सम्पूर्ण वैदिक साहित्य की श्रद्धा का केन्द्र है गाय

अथर्ववेद (12.4) में गाय को कष्ट पहुँचाने वालों का दण्ड वर्णित है- “जो गाय के कान को पीड़ा देते हैं वे मानो देवताओं पर प्रहार करते हैं। जो गौ पर परिचय चिन्ह बनाते हैं, उनका धन नष्ट होता है। जो साज-सज्जा के लिए गौ बाल काटते हैं इस अपराध कर्म से उनकी संतानें मृत्यु को प्राप्त होती हैं। जिस गोपति के सामने कौआ गाय के बाल नोचता है, उसकी संतानें मर जाती हैं आदि।”

हृदयनारायण दीक्षित

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गाय को आदरणीय बताया है। उनका यह वक्तव्य स्वागतयोग्य है। भारतीय संस्कृति में गाय पूज्य है। लेकिन स्वयंभू प्रगतिशील समूह पूर्वजों को गोमांस भक्षी बताते रहे हैं। वे पूरे भारतीय समाज का अपमान करते रहे हैं। लेकिन भारतीय संविधान निर्माता सजग थे। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में गोवंश संवर्धन/रक्षण का संकल्प है।

वैदिक श्रुति/अनुश्रुति और लोक स्मृति में गाय माता है पर कथित प्रगतिशील इतिहासविद् गाय को खाद्य पदार्थ बताने/बनाने पर आमादा रहे हैं। वे वैदिक पूर्वजों को गोमांस भक्षी बताते रहे हैं। लोक आस्था का ऐसा अपमान दुस्साहसिक है। इस इतिहास दृष्टि में आर्य बर्बर और असभ्य विदेशी आक्रांता।

गोमांस भक्षण की बात भारतवंशी इतिहास और संस्कृति का अपमान है। बच्चे पूर्वजों को गोमांस भक्षी जानकर क्या पाएंगे? आर्यों को विदेशी, आक्रमणकारी व गोमांस भक्षी सिद्ध करना राष्ट का अपमान है। भारतीय इतिहास के वैदिककाल से ही गाय आदरणीय है।

प्रो॰ राधाकृष्ण चौधरी ने बताया है कि “वैदिक साहित्य, महाकाव्य, पुराण, विदेशी यात्रियों के वर्णन और पुरातत्व में भारतीय इतिहास के आधारभूत सिद्धांतों के अध्ययन की पर्याप्त सामग्री है।” (प्राचीन भारत का इतिहास, पृ. 8-9)

हिन्दुओं का प्राचीन इतिहास समझने के लिए ऋग्वेद सहित 4 वेद, उपनिषद, पुराण और हड़प्पा सभ्यता के तथ्य साक्ष्य हैं। प्राचीन भारत का वास्तविक इतिहास समझने के लिए वेद ही तथ्य है। समूचे वैदिक व उत्तर वैदिक कालीन इतिहास में गाय की महत्ता है।

वैदिक समाज गाय को अघन्या/अबध्य मानता था। ऋग्वेद (1.164.27) में वह अघन्या है (वध न किए जाने योग्य), सौभाग्यदायिनी है। गाय सम्पूर्ण वैदिक साहित्य की श्रद्धा केन्द्र है। अथर्ववेद में वह विराट ब्रह्म है। वह एक सूक्त (9.12) की देवता भी हैं- “गाय का ऊपरी जबड़ा द्युलोक है, निचला पृथ्वी, जीभ विद्युत है, दाँत मरुद्गण हैं, उदर भाग अंतरिक्ष है, दोनों कंधे मित्र और वरुण हैं आदि।”

इसके पहले ऋग्वेद (8.101.215) में कहते हैं- “यह रूद्रों की माता, वसुओं की दुहिता, आदित्यों की बहन तथा अमृत की नाभि है। यह अवध्य है।” थोड़े शब्द बदलकर यही मंत्र अथर्ववेद में भी दुहराया गया है। यजुर्वेद भी गाय की महिमा से भरापूरा है।

अथर्ववेद (12.4) में गाय को कष्ट पहुँचाने वालों का दण्ड वर्णित है- “जो गाय के कान को पीड़ा देते हैं वे मानो देवताओं पर प्रहार करते हैं। जो गौ पर परिचय चिन्ह बनाते हैं, उनका धन नष्ट होता है। जो साज-सज्जा के लिए गौ बाल काटते हैं इस अपराध कर्म से उनकी संतानें मृत्यु को प्राप्त होती हैं। जिस गोपति के सामने कौआ गाय के बाल नोचता है, उसकी संतानें मर जाती हैं आदि।”

फिर गोहत्या के बारे में (अथर्व 12.9) कहा- “गौघाती लोग इस लोक और परलोक दोनों में दण्डनीय है।”

भारतीय समाज में देवोपासना रही है। अधिकांश देवता प्रकृति की शक्तियाँ हैं। वे दिव्य हैं। देवता मनुष्य की श्रद्धा है। मनुष्य अपना प्रिय खाद्य ही देवताओं को अर्पित करता है। गोदुग्ध वैदिक समाज का प्रिय पेय है। एक मंत्र में ऋषि अग्नि देव को दूध देना चाहते हैं लेकिन उनके पास ‘अघन्या गाय’ है नहीं। (ऋ 8.102.19) ऋषि इन्द्र से कहते है- “अघन्या अपना दूध तुम्हें देती है। (9.1.9) इन्द्र ‘अघन्या रक्षक’ (8.69.2) है। तब वह और उनके अनुयायी आर्य अघन्या भक्षक कैसे होंगे? अघन्या अश्विनी देवों को भी दूध देती है। (1.164.27) गाएँ ऋग्वैदिक समाज में ही ऋषित्व की श्रेणी में पहुँच गई थी। वे सोम की स्तुति करती हैं। अथर्ववेद में तो खैर वे देवता हैं ही। अथर्ववेद में सुंदर घर की प्रशंसा में कहा गया है कि हमारे घर में सब तरफ गाएँ घूमें।” वेदों में घी, अग्नि का अन्न है। घी अग्निदेव का प्रिय है खाद्य है।

वैदिक समाज जौ खाता था। अग्नि को भी जौ खिलाता था। वे इन्द्र को धाना खिलाते थे। धाना अन्न से बना खाद्य था। (ऋ 4.24.7) ऋषि इन्द्र से कहते हैं- “प्रतिदिन पधारो, धाना खाओ।” (ऋ 3.53.7) खेती के देवता पूषन थे। वे ‘करम्भ’ प्रेमी है।

मार्क्सवादी विचारक डाॅ॰ रामविलास शर्मा ने बताया, करम्भ भुना हुआ अनाज था। करम्भ इन्द्र पूषत सबका प्रिय है। एक प्रिय खाद्य अपूप था। समवता पुआ था। घी के साथ मिलाकर तैयार ‘अपूप’ अन्य देवों के साथ मरुतगण भी खाते हैं। (ऋ 3.52.7) मैक्डनल और कीथ ने एक और वैदिक व्यंजन ‘पुरोडास’ को ‘यज्ञ की रोटी’ बताया है।

ऋषि इन्द्र से कहते हैं- “प्रार्थना सुनो, पुरोडास खाओ।” (ऋ 4.32.16) जो इन्द्र को पुरोडास खिलाता है, उसे इन्द्र पापों से बचाते हैं (ऋ 8.31.2) वैदिक समाज का जौ, धाना, करम्भ, अपूप, पुराडास, दूध और घी प्रेम चारों वेदों में व्याप्त है। गोमांस का कहीं जिक्र ही नहीं। गाएँ श्रद्धा हैं। अन्न खाद्य है। एक देवता बृहस्पति हैं। उन्होंने गायों को आकाश तक चरने भेजा (ऋ 2.24.14) मैक्डनल ने लिखा, “वह बादलों में जाकर गायों को पुकारते हैं।” (ऋ 10.68.12) गायों को आकाश में चरते देखना भारत के मन की दिव्य उड़ान है। यह बात सही हे कि गाएँ आकाश में विचरण नहीं करती। लेकिन ऋषि की भाव विह्वलता उन्हें आकाश तक ले जाती है। गंगा भी पृथ्वी के निवासियों को आशीष देती है। श्रद्धालुओं ने आकाश गंगा को नमन किया।

ऋग्वेद से लेकर महाभारत और वर्तमानकाल तक गाय भारतीय संस्कृति और परम्परा में पूज्य है। तुलसीदास ने श्रीराम जन्म के कारणों में से एक कारण गोसंवर्द्धन बताया- “विप्र धेनु सुर संतहित लीन्ह मनुज अवतार।” गीता में कृष्ण ने अर्जुन को अपने तमाम रूपों में से एक गाय रूप भी बताया। कृष्ण गोपाल थे। कौटिल्य ने भी ‘गोसंरक्षण’ को जरूरी बताया। प्राचीन भारत गोपूजक था। गाय प्रतिष्ठाा थी, गाय समृद्धि थी, गाय ऐश्वर्य थी। चौथी सदी के चीनी यात्री फाहियान व 7वीं सदी ह्नेनसांग के निष्कर्ष हैं कि भारत में मांसाहारी नहीं हैं। गोहत्या के विरूद्ध भारत में अनेक आंदोलन हुए। गांधीजी ने गोहत्या बंदी को स्वराज का एक अंग बताया। गाय भारतीय अर्थव्यवस्था की माँ है, समाज व्यवस्था और सांस्कृतिक व्यवस्था का श्रद्धा केन्द्र। प्रधानमंत्री ने उचित ही गाय को सम्मानीय बताया है।

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