सेहत का ख़ज़ाना – पोई का साग

 आईपीएस अफ़सर श्री बृज लाल उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक रहे हैं . उनकी गिनती तेज तर्रार अफ़सरों में होती थी . रिटायरमेंट के बाद उन्होंने लखनऊ में घर बनाया . पुलिस अफ़सर के नाते उन्हें बंदूक़ का शौक़ तो है ही , पर उससे ज़्यादा उन्हें बाग़वानी का शौक़ है. उनका आँगन और बगीचा तरह – तरह के फूलों , फलों और सब्ज़ियों से हरा भरा रहता है. कई तो दुर्लभ भी. मीडिया स्वराज के पाठकों को उनकी बगिया की नियमित झलक मिलेगी. पेश है पहली किश्त 

 

मेरे गार्डेन में पोई का साग। इसे पोई, मालाबार स्पिनच भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम है-BASELLA ALBA. यह पश्चिम बंगाल, बिहार , यूपी, पूर्वोत्तर राज्यों असम , मेघालय , मणिपुर, त्रिपुरा और दक्षिण के राज्यों केरल , कर्नाटक में बहुतायत में पाया जाता है।यह सदाबहार लता है और पत्तियाँ हरी और मोटी होती है, जिसका शाक- सब्ज़ी में प्रयोग किया जाता है। इसकी एक प्रजाति की लताए लाल रंग और पत्तियाँ लालिमा लिए हरी होती है।हमारे गावों में जंगली प्रजाति की पोई बरसात होते ही उग जाती थी जिसके पत्तों का पकौड़ा परम्परागत रूप से बना कर खाया जाता था। गर्मी में गहरे लाल रंग के छोटे- छोटे गोल फल आते है , जिसे चिड़ियाँ खाकर दूर- दूर फैला देती है।मैंने 5 साल पहले इसके बीज कोलकाता से मंगाया था।

   बंगाली परिवार तो इसका दीवाना होता है।वे आलू पोई की साग के अलावा झींगा मछली एवं अन्य छोटी मछलियों के साथ बनाते है । पोई में भारी मात्रा में विटामिन A, C, iron, calcium, Phasphorus  मिलता है इसने BETA CAROTENE  और antioxidant के पर्याप्त गुण है ।

  By  Brij Lal IPS Retd.Ex-DGP UP, Ex- Chairman UP SC/ST Commission, Ex- Minister of State( Status).

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