हिमालय देवता बार- बार क्यों कुपित हो रहा है !

हिमालय के विकास की सीमा निर्धारित की जाये

हिमालय के विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन चाहिए. लेकिन हिमालय क्षेत्र में विकास की योजनाएँ बनाने वाले जानते हुए भी अनजान बनकर विकास के नाम पर हिमालय के विनाश का रास्ता अख़्तियार कर रहे हैं. प्रयागराज से वैज्ञानिक चंद्रविजय चतुर्वेदी.

 7 फरवरी 2021 ,प्रातः 9 बजे जोशीमठ के नीतिघाटी में रैणी गांव के पास ग्लेशियर हिमखंड के अचानक टूट जाने से ऋषिगंगा नदी पर निर्माणाधीन 40 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट पूर्ण रूप से बह गया।

जोशीमठ से 15 किमी दूर तपोवन  धौली नदी पर एनटीपीसी द्वारा निर्माणाधीन 540 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट भी टूट गया।

इस बाढ़ की चपेट में स्थानीय गांव को जाने वाले दो पुल तथा बीआरओ का बार्डर को जोड़ने वाला बड़ा पुल भी टूट गया।

स्थानीय लोगों का कहना है की इस आपदा में डेढ़ से दो सौ लोगों की जनहानि हुई है।

चमोली में पांच फिट पानी ज्यादा था जो कर्णप्रयाग तक आते आते तीनफीट ही रह गया। अनुमान है की हरिद्वार और उससे आगे किसी खतरा की संभावना नहीं है। 

इस दुर्घटना के समाचार प्रसारित होते ही , 2013 के केदारनाथ त्रासदी की याद आने लगी जब 13 से 17 जून 2013 के बीच भारी बारिश के वाद चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया था . मन्दाकिनी ने विकराल रूप धारण कर लिया था। उस आपदा में पांच हजार से अधिक लोग मारे गए थे या लापता हो गए थे। 

 विगत कई वर्षों से लगातार उत्तराखंड विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन नहीं हो रहा है. विकास के नाम पर सड़क ,बांध ,विद्युत् परियोजनाएँ तथा अन्य निर्माण कार्यों के लिए हजारों टन डायनामाइट का इस्तेमाल कर चुका है।

हिमालय की पहाड़ियां इतनी संवेदनशील है की यदि एक भी पड़ाका फोड़ा जाए तो उसके धमाके से ही हिमालय त्रस्त हो जाता है। सड़क निर्माण में प्रतिवर्ष वन सम्पदा की कटाई से हिमालय को बेहाल कर दिया गया है, जो विकास के नाम पर पर्यावरण को नष्ट करता है.

 हिमालय का पर्यावरण इतना कमजोर पड़ चुका है की बांध ,सड़क और जलविद्युत परियोजनाएं इस महान पर्वत को स्वर्ग से नरक बना दे रही हैं। राज्य की आमदनी बढ़ाने के चक्कर में हिमालय का विकास एक विशाल पर्यटन स्थल के रूप में विक्सित करने की योजनाए विनाश कोआमंत्रित कराती जा रही हैं।

विगत बीस वर्षो में हिमालय क्षेत्र में तीस  से अधिक बार बाढ़ ,भूस्खलन और भूकंप की विनाशकारी घटनायें घट चुकी हैं।

हिमालय में पर्यावरणीय संवेदनशीलता के बावजूद नदियों के उदगम क्षेत्रों में एक हजार से अधिक सुरंग बांध प्रस्तावित या निर्माणाधीन हैं जो एक आत्मघाती कदम है। 

  7 फरवरी की आपदा जिसमे चार हजार करोड़ रु की लागत की   योजनाएँ बह गई ,एक संकेत है कि हिमालय क्षेत्र में विकास के कार्यों का हिमालय के पर्यावरण और पारिस्थितिकीय सुरक्षा के सम्बन्ध में समीक्षा की जाये। हिमालय के विकास की सीमा निर्धारित की जाये.

हिमालय पूरे देश का गौरव है ,देश का प्रहरी है कुछ राज्यों की संपत्ति नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग पर विशेष ध्यान देते हुए हिमालय के विशाल बांधों की सुरक्षा पर विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है। 

हिमालयो नाम नगाधिराजः –समुद्रपुत्र पर्वतराज हिमालय को पुराणों में देवरूप में वर्णित किया गया ,जिसके धवल शृंग कैलाश पर पिनाकपाणि ,ज्ञान के आदिदेव देवाधिदेव महादेव का धाम शोभायमान है। प्रकृति की लीलास्थली हिमालय ,जीवजगत की विविधता के सौंदर्य और वैभव से आनंदित ,पुण्य सलिलाओं की जन्मस्थली ,जहाँ ब्रह्मज्ञान की खोज में योगी ,यती ,ऋषि मुनि उन्मुक्त विचरण कर रहे हैं।

ऐसा हिमालय बार- बार क्यों कुपित हो रहा है ?

 वाडिया इंस्टीच्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का कहना है की आम तौर में सर्दियों में ग्लेशियर टूटने की घटनायें कम होती हैं  अतः इस घटना की वैज्ञानिक जाँच हर पहलू ग्लोबल वार्मिंग ,डायनामाइट का प्रयोग ,हिमपात ,वनों की कटाई आदि के परिप्रेक्ष्य में करते हुए हिमालय के विकास और पर्यावरण के सम्बन्ध में अपनी सोच बदलनी होगी नहीं तो प्रकृति बार बार माफ़ नहीं कर पाएगी.

Chandravijay Chaturvedi
Dr Chandravijay Chaturvedi

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज 

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