कोरोना से बचाव में भारत वियतनाम से सीख सकता है

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शिव कांत

शिवकांत, बीबीसी हिंदी रेडियो के पूर्व सम्पादक, लंदन से 

अपनी विनाशलीला से पूरी दुनिया को नज़रबंद कर देने वाले कोरोनावायरस कोविड19 के फैलाव की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी है। चीन में पिछले दस दिनों से किसी की कोविड19 से मृत्यु नहीं हुई है। अमरीका हो, इटली हो, स्पेन हो, फ़्रांस, ब्रिटन और बेल्जियम हों या फिर ईरान, सभी देशों में कोविड19 से बीमार पड़ने वाले और मरने वाले लोगों की दैनिक संख्या पिछले सप्ताह भर से कम होती जा रही है। इसलिए कुछ अपवादों को छोड़ कर सभी देश लोगों की आवाजाही, कारोबार और बाज़ारों पर लगी कड़ी पाबंदियों को धीरे-धीरे खोल रहे हैं। भारत ने भी वायरस के घने फैलाव वाले इलाकों को छोड़ कर बाकी इलाकों में पाबंदियाँ ढीली कर दी हैं और ऐसा लगने लगा है कि अगले महीने तक कारोबार और यातायात काफ़ी हद तक बहाल हो जाएगा।

इस स्थिति तक पहुँचने के लिए दुनिया को बहुत बड़ी सामाजिक और आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ी है। दुनिया में लगभग 30 लाख लोग बीमार पड़ चुके हैं। दो लाख से अधिक मारे जा चुके हैं और लाखों की हालत गंभीर है। संख्या के हिसाब से दुनिया में सबसे बुरी हालत अमरीका की हुई है और प्रति व्यक्ति के हिसाब से यूरोप के छोटे से देश बेल्जियम की, जिसे हीरों के कारोबार के लिए और यूरोपीय संघ की राजधानी के रूप में जाना जाता है। कोविड19 से बीमार पड़ने वाले हर तीन लोगों में एक और उससे मरने वाले हर चार लोगों में से एक अमरीका का है। इसलिए अब दो बातों को लेकर कड़ी बहस हो रही है। पहली यह कि अमरीका और यूरोप के देशों की सरकारों ने महामारी की रोकथाम के काम में कहाँ और क्या भूलें की हैं। दूसरी यह कि जब तक टीका बनकर बाज़ार में नहीं आ जाता, तब तक कैसे सुनिश्चित किया जाए कि महामारी फिर से न फैले।

सुनने के लिए कृपया लिंक क्लिक करें :      https://youtu.be/IYe8uFiWrJ4

अमरीका और चीन में यह सोचा जा रहा था कि शहरों और गाँवों में बड़े पैमाने पर रैंडम पद्धति से एंटीबॉडी टैस्ट कराए जाएँ। जिन लोगों के शरीरों में कोविड19 वायरस को मारने वाले एंटीबॉडी मौजूद हों उन्हें और उनके आस-पास के लोगों को एंटीबॉडी प्रमाणपत्र देकर काम पर जाने की अनुमति दे दी जाए। इस सोच के पीछे यह धारणा है कि जिनके शरीर में कोविड19 को मारने वाले एंटीबॉडी मौजूद हों वे कोविड19 से बीमार नहीं हो सकते क्योंकि वायरस से बचाव करने वाले एंटीबॉडी वायरस के प्रवेश करते ही उसे मार देते हैं। टीका भी यही काम करता है। वह वायरस के एक छोटे से अंश या जीन को शरीर में डाल कर हमारे इम्यून सिस्टम या रोगरक्षा प्रणाली को जगाता है। रोगरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी बनाती है, जो वायरस को और उससे प्रभावित हुई कोशिकाओं को मार देते हैं। इसलिए जिनके शरीरों में एंटीबॉडी मौजूद हैं उनपर वायरस का असर नहीं होना चाहिए। यानी कि वे निश्चिंत होकर कारोबारों पर लौट सकते हैं। लातीनी अमरीकी देश चिली ने ऐसे ही टैस्टों के बाद बहुत से लोगों को प्रमाणपत्र दे कर काम पर लौटने की अनुमति दे दी है।

लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी यह कि यह धारणा भ्रामक है। अभी तक इस बात के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं कि जिन लोगों के शरीरों में कोविड19 को मारने वाले एंटीबॉडी हों उन पर वायरस दोबारा हमला नहीं कर सकता। चीन में किए गए कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि कोविड19 वायरस उन लोगों को भी लग सकता है जो कोविड19 से बीमार होकर ठीक हो गए हों। जब कोविड19 से बीमार होकर ठीक हुए कुछ लोगों का टैस्ट किया गया तो उनमें से कुछ लोग एक बार फिर कोविड19 पॉज़िटिव पाए गए। यानी उनके शरीरों में वायरस मौजूद था। इससे दो बातें साबित होती हैं। पहली यह कि शरीर में कोविड19 को मारने वाले एंटीबॉडी का मौजूद होना इस बात की गारंटी नहीं है कि वह व्यक्ति कोविड19 से बचा रहेगा और फिर से बीमार नहीं होगा। दूसरी यह कि कोविड19 लगने और ठीक हो जाने की वजह से पैदा होने वाली इम्यूनिटी इस वायरस से कितने समय तक बचा सकती है, इसकी अभी तक कोई ठोस जानकारी नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी कई समस्याएँ खड़ी करती है। मसलन तालाबंदी और पाबंदियाँ खुल जाने पर भी हम पहले की तरह निश्चिंत होकर कारोबार, यातायात और सामाजिक मेलजोल नहीं कर पाएँगे। जो बीमार होकर ठीक हो गए हैं उन्हें दोबारा बीमार पड़ने का डर रहेगा और जो तालाबंदी की वजह से अब तक बचे रहे हैं उन्हें कोविड19 का नया शिकार बनने का डर रहेगा। सरकारें तालाबंदी लगाए रखेंगी तो कारोबार चौपट हो जाएँगे और पूरी छूट दे देंगी तो कोविड19 के पहले से भी तेज़ रफ़्तार से फैलने का ख़तरा रहेगा। लोगों को सामजिक दूरियाँ बनाए रखते हुए, कोविड19 से बचाव की सावधानियाँ बरतते हुए और जागरूक रहते हुए काम करना होगा। ऐसे में कुछ वैज्ञानिक बचाव की इस पूरी रणनीति पर ही सवाल उठा रहे हैं। 

ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में महामारी विज्ञान की प्रोफ़ेसर सुनेत्र गुप्ता कहती हैं कि हमें अभी तक कोविड19 के स्वभाव और फैलाव के बारे में बहुत सी बुनियादी बातों का ही पता नहीं है। मसलन हम यही नहीं जानते कि क्या यह वायरस सभी पर एक जैसा असर करता है? क्या यह हर किसी को लग सकता है या फिर कुछ को लगता है और कुछ को नहीं लगता? जब तक हम यह नहीं जान जाते कि कोविड19 से आबादी के कितने प्रतिशत और कैसे लोगों को ख़तरा है तब तक हम उससे बचाव के लिए सही रणनीति कैसे बना सकते हैं? हमें तो अभी तक यही पता नहीं है कि दुनिया भर में बीमार पड़ने वाले 30 लाख लोगों के अलावा दुनिया में और ऐसे कितने लोग हैं जिनको कोविड19 लग चुका है लेकिन उसका न उनको पता है और न दूसरों को क्योंकि उनके शरीर में अलबत्ता तो बीमारी के लक्षण हैं नहीं, और यदि हैं तो इतने मामूली हैं कि लोग उन्हें ज़ुकाम ही समझ रहे हैं और मामूली तकलीफ़ के बाद ठीक हो जा रहे हैं।

कुछ वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि बीमारी की गंभीरता या हल्कापन वायरस की उस मात्रा पर निर्भर करता है जो हमारे शरीर में प्रवेश करती है। इतना तो हम सभी जानते हैं कि कोविड19, लोगों की खाँसी, छींक और साँस के ज़रिए या फिर हाथ मिलाने या उन चीज़ों और सतहों को छूने से फैल सकता है जिन्हें रोगी ने छुआ हो या फिर खाँसी, छींक या साँस से दूषित किया हो। वैज्ञानिकों का कहना है कि खाँसी, छींक, साँस की भाप और हाथ मिलाने से लगने वाले वायरस की मात्रा रोगियों द्वारा छुई गई सतहों और चीज़ों को छूने से लगे वायरस की मात्रा की तुलना में ज़्यादा होती है। क्योंकि यह वायरस एकदम नया है इसलिए हमें इसकी पक्की जानकारी नहीं है कि वायरस की कितनी मात्रा के शरीर में प्रवेश करने पर शरीर की रोगरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया कैसी होती है। यह संभव है कि अधिक मात्रा में वायरस लगने से शरीर की रोगरक्षा प्रणाली बेकाबू हो जाती हो और बहुत ज़्यादा एंटीबॉडी बनाने लगती हो!

इम्यून सिस्टम या रोगरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया की बात असपतालों से मिल रहे रोगियों और मरने वालों के आँकड़ों के आधार पर हो रही है। आँकड़े बताते हैं कि बहुत से रोगियों के गंभीर हालत में पहुँचने या मर जाने की मुख्य वजह वायरस नहीं बल्कि उनकी रोगरक्षा प्रणाली की अतिसक्रियता है। इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि वायरस की भारी मात्रा को रोकने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय हुई रोगरक्षा प्रणाली गोली से मारे जा सकने वाले शिकार पर परमाणु बम दागने लगती है। रोगियों के फेंफड़े इस वायरस को मारने के लिए भेजी गई मारक कोशिकाओं की पीप से ऐसे भर जाते हैं कि ऑक्सीजन बंद हो जाती है जिसके कारण बाकी अंग नाकाम होने लगते हैं। कुछ कम उम्र के रोगियो को स्ट्रोक या पक्षाघात भी हो रहे हैं। इसलिए कोविड19 के रोगियों के इलाज के लिए यूरोप और भारत के संस्थानों के डॉक्टर वायरस मारने वाली दवाओं के साथ-साथ रोगरक्षा प्रणाली को काबू में रखने वाली दवाएँ भी दे रहे हैं। चंडीगढ़ के PGI चिकित्सा शोध संस्थान में कोविड19 के रोगियों पर कुष्ठ रोग का इलाज करने वाले टीके MW का भी प्रयोग करके देखा जा रहा है।

कहने का मतलब यह है कि कोविड19 डॉक्टरों के सामने एक मुश्किल दुविधा खड़ी कर देता है। मरीज़ की बेकाबू हुई रोगरक्षा प्रणाली को शांत करने वाली दवाएँ दें तो वायरस को और तेज़ी से फैलने का मौक़ा मिल जाता है और वह हावी हो जाता है। यदि रोगरक्षा प्रणाली को न रोकें तो रोगी अपनी ही रोगरक्षा प्रणाली की मार से मर जाता है। अभी तक वैज्ञानिकों को यह पता नहीं है कि कोविड19 के हमले के बाद कुछ लोगों की रोगरक्षा प्रणाली इतनी बेकाबू क्यों होने लगती है। इसकी वजह कोविड19 के फ़ैलने की रफ़्तार भी हो सकती है, कोविड19 की अधिक मात्रा भी हो सकती है और रोगरक्षा प्रणाली का देर से सक्रिय होना भी। टीका तैयार करते समय वैज्ञानिकों को यह गुत्थी भी सुलझानी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि टीका हमारी रोग रक्षा प्रणाली को इस तरह जगाए कि वह सही समय पर सही मात्रा में अचूक किस्म के एंटीबॉडी बना कर इस रोग से लंबे समय तक हमारी रक्षा कर सके।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस समय चीन, अमरीका, ब्रिटन और जर्मनी समेत यूरोप और एशिया भर में फैले संस्थानों और कंपनियों की लगभग सौ टीमें कोविड19 का टीका तैयार करने में जुटी हैं। अमरीका, ब्रिटन और जर्मनी की टीमों ने रोगियों पर टीकों का परीक्षण भी शुरू कर दिया है। लेकिन यह वायरस इतना पेचीदा और नया है कि उससे लंबे समय तक रक्षा करने वाले टीके का विकास कर पाना आसान नहीं होगा। कोविड19 से पहले भी कोरोनावायरस की दो बीमारियाँ फैल चुकी हैं, SARS और MERS. लेकिन अभी तक इन दोनों के लिए किसी टीके का विकास नहीं हो सका है। लेकिन इस बार लगता है पूरी दुनिया के वैज्ञानिक एक नए संकल्प और सहयोग भावना के साथ काम कर रहे हैं। इसलिए टीके का विकास होने की संभावना पहले से ज़्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड19 के टैस्ट और टीके का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने और उसे पूरी दुनिया में सुलभ कराने के लिए एक महामारी तत्परता अभियान की शुरुआत भी कर दी है।

अफ़सोस की बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन में सबसे अधिक आर्थिक योगदान करने वाले और नतीजतन सबसे अधिक प्रभाव रखने वाले देश अमरीका ने जलवायु परिवर्तन संधि की तरह इस अभियान से भी दूर रहने का फ़ैसला किया है। आपको याद होगा पिछले ही सप्ताह राष्ट्रपति ट्रंप ने कोविड19 के प्रकोप से हुई अपने देश की दुर्गति का ठीकरा विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के सिर फोड़ते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिया जाने वाला अनुदान बंद करने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया को इस वायरस के ख़तरों के बारे में समय रहते सही सलाह न देकर भारी भूलें की हैं जिनकी क़ीमत अमरीका समेत पूरी दुनिया को चुकानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका की और चीन के साथ उसकी साँठ-गाँठ की पूरी समीक्षा कराई जाएगी।

यह सही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया को यह बताने में दो-तीन हफ़्तों की देर की कि कोविड19 इंसान से इंसान में फैलने लगा है। हवाई यातायात बंद करने से कोविड19 की रोकथाम में कोई मदद नहीं मिलेगी यह बयान देकर उसने चीन और बाकी दुनिया के देशों को हवाई यातायात जारी रखने की भूल की तरफ़ धकेला जो वायरस के फैलाव का मुख्य कारण साबित हुई। फिर भी, सारा दोष विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के सिर मँढ़ कर ट्रंप साहब अपनी ग़लतियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते। चीन के पड़ोसी वियतनाम ने वूहान के लॉकडाऊन से सबक लेते हुए अपने यहाँ चीन और मलेशिया से आने वाले कोविड19 रोगियों के टैस्ट और संपर्क टोहने की नीति अपनाते हुए उन्हें क्वारंटीन में रखकर सामाजिक दूरियों को इतने प्रभावी तरीके से लागू किया कि बीमारों की संख्या 270 से आगे नहीं जा पाई और एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई। आबादी में भले ही अमरीका का एक चौथाई सही लेकिन अमरीका की 55 हज़ार कोविड19 मौतों के मुकाबले एक भी व्यक्ति को कोविड19 का शिकार न बनने देकर वियतनाम ने अमरीका को एक बार और मात दी है।

वियतनाम के पास दक्षिण कोरिया की तरह झटपट टैस्ट तैयार करने और बड़े पैमाने पर टैस्ट और ट्रेस की नीति अपनाने के लिए पर्याप्त साधन और क्षमता नहीं थी। उसकी कमी उसने जनवरी से ही चीन और दूसरे देशों से आने वाले यात्रियों पर कड़ी नज़र रखने, कोविड19 के रोगियों का पता चलते ही उनके संपर्क में आए लोगों की टोह लगाने और सभी को सख़्ती से क्वारंटीन करने और लोगों को कोविड19 के ख़तरों के बारे में सजग रखने के लिए जनसंचार के सारे माध्यमों का मुस्तैदी से इस्तेमाल करने की नीति अपनाई जो सस्ती भी साबित हुई और प्रभावशाली भी। भारत भी वियतनाम से बहुत कुछ सीख सकता था और सीख सकता है।

भारत की तरह चीन का पड़ोसी होते हुए वियतनाम ने न केवल अपने लोगों को कोविड19 से सुरक्षित रखा है बल्कि चीन से भागती कंपनियों और कारोबारों को अपनी तरफ़ खींच कर तेज़ आर्थिक विकास भी किया है।

भारत की तरह चीन का पड़ोसी होते हुए वियतनाम ने न केवल अपने लोगों को कोविड19 से सुरक्षित रखा है बल्कि चीन से भागती कंपनियों और कारोबारों को अपनी तरफ़ खींच कर तेज़ आर्थिक विकास भी किया है।

वियतनाम, दक्षिण कोरिया, ताईवान और जर्मनी के कोविड19 से होने वाली मौतों की संख्या कम रखने के अनुभवों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के मंच के ज़रिए पूरी दुनिया में साझा किया जा सकता है ताकि अफ़्रीका और लातीनी अमरीका के देश अपने सीमित साधनों की चादर में रहते हुए कोविड19 के फैलाव की रोकथाम कर सकें। टीके का जल्दी से जल्दी विकास करने के लिए दुनिया भर में फैली वैज्ञानिकों की सौ टीमों के बीच आपसी सहयोग और तालमेल रखने और टीका बन जाने पर उसे पूरी दुनिया के लिए वाजिब दामों पर सुलभ कराने में विश्व स्वास्थ्य संगठन एक अहम भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा जब तक टीके का विकास नहीं हो जाता तब तक सारे देशों में मास्क और दस्ताने जैसी आम आदमी के बचाव की चीज़ें कैसे सुलभ हों और कैसे स्वास्थ्य कर्मियों को हज़मत गाऊन, रेस्पिटरेटरी मास्क, फ़ेस गार्ड और वेंटिलेटर जैसी आवश्यक चीज़ों की कमी न हो इसका प्रबंध भी विश्व स्वास्थ्य संगठन कर सकता है, बशर्ते कि सभी सदस्य देश उसे आवश्यक संसाधन और अधिकार देने का संकल्प लें।

अमरीका और चीन के आपसी झगड़े में न पड़ते हुए संयुक्त राष्ट्र ने एक वीडियो संमेलन के ज़रिए यही करने की पहल की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महामारी तत्परता अभियान में ब्रिटन, फ़्रांस और जर्मनी के अलावा माइक्रोसोफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स भी प्रमुख भूमिका अदा कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमरीका के बाद सबसे बड़ा अनुदान बिल गेट्स के फ़ाउन्डेशन से ही मिलता रहा है। ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन कोविड19 की चपेट से मुक्त होकर लगभग एक महीने की बीमारी के बाद आज काम पर लौटे हैं और वे इस महामारी के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटाने के लिए कटिबद्ध जान पड़ते हैं। चार मई को ब्रिटन के सह नेतृत्व में एक शिखर बैठक होगी जिसमें महामारी तत्पपरता अभियान के लिए पैसा जुटाने की कोशिश की जाएगी। डोनल्ड ट्रंप ने भले ही ठेंगा दिखा दिया हो परंतु महामारी तत्परता अभियान के लिए 25 करोड़ पाऊंड देकर ब्रिटन कोविड19 के टीके के विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटाने की पहल कर चुका है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र को अब भी उम्मीद है कि अमरीका और चीन भी देर-सवेर इस पहल में शामिल हो ही जाएँगे। मख़मूर सईदी का शेर है:

रास्ते शहर के सब बंद हुए हैं तुम पर,

घर से निकलोगे तो मख़मूर किधर जाओगे?

कृपया इसे सुनें :   https://www.youtube.com/watch?v=xCm578rxhug

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