छठ का नहाय खाय आज, शुरू हुआ सूर्योपासना का महापर्व

श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक है सूर्योपासना का यह महापर्व

महाछठ पर्व का आगाज आज नहाय खाय से हो गया है. मूल रूप से बिहार की संस्कृति में शामिल सूर्योपासना का यह महापर्व आज देश ही नहीं, पूरी दुनिया में श्रद्धा, आस्था और विश्वास से मनाया जाता है. वैदिक काल से चला रहा हिंदुओं का यह पर्व आज दूसरे धर्म के मानने वालों के बीच भी लोकप्रिय हो चुका है.

मीडिया स्वराज डेस्क

बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाने महाछठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दुओं का प्रसिद्ध पर्व है. हालांकि इसकी शुरुआत चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से ही हो जाती है.

इस बार आज 8 नवंबर से नहाय-खाय के साथ महाछठ का पर्व का आरंभ होगा. कल 9 नवंबर को खरना किया जाएगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन किया जाएगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को छठ पर्व के व्रत का पारण किया जाएगा.

बिहार की संस्कृति माना जाने वाला यह महाछठ पर्व वैदिक काल से ही चला आ रहा है और ॠषियों द्वारा लिखे ऋग्वेद में सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार मनाया जाता है.

कब मनाया जाता है छठ पर्व

षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा, व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है. छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा नाम से भी जाना जाने वाला सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व आज दुनियाभर में मनाया जाने लगा है. आश्चर्य की बात यह है कि बिहार में इस्लाम धर्म को मानने वाले कुछ लोग भी सूर्योपासना का यह पर्व पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं.

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं. उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए यह पर्व मनाया जाता है. इस दिन सूर्यदेव की बहन छठ मैया और भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का व्रत संतान की प्राप्ति, कुशलता और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है.

शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं. उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए यह पर्व मनाया जाता है. इस दिन सूर्यदेव की बहन छठ मैया और भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का व्रत संतान की प्राप्ति, कुशलता और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है.

कौन हैं छठी मैया

ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है.

कब होती है इनकी पूजा

शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.

क्या है छठी मैया की कहानी

ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुई, तो वे बहुत दुखी रहने लगे थे. महर्षि कश्यप के कहने पर फिर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया. परिणामस्वरूप उनकी पत्नी गर्भवती तो हुई, लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया. प्रजा में मातम का माहौल छा गया. उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं.

ब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा. माता षष्ठी ने कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है. मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं. इसके बाद राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया.

जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा. माता षष्ठी ने कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है. मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं. इसके बाद राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया.

देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की. मान्यता है कि राजा प्रियव्रत द्वारा छठी माता की पूजा के बाद से ही यह त्योहार मनाया जाने लगा. धीरे धीरे इसकी लोकप्रियता बढती गई और आज देश ही नहीं, दुनिया भर में लोग यह महाछठ का पर्व पूरी श्रद्धा, आस्था और विश्वास के साथ मना रहे हैं.

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