बहु ध्रुवीय विश्व के सपने को चीन ने तोड़ा, भविष्य में भारत चीन के बीच हथियारों की होड़ बढ़ेगी…

मदन गोविन्द राव,

मदन गोविंद राव, पूर्व विधायक, कुशीनगर

विश्व की महाशक्ति बनने की आतुर महत्वाकांक्षा तथा विशाल सैन्य ढांचे एवं आर्थिक उपलब्धियों ने विस्तारवादी चीन को घमंडी बना दिया है तथा पाकिस्तान जैसे उदण्ड एवं शरारती तथा उपकृत सहयोगी के सहारे भारत को धमका कर दबदबा कायम करने की चीनी रणनीति फिलहाल विफल होती दिखायी पड़ रही है,
ब्रिक्स के माध्यम से डॉलर के दबाव से मुक्ति, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाने की गैर नाटो शक्तिशाली देशों के सामूहिक सपने को अपनी अदूरदर्शी बचकानी हरकत से चीन ने तार-तार कर दिया है,संभव है कोरोना से उत्पन्न अव्यवस्था तथा अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट का फायदा उठाकर लेह लद्दाख के रणनीतिक रूप से लाभकर कुछ स्थलों पर कब्जा कर भारत को दबाव में लाने तथा एशिया प्रशांत के देशों को रणनीतिक संदेश देने की योजना चीन ने सोच समझकर बनायी हो लेकिन हिन्द प्रशांत महासागर में अमेरिका की दमदार उपस्थिति तथा जापान, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम की भारत के साथ सामरिक साझेदारी ने निश्चित रूप से भारत को आक्रामक बनाए रखने में मदद पहुंचाया है तथा रूस द्वारा भारत को दिए गए परोक्ष एवं मौन समर्थन ने चीन को हतोत्साहित किया है,
याद रहे क्यूबा संकट के दौरान अमेरिका सोवियत संघ के बीच उत्पन्न सैन्य तनाव का फायदा उठाकर चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया था उस समय रूस की सहानुभूति चीन के साथ थी जबकि क्युबा तनाव के कारण अमेरिका भारत की मदद करने में उदासीन बना रहा।
क्युबा तनाव कम होते ही चीन ने भारत से युद्ध समाप्त कर दिया तथा अनेक जीते हुए क्षेत्र से वापस चला गया जबकि अक्साई चीन को अपने कब्जे में बनाए रखा,
संभव है यदि 1962 युद्ध में भारत को समय से अमेरिकी सैन्य साजो सामान मिल गया होता तो युद्ध का परिणाम कुछ दूसरा भी हो सकता था,
भारत तिब्बत सीमा पर तनाव कुछ कम होता दिखायी पड़ रहा है लेकिन चीन को अमेरिका के साथ भारत से भी भविष्य में शीत युद्ध का सामना करना ही पड़ेगा।
भारत जहां स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता पर जोर देकर सैन्य शक्ति तथा अर्थव्यवस्था के आकार को बढ़ाने तथा मजबूती देने का प्रयास करेगा वही खार खाए चीन भारत के सीमावर्ती देशों को प्रभाव में लेकर भारत के खिलाफ मोर्चा बनाने तथा देश के अंदर हिंसात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने की नीति पर चल सकता है
भारत को भी कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए रूस को भरोसे में लेते हुए अमेरिकी नेतृत्व वाले विकसित एवं नाटो सहयोगी देशों के साथ घनिष्ठ सामरिक, कूटनीतिक संबंध बनाने की दीर्घकालीन नीति पर चलने की तैयारी करनी पड़ सकती है,
मेरा अपना आकलन है जैसे जैसे पाकिस्तान कमजोर पड़ेगा तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत सामरिक एवं सैन्य ढांचे को मजबूत बनाते जाएगा चीन की बेचैनी बढ़ती जाएगी जिसके कारण पाकिस्तान को उकसा कर भारत को विनाशक युद्ध के चपेट में ला सकता है
वर्तमान हालात में यदि अमेरिका की क्षेत्र में प्रभावी दिलचस्पी तथा रूस का भारत के प्रति हमदर्दी दिखायी नहीं पड़ी होती तो भारत को उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर एक साथ युद्ध का सामना करना पड़ सकता था।

1962 के पराजय की हीन भावना से मुक्त भारतीय सैन्य बलों एवं राजनीतिक नेतृत्व के साहस एवं आत्मविश्वास तथा विश्व शक्तियों का भारत के प्रति एकजुटता ने चीन के लिए सीमा पर प्रतिकूल स्थिति पैदा कर दिया है.  विस्तारवादी एवं दगाबाज चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत को गैर सैन्य ताकत के तरफ भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

पिछले तीन-चार दशकों में चीन को पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा उन्नत तकनीक एवं पूंजी निवेश के माध्यम से खरबों डॉलर दिया गया है जिसके कारण सस्ता ऋण, भारी ब्याज, सब्सिडी, परोक्ष निर्यात सहायता का लाभ चीन सरकार ने अपने उद्यमियों एवं कारोबारियों को देकर सस्ते कीमत के उत्पादों से दुनिया के बाजारों पर कब्जा जमाया है.

 लाभांश की वापसी ने लगातार चीन में डॉलर का आवक बनाए रखा जिससे चीन की विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार वृद्धि तथा विपुल डालर भंडार के कारण उद्यमियों एवं कारोबारियों को सस्ती एवं नवीनतम तकनीक एवं उत्पादन, निर्माण तथा परोक्ष निर्यात सहायता से चीन सरकार ने अर्थव्यवस्था के आकार को विशालकाय बनाने में सफलता हासिल कर लिया है,

यदि स्वदेशी के संकल्प को फलीभूत करते हुए आज का भारत सस्ता एवं टिकाऊ उत्पाद का विकल्प उपलब्ध कराकर तथा चीन से नाराज दुनियां के देशों को चीन के वास्तविक स्वरूप से परिचय करा कर चीनी उत्पादों को विश्व बाजार से बाहर करने की रणनीति पर अमल करा सके तो डालर का आवक रूकते ही धीरे-धीरे चीनी अर्थव्यवस्था का आकार सिकुड़ता जाएगा,.

फलत: चीन को अपने उद्यमियों को सस्ता कर्ज देना कठिन हो सकता है तथा ब्याज एवं परोक्ष निर्यात सब्सिडी में कटौती करने हेतु विवश होना पड़ सकता है, जिसके चलते चीनी उत्पाद विश्व बाजार में महंगे हो जाएंगे.
फलत: दुनिया के बाजारों में उन्नत तकनीकों से निर्मित भारत का टिकाऊ  एवं सस्ता माल चीन की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर सकता है,

गांधी का स्वदेशी, मोदी का आत्मनिर्भर भारत तथा योगी का वन डिस्टिक वन उत्पाद भविष्य के भारत की राह हो सकता है बिना युद्ध तथा बिना खून गिराये दुश्मन को बर्बाद करने की यह अच्छी रणनीति हो सकती है,

भारत के उद्यमियों-कारोबारियों को अत्यधिक मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति एवं नागरिकों को विदेशी माल के प्रति मोह को त्यागना होगा ।।।-

= लेखक उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से पूर्व विधायक हैं. ये लेखक के निजी विचार हैं. 

 

One Comment

  1. प्रभावित करने वाला लेख। विधायक जी से आग्रह है कि वे नियमित रूप से योगदान कर हम सबका बौद्धिक उन्नयन करें ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

1 × four =

Related Articles

Back to top button