सावन के पहले सोमवार को बगीचों में न झूला पड़े और न ही बेटियां झूला झूल पायी हैं

'न कहीं बगीचों में झूले दिखे और न ही सावन गीत ही गूंजे'

— आर. जयन
 
आज सावन मास का पहला सोमवार है। हर साल आज के दिन सुबह भगवान शिव का रूद्राभिषेक के बाद बाग-बगीचों में आम की डाल में झूला पड़ जाया करते थे। जहां गांव की बेटियां झूला झुलतीं और बुजुर्ग महिलाएं ‘झूला तो पड़ गयो अमुआ की डार मा, राधा रानी झूला झूले …।’ जैसे सावनी गीत गाकर बेटियों का हौंसला आफजाई किया करती थीं। लेकिन इस बार कोरोना के कहर से सब चौपट है।
      बुंदेलखंड़ में हर तीज-त्योहार मनाने का अपना अलग रिवाज रहा है। इन्हीं में से सावन मास के पहला सोमवार को सुबह शिव मंदिरों में भगवान शिव का रूद्राभिषेक करने के बाद गांवों के बाग-बगीचों में आम के पेड़ में बेटियों के झूला झूलने का रिवाज भी शामिल है। इस दिन गांवों की बेटियां झुंड के शक्ल में पहुंचकर झूला झुलतीं और बुजुर्ग महिलाएं टोली बनाकर ‘झूला तो पड़ गयो अमुआ की डार मा, राधा रानी झूला झूले …।’ जैसे बुंदेली सावनी गीत गाकर उनका हौंसला बढ़ाया करती थीं।
 
 
 किंवदंती है कि जिस बिटिया की झूले की प्वांग (रफ्तार) जितनी ऊंची होगी, राधा रानी की कृपा से उसे शादी के बाद उतना ही बड़ा घर-परिवार मिलेगा। लेकिन, इस बार सावन मास के पहले सोमवार को बगीचों में न झूला पड़े और न ही बेटियां झूला झूल पायी हैं। इसकी वजह कोरोना वायरस के संक्रमण का कहर बताया जा रहा है।
     बांदा जिले के तेंदुरा गांव की बुजुर्ग महिला सुखिया दाई (75) को झूला न पड़ने और बेटियों के न झूलने का बेहद अफसोस है। वे कहती हैं कि आज के दिन हर साल बड़े देव बाबा के स्थान में झूला पड़ जाया करता था और सतीहो जाति (सभी कौम) की बेटियां हिल-मिलकर झूला झूलती थीं। साथ ही महिलाओं का झुंड सावनी गीत गाकर उनका हौंसला बढ़ाया करती थीं, लेकिन इस बार कोरोना बीमारी ने सब बरबाद कर दिया है। कोरोना के डर से एक-दूसरे के पास बैठना भी मुश्किल हो गया है।”
     इस गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बसे कछियापुरवा गांव का दनिया बगैचा भी अबकी बार सूना रहा। इस गांव की बिटिया कुमारी मैकी को झूला न झूल पाने का मलाल है। वह कहती है कि हर साल दनिया बगैचा में झूला पड़ा करता था, लेकिन आज झूला नहीं पड़ा।” इसी गांव की महिला बसंती कहती है कि “सुबह पुरुष लोग शिव जी की पूजा कर खेती-किसानी के काम से चले गए, लेकिन कोरोना के डर से गांव के चौकीदार ने दनिया बगैचा में झूला नहीं डाला, जिससे गांव की सभी बेटियों का मन गिरा हुआ है।” वह कहती है कि “आज ही के दिन से सावनी गीतों की शुरुआत होती है, लेकिन अब लगता है कि बिना गीत ही सावन मास गुजर जाएगा।”
     सावन मास के पहले सोमवार को लेकर कमावेश यही स्थिति समूचे बुंदेलखंड़ के गांवों में रही, न कहीं बगीचों में झूले दिखे और न ही सावन गीत ही गूंजे। अब बेटियों को सबसे ज्यादा चिंता रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर है। इस त्योहार में पीहर (ससुराल) से नैहर (मायके) लौटी बेटियां रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर उगी कजेलिया मुहल्ले के किसी घर में रखकर ‘रतजगा’ किया करती हैं और पूरी रात सावनी गीत की भरमार रहती है, लेकिन कोरोना के कहर के चलते ऐसा हो पाना असंभव है।

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