एक ग्रामीण उद्यमी का कटु अनुभव : मेक इन इंडिया में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार

दिनेश कुमार गर्ग 
 
स्वतंत्र भारत में पढ़ना और पढ़कर नौकरी ढूंढना अधिकांशतः भारतीय युवक की अब तक नियति रही है लेकिन उद्यमशील होना और घूस-कमीशन की पूंजी से बचकर एक छोटी 5 लाख रु की पूंजी से लोकल मैन्यूफैक्चरर बनना, वह भी घोर देहात में , कोई छोटी-मोटी बात नहीं है।
 
भारत के प्रधानमंत्री ने कहा था मेक इन इंडिया तो उसे पूंजी संपन्न उद्यमियों ने अपनाया या न अपनाया हो, जनपद कौशाम्बी के मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर परई-उग्रसेनपुर के अरविन्द मौर्य ने जरूर आत्मसात किया है। उन्होंने आईटीआई इलाहाबाद से इलेक्ट्रिक्स में डिप्लोमा लेकर एल ई डी  बल्व के निर्माण और मार्केटिंग का उद्योग शुरू कर दिया।
 
बल्ब फ़ैक्ट्री
 
अरविन्द मौर्य का कहना है कि ” कर बहियां बल आपनी छाडि परानी आस ” की कहावत को स्मरण करके उन्होंने नौकरी ढूढ़ने के बजाय अपना उद्यम ज्यादा गौरवपूर्ण माना । नौकरी में भारी घूस , सिफारिश , पास को फेल और फेल को पास किये जाने के जालबट्टे में फंसने के बजाय कुछ नया उद्योग करने का निर्णय लिया । वह इलेक्ट्रिकल्स में आईटीआई ट्रेण्ड थे ही, यानी स्किल उनके पास थी , बस जरूरत थी स्थान , पूंजी और कच्चे माल की । कच्चा माल जैसे हाउसिंग,बी 20 , टिक्की, एमसीपीसीबी बाॅक्स इत्यादि सब नोयडा और प्रयागराज में उपलब्ध था ।
कौशाम्बी के गाँव में फ़ैक्ट्री
 
 
इनीशियल 5 लाख की  पूंजी पिता जी उस समय देने को तैयार हो गये जब उन्हे बताया गया कि बैंक के लोन में कितनी लिखापढी़, जमानत ओर कमीशनबाजी से गुजरना पड़ रहा है  । वर्कशाप और शोरूम के लिए जितनी जगह चाहिये थी उतनी जगह नगरों में 10 से 15 हजार रुपये महीने में मिलते जबकि उन पर दबाव था प्रोडक्शन काॅस्ट को कम करने का । जितना ही कास्ट कम होगा उतना ही बाजार के काम्पिटीशन  में आसानी होगी । अतः 10 से 15 हजार रु वर्कशाॅप के बचाने और प्रति व्यक्ति मजदूरी दर में कटौती करने के लिए उन्होंने अपने पैतृक आवास को चुना ।
 
शोरूम वर्कशाॅप की बचत हुई और उनका परई ग्राम क्षेत्रीय प्रमुख बाजार पश्चिम शरीरा से 5 किलोमीटर दूर है इसलिए गांव व आसपास के गांव के युवाओं को बाजार के दूकानदारों के यहां रोजगार भी नहीं है। बाजारवाले लोग अपने या सटे गांवों के जान पहचान के लोगों को ही पसंद करते हैं। ऐसे में युवाओं को मनरेगा के अतिरिक्त रोजगार भी नहीं है , इसलिए वहां सस्ते दैनिक मजदूर भी मिल गये । 
   
उन्होंने परई में ही युवकों को ट्रेण्ड किया और 200 एल ई डी बल्ब प्रतिदिन का उत्पादन शुरू कर दिया । समस्त माल पश्चिमशरीरा  सहित आस-पास की बाजारों में आसानी से खप गया क्योंकि विक्रेताओं को ब्राॅन्डेड माल की जगह अरविन्द मौर्य के बल्ब पर प्रति नग ज्यादा कमीशन मिलने लगा और एक साल की गारंटी होने से ग्राहकों का भरोसा भी हासिल हो गया । 
 
श्री मौर्य जोजेट ब्राण्ड नाम से बल्ब बनाते हैं । आज बाजार में जाइये तो प्रत्येक विक्रेता के पास मेड इन परई का जोजेट एल ई डी बल्ब इस गारंटी के साथ मात्र 80 रु में मिल जायेगा कि फेल हुआ तो नये बल्ब से रिप्लेस कर देंगे। 
 
मौर्य अपने प्रोडक्शन और बाजार का विस्तार क्यों नहीं करते ? पूछने पर बताया कि “बैंक से ऋण लेना वैतरणी पार करने से भी कठिन है। पहले पेपरबाजी करिये फिर कमीशन दीजिये और बाद में भारी कमीशन राशि पर ब्याज भी भरिये। बैंक ऋण उन्हीं के लिए है जो बोगस लोनिंग कराते हैं ।
मौर्य अपने प्रोडक्शन और बाजार का विस्तार क्यों नहीं करते ? पूछने पर बताया कि “बैंक से ऋण लेना वैतरणी पार करने से भी कठिन है। पहले पेपरबाजी करिये फिर कमीशन दीजिये और बाद में भारी कमीशन राशि पर ब्याज भी भरिये। बैंक ऋण उन्हीं के लिए है जो बोगस लोनिंग कराते हैं । “
 
तो मार्केट क्यों नहीं बढा़ रहे ? बताया कि ” आधी पूंजी तो उधार में फंसी रहती है , बाजार शेयर बढा़ने के लिए कामगार और कच्चा माल भी तो बढा़ना होगा , और पूंजी अपने पास नहीं सरकार के पास और बैंक के पास है। ” सरकार से क्यों नहीं लिया? बताया कि ” सरकारी अधिकारी बैंक वालों से कम हैं क्या” ? 
 
नव उद्यमी ने बताया कि वह लाॅक डाऊन के पहले 6 लोगों को रोजगार देते थे पर अब इस समय खपत कम होने से 4 लोग ही काम पर आ रहे हैं। उन्होंने जीएसटी , एम एस एम ई रजिस्ट्रेशन आदि करा रखा है और उनकी कंपनीका नाम जोजेट इलेक्ट्रिकल प्रा लि परई है।

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