कोरोना वायरस संक्रमण के बाद की दुर्बलता को कैसे मिटायें!!
जब तीनों दोषों का संतुलन बिगड़ जाते हैं जठराग्नि मन्द पड़ जाती है
कोरोना से उभर चुके रोगियों की लगातार शिकायतें हैं कि कमजोरी बहुत है, दुर्बलता मिटती ही नहीं। महर्षि चरक से उनके शिष्यों ने पूछा कि गुरु जी रोग के अधिष्ठान आपने दो बताये- शरीर और मन। तो फिर आरोग्य किसके अधीन है, महर्षि चरक ने उत्तर दिया-बलाधिष्ठानमारोग्यं यदर्थोऽयं क्रियाक्रम:।।च.चि. ३/१४१।। कि आरोग्य ‘बल’ के अधीन है। जब तक रोगी में बलहीनता रहेगी तब तक वह अपने को निरोग कह ही नहीं सकता या निरोग कहे जाने योग्य है भी नहीं। जब हम ‘बल’ की बात करते हैं तो शरीर में बल आयुर्वेद के अनुसार (संधिसंश्लेषण स्नेहनरोपणपूरणबल स्थैर्यकृच्छ्लेष्मा पंचधा प्रविभक्त उदककर्माणाऽनुग्रहं करोति।।’ सु.सू. १५/६।।
शरीर में जलमहाभूत और पृथ्वी महाभूत का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘कफ’ के संतुलन से स्थापित होता है। जठराग्नि के उचित रहने से (आयुर्वर्णं बलं स्वास्थ्यम् … … … च०चि०१५/३१) तथा वात के अपना सम्यक् कार्य करने से (बलवर्णसुखायुषामुपघाताय च० सू० १२) यह प्रमाण हमारे आर्ष ग्रन्थ देते हैं, वेद प्रमाण हैं।
कोरोनावायरस संक्रमण में यह देखा जाता है कि जब तीनों दोषों का संतुलन बिगड़ जाते हैं जठराग्नि मन्द पड़ जाती है जिससे धात्वाग्नि (Tissues fire) अच्छे ढंग से कार्य नहीं कर पाती है। कोरोना में शरीरान्तर्गत वात विकृत हो जाता है, पित्त के बिगड़ने से ज्वर और रोग प्रतिरोधक क्षमता की दुर्बलता बढ़ जाती है और कफ के विकृत होने से बेचैनी, अधीरता, भारीपन आदि लक्षण बढ़ जाते हैं।
एक ने कहा कि अपनी ऊर्जा हर्षित रहने में खर्च कीजिए क्योंकि हर्षित रहने से आन्तरिक शक्ति बढ़ती है। लेकिन ‘हर्ष’ (खुशी) का तो जन्म देता है शरीर का संतुलित वायु। महर्षि चरक ने वायु को ‘हर्षोत्साहयोनि: (चरक सूत्र १२) कहा है।
कोरोना के पश्चात् की कमजोरी की वास्तविकता जान लेने के पश्चात् अब उसका विघटन करना बहुत ही सरल हो जाता है यही तो चिकित्सा है। रोग की सम्प्राप्ति का विघटन इसका समूल कार्य तो केवल आयुर्वेद विज्ञान में ही बताया गया, अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ तो केवल लक्षणों के लिये दवा देती हैं।
कोरोना के बाद की कमजोरी के लिये हम ध्यान दें कि रोगी में कौन सा दोष घटा या बढ़ा है यह लक्षणों के आधार पर भी परखा जा सकता है, प्रश्न परीक्षा के आधार पर। इसके परीक्षण के लिये अन्य साधन भी है। फिर भी कोरोना के पश्चात् की कमजोरी मिटाने के लिये एक सामान्य प्रोटोकॉल इस प्रकार हो सकता है।
१. तालीसादि चूर्ण ४-५ ग्राम दिन में २-३ बार मधु के साथ।
२. स्वर्णमालतीवसंत, वसंत कुसुमाकर रस, १२५-१२५ मि०ग्रा० ताप्यादि लौह २५०मि०ग्रा०, प्रवाल भस्त १२५ मि०ग्रा० १²२ मधु के अनुपान से।
३. द्राक्षावलेह १० ग्राम सुबह नाश्ते के समय चाटकर १ कप ग्रीन टी लें।
४. द्राक्षासव १० मि०लि० दशमूल क्वाथ १० मि०लि० बराबर जल मिलाकर भोजनोत्तर।
अनुलोम-विलोम, पूरक कुंभक, रेचक भ्रामरी प्राणायाम प्रात: स्नान, ताजी हवा में भ्रमण, देवाराधन, जप, तीर्थाटन, हवन, भोजन में मूँग की दाल, परवल की सब्जी, अदरख, पुदीना, धनिया सेन्धव लवण मिश्रित चटनी, चना, गेंहूँ, जौ मिश्रित रोटी, हल्का गोघृत, आरोग्याम्बु (अर्धावशिष्ट जल) का सेवन करें। रात्रि का भोजन सोने के २ घंटे पूर्व कर लें।
इन औषधियों, देवव्यापाश्रय चिकित्सा और जीवनशैली के सेवन से प्रथम सप्ताह में ही दोषों का संतुलन होकर बल का आधान होने लगता है और बल स्फूर्ति आ जाती है।
आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी,
बी0ए0 एम0 एस0, पी0 जीo इन पंचकर्मा,
विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एन0डी0, साहित्यायुर्वेदरत्न, एम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन),
एल-एल0बी0।
संपादक- चिकित्सा पल्लव,
पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0,
संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।