कोरोना महामारी में आयुर्वेदिक संस्थानों और औषधियों का उपयोग ज़रूरी

कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया को तबाह कर रखा है .मॉडर्न एलोपैथी में अभी कोई सटीक इलाज नहीं आया है और पुरानी दवाओं को आज़माया जा रहा है . दूसरी ओर प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति में ऐंटी वायरल ड्रग हैं जिनको इस्तेमाल करने में सरकार और समाज में हिचक है . एक परिचर्चा.

प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में जगने पर विशेष जोर

नीतूश्री
नीतूश्री

कोरोना काल में आयुर्वेद की उपयोगिता के सम्बद्ध में प्रतिदिन हो रहे संवाद के क्रम में बनारस हिन्दु यूनिवर्सिटी के आयुर्वेद संकाय के द्रव्यगुण विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. के.एन.द्विवेदी ने आयुर्वेद के अत्यन्त ही व्यवहारिक और वैज्ञानिक पक्ष पर परिचर्चा की। उन्होनें कोरोना से बचाव हेतु हमारी दिनचर्या और ऋतुचर्या के विशेष  महत्व पर अपना विचार व्यक्त किया। उन्होनें प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में जगने पर विशेष जोर देते हुए कहा कि इस मुहूर्त में जगने से तथा प्रात:काल की स्वच्छ हवा शरीर में लगने से शरीर स्वस्थ रहता है। सुबह की सूर्य की किरणें शरीर में लगने से त्वचा के माध्यम से सूर्य का ताप शरीर के अन्दर पहॅच कर शरीरस्थ अनेक रोगों को नष्ट करते हैं।

कृपया इसे भी पढ़ें

आयुर्वेद में वर्णित दातून

आयुर्वेद में वर्णित दातून यथा नीम,बकुल,पीलु, खदिर के गुणों को बताते हुए उन्होंनेकहा कि नीम में मौजूद तत्व अपने जन्तुघ्न गुण के कारण मुख में होने वाले रोगों को दूर करते हैं। बकुल अपने कषाय रस के कारण स्तम्भन का काम करता है और दांतों को ढीला नहीं होने देके।

पुन: उन्होनें कर्पूर, चमेली की पत्ती, करञ्ज पुष्प  इत्यादि से सुवालित जल से स्नान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  इन द्रव्यों के संयोग से जल में इन द्रव्यों का औषधीय गुण भी आ जाता है जो हमारी त्वचा को बाहरी संक्रमण से बचाती है।

कृपया इसे भी पढ़ें

परिचर्चा को आगे बढाते हुए उन्होंनें कहा कि विषाणु हमारे शरीर में श्लेष्मिक कला से प्रविष्ट करते हैं। लहसुन, कर्पूर,लवंग,प्याज इत्यादि जैसे सुगंधित द्रव्यों मैं मौजूद  उङनशील सुगन्धित तैल श्वसनवह संस्थान को sterilize करते हैं, इस प्रकार विषाणुओं के संक्रमण को रोकनें में सहायक हैं। इसी प्रकार, फिटकिरी immune potentiator होने की वजह से WBC को बाह्य या आभ्यन्तर किसी भी प्रकार के आघात में जल्दी पहुंचने के लिए प्रेरित करता है।

कृपया इसे भी पढ़ें

सरसों तेल और नारियल तेल की महत्ता

उन्होनें सरसों तेल और नारियल तेल की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरसों तेल का antibacterial, antimicrobialऔर antiinflamatory गुण वैज्ञानिक रुप से भी सिद्ध हो चुका है। सरसों का तेल microorganism के cell cycle को break करता है और उसके multiplication को रोक देता है। अत: स्नान के पूर्व सरसों तेल की मालिश से एवं प्रितिन नाक में सरसों तेल डालने से शरीर स्वस्थ रहता है । इसी प्रकार ,नारियल तेल में loric acid  पाया जाता है जो virus के cellwall में मौजूद lipid को laurate में परिवर्तित कर देते हैं। यह lurate, cytoplasm में घुलकर नहीं रह सकता और cellwall के बाहर आ जाता है जिसकी वजह से virus का cellwall rupture कर जाता है। अत: नारियल तेल को भी नाक में डालने से वर्तमान परिस्थिति में विषाणुऔं के प्रभाव से बचने में मदद मिल सकती है।  इसी प्रकार, देसी घी को भी  नाक में डालने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

गुरिच , दालचीनी, लौंग, जावित्री, तुलसी,  अजवायन

वर्तमान परिस्थिति में उपयोगी कतिपय वानस्पतिक औषधियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंनें कहा कि गुरिच , दालचीनी, लौंग, जावित्री, तुलसी,  अजवायन सदृश औषधियां अत्यन्त उपयोगी हैं।मरिच में मौजूद piperin नामक तत्व bioavilability enhancer की तरह कार्य करता है, जो आहार तथा औषध द्रव्यों के पोषक तत्वों को अधिक से अधिक मात्रा में शोषण करने में मदद करता है। इसी प्रकार, लौंग में मौजूद  uginol नामक aromatic constituent antiseptic और antimicrobial होने की वजह से अत्यन्त लाभकारी है। लौंग  की कली को मुंह में रखने से भी इसके औषधीय गुण का लाभ मिल सकता है। इन सभी द्रव्यों में volatile aromatic compound पाया जाता है जो कि श्वसनवह संस्थान पर अत्यन्त गुणकारी प्रभाव दिखा सकते हैं। कर्पूर एवं अजवायन का भाप श्वसनवह संस्थान को मजबूती प्रदान  करता है जिससे कि उसके आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढती है। तुलसी एवं अश्वगंधा अपने adaptogenic गुण के कारण हमारे शरीर को परिस्थितियों के अनुरुप ढलने की क्षमता प्रदान करते हैं।

 डॉ आर अचल नें वर्तमान जीवन शैली को अल्प व्याधिक्षमत्व का प्रमुख कारण बताते हुए हमें प्राकृतिक वातावरण के अनुसार अपने शरीर को ढालने की सलाह दी। उन्होनें कोरोना की प्रारंभिक अवस्था में वासा स्वरस को शहद के साथ तथा लताकरंज के बीज को काली मिर्च के साथ सेवन करने की सलाह दी। 

कृपया इसे भी पढ़ें

आयुर्वेदिक संस्थान का उपयोग

इस परिचर्चा में डॉ आर.अचल एवं राम दत्त त्रिपाठी नें सरकारी तंत्र में मौजूद अनेक खामियों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया तथा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये को दूर करने की सलाह भी दी। उन्होनें कहा कि सरकार को राष्ट्रीय स्तर के आयुर्वेदिक संस्थान का उपयोग इस महामारी के समय में जनकल्याण के लिए करने की आवश्यकता है जिससे अधिक से अधिक लोगों तक इस चिकित्सा पद्धति का लाभ लोगों तक  पहुंचाया जा सके। इससे मौजूदा हालात में सरकारी अस्पतालों पर पङ रहे दवाब को भी कम किया जा सकता है।

रिपोर्ट : वैद्य डा नीतूश्री

Leave a Reply

Your email address will not be published.

13 − seven =

Related Articles

Back to top button