पुराने कुओं के जीर्णोद्धार का मुश्किल और जोखिम भरा काम
कूप देवता
दिनेश कुमार गर्ग
आधुनिक युग में जब संपूर्ण क्षेत्र में कुओं के सूख जाने के कारण उनको मलबाघर में तब्दील कर दिया जा रहा है। ऐसे में हम सब लोगों ने 103 वर्ष पुराने सूख चुके कुएं की सफाई कर उसके पुनरुद्धार का काम करना शुरू किया है। यह कुंआ वर्ष 1917 में मालकिन साहब गंगा कुंवर पत्नी शिव शंकर दयाल मिश्र जमींदार पूरब शरीरा परगना अथरवन द्वारा निर्मित कराया गया था। इस कुएं के मलबे को साफ कर जीर्णोद्धार का काम उत्साही नवयुवकों द्वारा रविवार से शुरू हुआ है।
इस कुंए की सफाई के लिए 65 फीट लंबी सीढी़ बनाई गई। सीढी़ और रस्सी पर 3300 रुपये का व्यय आया। जिन लड़कों ने 20000 रुपये में कुआं साफ करने का ठेका लिया उनकी हिम्मत शाम को सीढ़ी लगाते-लगाते टूट गई। जो काम पिछले सोमवार को शुरू होना था वह आज सुबह शुरू हुआ।
इस बार सफाई के काम का ठेका नहीं दिया गया क्योंकि जो लड़के मेरे घर के निर्माण कार्य में लगे थे उन्होंने दोगुनी दैनिक मजदूरी पर काम कर सफाई कर देने की सहमति दे दी । शनिवार शाम को ट्रायल के लिए 2 लड़के 65 फीट नीचे कुंए में उतरे । कोई दिक्कत जैसे ऑक्सीजन की कमी आदि की अनुभूति न होने पर वे ऊपर आये और कार्य करने की सहमति दे दी ।
रविवार को कुंए की सफाई का काम शुरू हुआ लेकिन खत्म कब होगा ये पता नहीं है। तीन नौजवान नीचे पाताल में खोदाई करने में डटे हैं , पांच नौजवान मिट्टी खींचने में जुट हुए हैं। दो घंटे में 6 इंच मिट्टी और मलबा हटा लेने में सफलता मिली है। संकल्प कुंए के बेस यानि निवाड़ तक मिट्टी खोदने और बाहर निकालने का है। पानी मिलेगा या नहीं , यह प्रश्न नहीं है। बस कूप देवता का देवत्व और श्री सौभाग्य फिर से चमके यही अभिलाषा है । शिव भोले की जय।
(लेखक पत्रकार, अध्यापक एवं सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त उपनिदेशक हैं)