Priyanka Gandhi की प्रगतिशील पहल

प्रियंका गांधी ने हाथरस और लखीमपुर में जमीन पर उतर कर जो संघर्षशील छवि बनाई है उसे बरकरार रखते हुए सूची के द्वारा भी संदेश देने की कोशिश की है।

राकेश श्रीवास्तव 

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जब 40 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को देने की घोषणा की थी तभी मैने लिखा था कि यह महिला सशक्तिकरण की दिशा मे उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। कांग्रेस की 125 उम्मीदवारों की पहली सूची मे 50 महिलाओं को टिकट देकर उन्होंने अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं।  इस सूची मे जमीन से जुड़ी महिलाएं,अत्याचार की शिकार महिलाएं एवं जमीनी संघर्ष करने महिलाओं को शामिल करके प्रियंका गांधी ने एक नई पहल की है जिसके सकारात्मक दूरगामी परिणाम प्राप्त होंगे।

चुनावी वैतरणी पार करने मे वे भले सफल न हो पायें पर वह अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों के लिए हौसला अफजाई जरूर करेंगी। यह दूसरे दलों के लिये भी दीर्घ काल मे पियर प्रेशर का कार्य करेगी। उनके सामने भी धनबल और बाहुबल से हट कर कैन्डीडेट उतारने का उदाहरण रहेगा।जनता के समक्ष भी बेदाग प्रत्याशी को चुनने का अवसर रहेगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था मे फर्स्ट पास द गोलपोस्ट ही चलता है पर लोकतंत्र मे विरोध की संख्या भी मायने रखती हैं। डॉ. राममनोहर लोहिया ने पंडित नेहरू के विरुद्ध चुनाव लडकर दिखाया था कि नेहरू के गढ़ फूलपुर मे भी 28.17% लोग नेहरू के खिलाफ हैं।

पंडित नेहरू को एक लाख अट्ठारह हजार नौ सौ इकतीस वोट मिले थे तो अट्ठावन हजार तीन सौ इकसठ लोगों ने नेहरू जी को नकारते हुए डा लोहिया मे विश्वास व्यक्त किया था।परिणाम जो भी आये परंतु प्रियंका गांधी ने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए चालीस प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की अपनी घोषणा से कदम पीछे नहीं घसीटे।देखना है कि  प्रियंका गांधी की “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” मुहिम की पहल कितनी सार्थक होती है और महिलाओं की भागीदारी समाज मे कितना गुणात्मक परिवर्तन लाती है।अभी तक अन्य दलों की घोषित सूचियों मे महिलाएं हाशिये पर हैं।

कांग्रेस ने उन्नाव से माखी कांड की रेप पीडि़ता की मां आशा सिंह को प्रत्याशी बनाया हैं। प्रियंका गांधी ने कहा कि हमने उनको मौका दिया है कि वे अपना संघर्ष जारी रखें।जिस सत्ता में उनकी बेटी के साथ अत्याचार हुआ। उनके परिवार को बर्बाद किया गया, अब वह वहीं सत्ता हासिल करें।आशा बहनों ने कोरोना में बहुत काम किया,लेकिन उन्हें पीटा गया।उन्हीं में से एक पूनम पांडेय को भी शाहजहांपुर से टिकट दिया गया है।सीएए-एनआरसी के समय सदफ जाफर ने बहुत संघर्ष किया था। वह जेल मे भी रहीं और उन्हें प्रताडि़त किया गया।वह लखनऊ से चुनाव मैदान मे उतरेंगी।पंचायत चुनाव के दौरान  लखीमपुर के चीरहरण कांड की पीडि़ता रितु सिंह को मोहम्मदी सीट से उम्मीदवार बनाया है।इसी प्रकार सोनभद्र नरसंहार के पीड़ित में से एक रामराज गोंड को भी टिकट देकर संदेश दिया गया है कि अगर आपके साथ अत्याचार हुआ तो आप अपने हक के लिए लड़ें।कांग्रेस ऐसे संघर्षशील लोगों के साथ खड़ी है।इस लिस्ट मे पचास महिलाएं तथा चालीस युवा हैं।अधिकतर बेदाग हैं जिससे धनबली और बाहुबली से हट कर वोट देने का विकल्प मतदाता को उपलब्ध कराया गया है। 

प्रियंका गांधी ने हाथरस और लखीमपुर मे जमीन पर उतर कर जो संघर्षशील छवि बनाई है उसे बरकरार रखते हुए सूची के द्वारा भी संदेश देने की कोशिश की है। यदि अपवादों को छोड़ दें तो इस सूची में राजनीतिक परिवार की महिलाओं की संख्या बहुत अधिक नहीं है।बहुत अफसोसजनक है कि आज भारतीय राजनीति मे उच्च पदों को सुशोभित कर रही महिलाएं भी महिलाओं की समस्याओं और उनके सम्मान की रक्षा के लिए पार्टी लाइन से हटकर आवाज नहीं उठाती। भले वह केंद्रीय या राज्य मंत्रीमंडल मे मंत्री हों पर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार पर उनकी वाणी शुष्क हो जाती है।आशा है कि प्रियंका गांधी की हुंकार “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” हर अत्याचार और हक की लड़ाई मे सशक्त होकर गूंजेगी। 

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