भारत का वो गांव जो एशिया में कहलाता है सबसे साफ़ गांव

नई दिल्ली: प्राकृतिक सौंदर्य से दूर रहते हैं और उनका अधिकतर समय लैपटॉप पर काम करते हुए ही शारीरिक और मानसिक थकान के बीच ही निकल जाता है. शहरों में रहते हुए प्रकृति और हमारे बीच का फासला और बढ़ता जा रहा है. शहर की भागदौड़ और तनाव भरी जिंदगी से छुटकारा झीलों का ऐसा नजारा भारत के अलावा कहीं और नहीं मिलेगा. जी हां चीन नहीं! सिंगापुर नहीं! भारत स्वच्छता से जगमगा रहा है और एशिया के सबसे स्वच्छ गाँव का घर है.

मैगजिन के बदौलत गांव आया दुनिया के सामने

बता दे कि एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव मेघालय में स्थित है जिसका नाम मावलिननॉनग हैं. मेघालय के इस छोटे से गांव में प्लास्टिक पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं. मावलिननॉनग गांव 2003 में भारत का ही नहीं ब्लकि एशिया का भी सबसे साफ सुथरा गांव बना. 2003 तक इस गांव में केवल 500 व्यक्ति ही रहा करते थे और इस गांव में सैलानिया का आना जाना भी नहीं था. पहले इस गांव में सड़के भी नहीं थी और गांव में सिर्फ पैदल से ही आया-जाया जा सकता था.  साथ ही मावल्यान्नॉंग की सड़कों को देखकर आपको खुद ही पता चल जाएगा कि इस गांव को यह उपाधि क्‍यों दी गई है. इसकी सड़कों पर हरियाली है और यहां की सड़कों पर आपको पत्ते तक दिखाई नहीं देंगें.

लेकिन काफी साल पहले इंडिया के मैगजिन के एक पत्रकार की बदौलत यह गांव दुनिया की नजरों के सामने आया था.

मावल्यान्नॉंग के लोग

मावल्यान्नॉंग में विशेष रूप से खासी जनजाति के लोग रहते हैं और यहां के लोग सफाई को बेहद गंभीरता से लेते हैं. साल 2007 के बाद यहां हर घर में शौचालय है और हर घर के बाहर कूड़े के लिए बांस से बना कूड़ेदान है. यहां के लोग स्‍वयं अपने घरों में ही नहीं बल्कि सड़कों पर भी सफाई रखते हैं. इस गांव का मुख्‍य कार्य और आय का प्रमुख स्रोत कृषि है. इस गांव के लोग अपने खेतों में काम करने के अलावा गांव और समुदाय के कल्‍याण के कार्य करने में भी रूचि रखते हैं. मावल्यान्नॉंग के लोग पानी की उपलब्‍धता, स्‍थानीय स्‍कूल के निर्माण और गांव के लिए जरूरी अन्‍य सुविधाओं को व्‍यवस्थित रखने का कार्य भी करते हैं. ये गांव पुरुष नहीं बल्कि महिला प्रधान है और यहां पर बच्‍चे अपनी मां का सरनेम लगाते हैं. दुनियाभर के लिए ये गांव किसी मिसाल से कम नहीं है.

इस गांव के बारे में और जानें

मावल्यान्नॉंग को ट्री हाउस के लिए भी जाना जाता है. यहां पर हर काम जैसे घर बनाने तक के लिए बांस की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. खासी झोपडियां जूट, बांस से बनाई जाती हैं. इस गांव में रहते हुए ऑगेनिक उत्‍पादों से बने स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजनों का स्‍वाद जरूर चखें। यहां पर लोग खाने की सभी चीज़ें खुद अपने खेतों में उगाते हैं. यहां पर लाल चावल से बनी डिश जदोह जरूर खाएं. इसमें पोर्क आौर चिकन को मसालों के साथ पका कर बनाया जाता है. इसके अलावा मावल्यान्नॉंग में तुंग्रींबाई, मिनिल सोंगा, पुखलेइन भी खा सकते हैं.

मावल्यान्नॉंग में और इसके आसपसास के दर्शनीय स्‍थल

बांस की लकड़ी से बने स्‍काई व्‍यू पर जरूर जाएं. यहां ये बांग्‍लादेश की धरती देखी जा सकती है। ये गांव बांग्‍लादेश की सीमा से काफी नज़दीक है. इसके अलावा यहां पर चर्च ऑफ एपीफेनी, मावल्यान्नॉंग झरना आदि भी देख सकते हैं. मावल्यान्नॉंग में कई रूट ब्रिज हैं जोकि चेरापूंजी के डबल डैक्‍कर रूट ब्रिज से मिलते हैं.

मावल्यान्नॉंग आने का सही समय

मावल्यान्नॉंग का मौसम सालभर सुहावना रहता है. हालांकि, मॉनसून और इसके बाद वाले महीनों में इस जगह की खूबसूरती और भी ज्‍यादा बढ़ जाती है. अगर आप मा‍वलिनोंग की संस्‍कृति के बारे में जानना चाहते हैं तो यहां जुलाई के महीने में आएं. इस दौरान यहां पर बेहदिएनखलाम उत्‍सव का आयोजन होता है और नवंबर के महीने में नोंगक्रेम नृत्‍य उत्‍सव भी मनाया जाता है.

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