हिंदी दिवस और अंग्रेजी की चटनी

हिंदी दिवस
प्रो. उमाकांत द्विवेदी

जब ISPG College , Allahabad University के इंग्लिश डिपार्टमेंट में मेरी स्थायी प्रवक्ता (अब असिस्टेंट प्रोफेसर) के पद पर नियुक्ति हुई उस समय मेरा इलाहाबाद शहर में अपना घर नहीं था।

पहले किसी तरह होस्टल, डेलीगेसी के कमरों में चार साल निकल गए।

लेकिन अब एक ऐसे निवास की जरूरत थी कि कोई मेहमान या घर के लोग आएं तो उनका भी आतिथ्य कर सकूं।

इसी समय मेरे छोटे भाई भी मेरे साथ रहकर शहर में ही पढ़ाई करने आ गए।

एक दो जगह किराए पर घर लेकर हमलोग कुछ समय बिताए , लेकिन जिस तरह का  खुला और इंडिपेंडेंट  घर चाहता था नहीं मिल रहा था।

यह बात मैंने अपने कुछ छात्रों से भी बता दिया था। 

जब कहीं मकान मिले भी तो मकान मालिक मेरी जॉब ट्रांसफरेबल न होने  और इसी जनपद के निवासी होने के कारण कुछ बहाना बनाकर जवाब देदेते थे।

कुछ दिन बाद मुझसे एक छात्र ने कहा, सर, टैगोर टाउन में एक मुख्य बंगले से लगा दो कमरे, बाथ, किचन का इंडिपेंडेंट सेट खाली है, आप बात कर लें।

मैं उसी छात्र के साथ वहां गया और मकान मालिक अग्रवाल साहब से मिला।

उन्होंने आधी अंग्रेजी और आधी हिंदी के शब्दों से सुसज्जित वाक्यों से बातचीत शुरू किया और अपने को एक अर्धसरकारी विभाग में कार्यरत बताया।

बातचीत के दौरान ऐसा लगा कि मेरे ट्रांसफर न होने वाली नौकरी और शहर के करीब ही मेरे गांव होने वाली बात से उनका मकान देने का मन नहीं था।

लेकिन इतने में उनकी पत्नी ने कुछ इशारा करके उन्हें अंदर बुलाया।

जब वे फिर बाहर आये तो कहा कि मिसेस कह रही हैं कि चूंकि आप अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं।

तो आप मेरे दोनों बेटों से इंगलिश में बात करेंगे तो इनकी इंग्लिश स्ट्रांग हो जाएगी।

मैंने भी आत्मस्वीकृति में सर हिलाकर जवाब दे दिया।

मकान मालिक का अंग्रेजी प्रेम

अग्रवाल साहब और उनकी पत्नी अंग्रेजी के शब्दों को हिंदी में घुसाकर बोलने के बहुत शौकीन मालूम पड़े।

अंततोगत्वा मकान मुझे मिल गया, मैं शिफ्ट भी हो गया।

फिर धीरे-धीरे मकान मालिक और उनके परिवार के सदस्यों से बातचीत का सिलसिला भी शुरू हो गया। उनकी बातें कभी कभी मुझे सुनाई देती थीं ।

मकान मालिकिन जिसे मैं भाभी जी कहता था अक्सर अपने फोर्थ और फिफ्थ स्टैण्डर्ड में पढ़ने वाले बेटों से कहती थीं, ” फ्लावर में स्लोली स्लोली वाटर दो,  अर्थ पर चप्पल पहिनकर फूट रखो, पापा की लेग प्रेस करदो बहुत थके हैं, आदि आदि। 

वे लोग जब मुझे अपने भाई से गंवई बोली में बात करते सुनते तो मुझे कभी कभी बोलते कि आप उनसे अंग्रेजी में क्यों बात नही करते? 

मैंने कहा मैं घर मे अपने घर की ही बोली में बात करता हूं।

लेकिन अपने बेटों पर मुझसे इंग्लिश में ही बात करने का हमेशा दबाव बनाते थे।

मैंने यहां इस प्रसंग की इसलिए चर्चा किया कि अग्रवाल जैसे हमारे देश में अनगिनत परिवार हैं जो हिंदी बोलने और पढ़ने में हीनभावना का अनुभव करते हैं।

इसका प्रमुख कारण है कि जब देश आज़ाद हुआ तो अंग्रेज तो चले गए लेकिन हमारे शासन- प्रशासन व्यवस्था में अंग्रेजियत बनी रह गयी।

इसीलिए हिंदी को लेकर आत्मसम्मान और राष्ट्रप्रेम की भावना कभी मजबूत नहीं हो पाई।

हिंदी का सबसे बड़ा नुकसान हिंदी वालों ने किया

एक बात बहुत कटु लेकिन सत्य है कि देश में हिंदी का सबसे बड़ा नुकसान हिंदी वालों ने ही किया, चाहे वे शिक्षक हो, लेखक हों, कवि हों या रचनाकार हों।

वे रोजी-रोटी तो हिंदी से कमाते हैं लेकिन जड़ अंग्रेजी की मजबूत करते हैं।

किसी हिंदी के विद्वान को गर्व और स्वेच्छा से अपने बच्चों को हिंदी मीडियम से पढ़ाते बहुत कम देखा जाता है । 

बाक़ियों का क्या हाल है, सभी जानते हैं।

यदि हिंदी को राजभाषा बनाना है तो हिंदी को रोजगार की भी भाषा बनानी पड़ेगी।

तभी लोग हिंदी से प्रेम करेंगे और हिंदी गौरव और राष्ट्रभक्ति की प्रतीक होगी।

साल भर में एक दिन हिंदी दिवस मनाने और भाषण देने से कुछ नहीं होगा।

जिस दिन से हमें दिल से हिंदी पर गर्व होने लगेगा उसी दिन हिंदी को उचित सम्मान मिल जाएगा, और हिंदी दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

लेखक प्रयागराज के ईश्वर शरण कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य के विभागाध्यक्ष हैं।

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