कविता: नारी

कवि स्वामी दास’ 

नारी
जीवन की जननी है कुदरत का अभिमान है
कहलाए नारी वो ईश्वर भी करता उसका सम्मान है,
मां बनकर तुम्हें बुरी नज़रों से बचाती
कोई भी दुख तुम्हारा देख नहीं पाती
तुम्हारे में ही बस्ती हरदम उसकी जान है,
बहन बनकर मांगती तुम्हारे लिए दुआएं
सुनती तुम्हें और अपने सर लेती तुम्हारी बलाएं
सह नहीं पाती तुम्हारा जो अपमान है,
पत्नी बनकर सुख दुख सारे साथ निभाती
प्रेम देकर तुम्हारे जीवन में स्थिरता लाती
कठिन जीवन को बनाती आसान है,
बेटी बनकर देती तुम्हारे नाम को आधार
घर की रौनक बनती ना करती तुम्हें लाचार
कन्यादान का पुन्य दिलाती करती तुम्हें महान है,
सबके घर बसने वाला एक सा वरदान है
सम्मान करो! दो इनको जो इनका स्थान है।
(यह कवि का कलम नाम है)

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