नेपाल में मधेसी दलों के बाद कम्युनिस्ट भी खंड खंड
यशोदा श्रीवास्तव
:नेपाल की राजनीति में ओली सरकार बदलने के बाद भी सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा। पांच दलों के समर्थन से सत्ता में आई नेपाली कांग्रेस के लिए सहयोगी दलों को साधना मुश्किल हो रहा है। पीएम शेर बहादुर देउबा के समक्ष असमंजस यह है कि वे अपनी सरकार का असल खेवनहार किसे मानें? प्रचंड को या माधव कुमार नेपाल को? जनता समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता उपेंद्र यादव भी पीएम देउबा से बराबर की तरजीह चाहते हैं।
इधर एक नई घटनाक्रम के बाद काठमांडू में चर्चा है कि नेपाल की पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी टूट रही है।वह कम्युनिस्ट पार्टी जिसे स्व.मनमोहन आधिकरी सरीखे नेताओं ने ऐसे समय आबाद कर रखा था जब दुनिया के कम्युनिस्ट देशों में कम्युनिस्ट कमजोर पड़ रहा था। यूएमएल कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर पूर्व पीएम माधव कुमार नेपाल ने यूएमएल समाजवादी कम्युनिस्ट के नाम से नई कम्युनिस्ट पार्टी के गठन की घोषणा कर दी है। पूर्व पीएम ओली यूएमएल के अध्यक्ष हैं ही।नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी का पहले ही दो गुट था। माओवादी सेंटर और यूएमएल। अब तीन हो गई। कम्युनिस्ट पार्टी का एक क्षेत्रीय गुट भी है जिसे विप्लव गुट के नाम से जाना जाता है।
नेपाल की राजनीतिक पार्टियों के मजबूती अथवा लोकप्रियता का आधार यदि संख्या बल हो तो लगातार कमजोर हो रही नेपाली कांग्रेस मौजूदा वक्त में सबसे लोकप्रिय और मजबूत पार्टी मानी जा सकती है। टूट तो मधेसी दलों में भी हुई और ये नेपाल की राजनीति में दिग्भ्रमित दल के रूप में देखे जाने लगे हैं। महंत ठाकुर और उपेंद्र यादव अब अलग अलग हैं। दोनों गुट सत्ता रूढ़ दल के साथ रहने को आदी हो चुके हैं। नेपाल के मधेस क्षेत्र में जहां इनका जनाधार हुआ करता था,ये वहां बहुत कमजोर हो चुके हैं। मेधेसी दल को संजीवनी की दरकार है जो किसी वसूल वाले नेता के नेतृत्व के बिना संभव नहीं है। मधेसी दल को पूर्व पीएम डा.बाबू राम भट्टाराई जैसे वसूल वाले नेता के नेतृत्व की जरूरत है।लेकिन यह तब संभव है जब उपेंद्र यादव,महंत ठाकुर,राजेंद्र महतो जैसे मधेसी नेता अपने में थोड़ा बदलाव लायें।
नेपाल में दूसरा आम चुनाव होने में महज साल भर का वक्त है। देखा जाय तो नेपाल राजनीति के लिए यह चुनावी वर्ष है लेकिन जनता में बदलाव की अनुभूति के लिए पांच दलों के समर्थन से सत्ता में आई देउबा सरकार अभी तक कोई साझा कार्यक्रम नहीं बना सकी। आगामी आम चुनाव में नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में पांच दलों का एलायंस लड़ेगा या समर्थक दलों की अपनी डफली अपना राग होगा?
नेपाली संसद का अभी जो मौजूदा गणित है, उस हिसाब से 62 सदस्यों के साथ नेपाली कांग्रेस 275 सदस्यों की संख्या में सबसे बड़ा दल है लेकिन भारत के प्रभाव वाले तराई के 22 जिलों में,जहां कभी इनकी जय जयकार होती थी,वहां बहुत कमजोर हुए हैं।हैरत है कि इन इलाकों में कम्युनिस्ट हावी होते गए। अगले आम चुनाव तक नेपाल में क्या सिनेरियो बनता है,अभी कुछ कहना मुश्किल है लेकिन राजनीतिक दलों में जैसी उठापटक और शह मात का खेल देखा जा रहा,उस हिसाब से नेपाल में राजनीतिक स्थिरता की संभावना अभी कम है।