हिन्दी में जासूसी उपन्यास

पंकज प्रसून

—पंकज प्रसून, वरिष्ठ पत्रकार

रहस्य और रोमांच में इंसान की दिलचस्पी स्वाभाविक है ।अपराधी और अपराध संभवतः इंसान के धरती पर आने के बाद से ही मौजूद हैं। अपराध एक शाश्वत सत्य है। हिन्दी में रहस्य , रोमांच और तिलिस्म को लिखने और पढ़ने वालों का काफी बड़ा तबका रहा है। लेकिन बुराई पर अच्छाई की जीत को सुंदर किस्से में पेश करने के बावजूद हिन्दी भाषा भाषी घरों में उसे बिल्कुल ही इज्ज़त नहीं मिली। मैंने खुद इस बात को अपने घर में महसूस किया। मेरे बड़े मामा जासूसी उपन्यासों के शौकीन थे। वे जब भी हमारे घर आते साथ में दर्जनों जासूसी पुस्तकें लाते थे। और फिर उन्हें तकिये के नीचे रख देते थे। मैं बाल सुलभ उत्सुकता से चुपके से निकाल कर छुप के पढ़ने लगता था । कई बार मेरी चोरी पकड़ी जाती और माता जी की डांट सुननी पड़ती । मामा जी अधिकतर इब्ने सफी के उपन्यास पढ़ते थे ।जिनका उर्दू से हिन्दी में अनुवाद प्रेमप्रकाश करते थे। जब मैंने साइंस कालेज, पटना में दाखिला लिया तो वहां मेरी दोस्ती नरेन्द्र से हुई। मैं अक्सर उससे मिलने उसके लौज पर जाता था। एक दिन उसने कहा कि कबाड़ी से उसने एक क्विंटल जासूसी उपन्यास ख़रीदा है ।

देवकी नंदन खत्री जिनके उपन्यासों को पढ़ने के लिये लोगों ने हिंदी सीखी)

हम दोनों मित्रों ने बारी बारी से उन्हें पढ़ा। उनमें इब्ने सफी, और ओमप्रकाश शर्मा के उपन्यास उल्लेखनीय थे। आइये, अब हिन्दी में जासूसी उपन्यासों के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालें। सन् 1888में देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता , फिर चंद्रकांता संतति और फिर भूतनाथ श्रृंखला में जो उपन्यास लिखे वे इतने लोकप्रिय हुए कि उन्हें पढ़ने के लिये अनेक लोगों ने हिंदी सीखी। कहते हैं कि पाठकों में आगे की कड़ी जानने की इतनी उत्सुकता रहती थी कि पुस्तक का प्रूफ भी बिक जाता था और लोग प्रेस के बाहर लाइन लगा कर खड़े रहते थे। खत्री जी ने जासूस के लिये ऐयार शब्द का इस्तेमाल किया था। 

गोपाल राम गहमरी :हिन्दी में जासूसी उपन्यासों के आदि पुरुष

लेकिन सन्1900 में गोपाल राम गहमरी ने हिंदी में शुद्ध जासूसी उपन्यासों की विधा को विधिवत शुरू किया। वे पेशे से मूलतः पत्रकार थे और सरल भाषा लिखने के पक्षधर थे। उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगोर की चित्रांगदा का आधिकारिक अनुवाद किया था। उन्होंने ऐयार की जगह जासूस शब्द का इस्तेमाल किया। उनके मौलिक और अनूदित रचनाओं की संख्या 200के करीब है। उन्होंने जासूस नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन और संपादन किया था। उनकी रचनाओं को पढ़ने के लिये भी कई लोगों ने हिंदी सीखी। उनके कुछ प्रमुख उपन्यासों के नाम हैं- बेकसूर को फांसी,सरकती लाश, अद्भुत लाश आदि।वे अपनी मासिक पत्रिका में हर महीने एक उपन्यास प्रकाशित करते थे। 

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

बगैर किसी के आर्थिक सहायता के वे इस पत्रिका को 38 साल तक प्रकाशित करते रहे। बिहार के गहमर गांव में उनकी ननिहाल थी। वे वहीं से उसका प्रकाशन और वितरण करते थे और अपने नाम के पीछे गहमरी लिखते थे। सस्ते काग़ज़ पर सरल और सुबोध भाषा में लिखे जाने के कारण उनके उपन्यास बेस्ट सेलर होते गये। हालांकि साहित्य के पंडितों ने उनकी रचनाओं को लुगदी साहित्य कह कर तिरस्कृत किया। गहमरी जी के बाद जासूसी उपन्यासों का सिलसिला जारी रहा और प्रकाशन में नये कीर्तिमान बनाता रहा। ओमप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश कंबोज, कर्नल रंजीत ( यह ट्रेड नाम था), और सुरेंद्र मोहन पाठक ने हिंदी पुस्तकों की बिक्री में नये कीर्तिमान स्थापित किये। ओमप्रकाश शर्मा को जनप्रिय लेखक भी कहा जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर साढ़े चार सौ उपन्यास लिखे। धड़कन नामक उनके उपन्यास पर चमेली की शादी नामक फिल्म बनी जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ओमप्रकाश शर्मा वामपंथी विचारधारा के थे और एक सफल मजदूर नेता भी थे। 

बेस्ट सेलर लेखक वेदप्रकाश शर्मा

वेदप्रकाश शर्मा शुरुआती दिनों में छद्म नाम से या दूसरों के लिये लिखते थे।उनका अपने नाम से प्रकाशित पहला उपन्यास था 'आग के बेटे:,जो1973 में प्रकाशित हुआ था। इसमें पहले पन्ने पर उनका चित्र भी छपा था जो बाद में उनकी हर पुस्तक का ट्रेड मार्क बन गया। पाठकों में उनकी पुस्तकों का क्रेज था। उनके उपन्यास वर्दी वाला गुंडा की ढाई लाख प्रतियां हाथों हाथ बिक गयी थीं।

वेदप्रकाश कंबोज

साहित्य के पंडित भले इन उपन्यासों को साहित्य की श्रेणी में नहीं रखते हों लेकिन इतना तो तय है कि लेखकों जासूसी ने हिंदी का विशाल पाठक वर्ग तैयार किया है और सरल सहज भाषा में बात कहने की लोकप्रिय शैली को जन्म दिया है। जासूसी उपन्यासकारों में वेद प्रकाश कंबोज का नाम भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने महज अठारह साल की उम्र से लिखना शुरू कर दिया था और अनेक बेस्ट सेलर उपन्यासों को लिखा। उन्होंने जासूसी लेखन की शैली में भी बदलाव किया। 

दिग्गज जासूसी उपन्यासकारों में अभी सिर्फ सुरेंद्र मोहन पाठक जीवित हैं और लेखन कार्य जारी रखे हुए हैं। उनके उपन्यासों की खूबी है कि उनके पात्र बिल्कुल आम आदमी होते हैं और वे भगोड़े अपराधियों की मन: स्थिति का वर्णन भी बड़े सहज भाव से करते हैं।

2 Comments

  1. रोचक आलेख पर एक चीज जोड़ना चाहूँगा कि सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के अलावा वेद प्रकाश काम्बोज जी भी जीवित हैं और अभी ऐतिहासिक लेखकों को लेकर उपन्यास लिख रहे हैं।

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