदि को सुचारू रूप से लाभ मिलता है। भुजंगासन फेफड़ों की क्षमता में सुधार लाता है छाती का विस्तार करने में मदद करता है जो सांस से संबंधित समस्याओं के लिए बहुत फायदेमंद है शरीर के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।

सावधानी

यह आसन गर्भवती स्त्री न करें। हर्निया से पीड़ित शरीर न करें। जिनकी रीड की हड्डी बहुत सख्त हो ऐसे व्यक्ति को किसी निपुण योग विशेषज्ञ की सलाह के बिना इस आसन को नहीं करना चाहिए।

(कोविड-19) भेदी काया कवच की प्राप्ति के लिए योग मार्ग द्वारा निरंतर योगाभ्यास में भुजंगासन करने के प्रयास से मिला स्वस्थ शरीर की उपलब्धि ही उसकी सफलता का मूल आधार है। यही मेरा समाज के लिए संदेश है। #

योगाचार्य दीपक श्रीवास्तव

कोविड-19 भेदी काया कवच “नियमित योगाभ्यास द्वारा कम समय और कम श्रम से अच्छे स्वास्थ्य प्राप्ति की कला” मेरे अपने जीवन काल में 50 वर्षों से ज्यादा व्यक्तिगत योग अभ्यास करने का अनुभव जिसके दौरान एशियाड 82 में योग प्रदर्शन को प्रस्तुत करना, 1984 में राष्ट्रीय योग पुरस्कार प्राप्ति एवं अन्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय योग प्रदर्शन एवं सेमिनार में भाग लेना सम्मिलित हैं। योग द्वारा स्वास्थ्य रक्षा के लिए मिलने वाला काया कवच के प्रति 39 वर्षों से अधिक गहन अध्ययन और अनुभव है।

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