संजय उवाच : नेता मुद्दों को दबाकर गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं प्रभु !

दीपक गौतम, स्वतंत्र पत्रकार, सतना से 

प्रश्न : कोरोना काल में नेता क्या कर रहे हैं संजय ?


उत्तर : महाराज,  भारत वर्ष में तो नेता ऑनलाइन रैली करके थक गए हैं.  फिर भी तीव्र गति से सत्ताधारी नेता सुशासन को ऑनलाइन घर-घर पहुंचा रहे हैं. प्रजाजन को चुनाव में उलझा दिया गया है. मुद्दे कोरोना और उसके बचाव से हटकर कहीं और केंद्रित हो गए हैं प्रभु. नेता राजनीति की कला में निपुण हैं, वे एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाकर अपनी छीछालेदर पर केंद्रित कर रहे हैं. मुखवमन तो आप जानते ही हैं. इन दिनों वही हो रहा है. सत्तारूढ़ दल जनता के सावालों से बचने के लिए विपक्ष से प्रश्न पर प्रश्न किये जा रहा है प्रभु. लेकिन उससे पूछे गए सभी गम्भीर प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं. उसने बड़ी चालाकी से इस कोरोना काल के सारे गम्भीर और बड़े मुद्दों को गड़े मुर्दों की राख में दफना दिया है महाराज.  राजनीति और राजनेता किसी भी विचारधारा के हों सबकी कथनी-करनी लोकतांत्रिक रूप से समान है. अन्तोगत्वा पता चल ही जाता है कि यह सारा वर्ग एक ही है, उनके उद्देश्य एक ही हैं  .

प्रश्न : ज्ञात हुआ है कि ईंधन के दामों में भी आग लग गई है संजय ?


उत्तर : राजन, ईंधन ने तो देश में पिछले 70 वर्षों के रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं. लेकिन पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर सत्ता से किए गए प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर नहीं मिला है. राज्य और केंद्र सरकारें चाह लें तो प्रजा को इतने महंगे ईंधन से मुक्ति सम्भव है प्रभु. मुझे तो दिव्य दृष्टि से भी दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन इसमें भी जन-जन को आत्मनिर्भर करने का कोई सूत्र अवश्य छिपा होगा.

प्रश्न : चीन और नेपाल लेकर होने वाली हलचल क्या थम गई है सजंय ?


उत्तर : महाराज, राजतंत्र में रहकर लोकतंत्र की लीला को समझना कठिन है. मैं दिव्य दृष्टि से भी कई बार इसे स्पष्ट नहीं देख पाता हूँ. चीन और नेपाल से जुड़ा सच शीघ्र ही छनकर जनता के सामने आएगा. तब तक इन मुद्दों पर गुणीजनों की क्रिया-प्रतिक्रिया की जो बहारें मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक व्याप्त हो रही हैं, मैं उनका रसास्वादन कर रहा हूँ. इस विषय के विशेषज्ञों की तो जैसे बाढ़ सी आ गई है भगवन. हर तीसरा व्यक्ति कूटनीतिक रिश्तों, विदेश नीति और सीमा विवादों का मर्मज्ञ हो गया है. गांव की चौपाल से शहर के चौराहे तक चीनी उत्पादों की प्रतिबंध का सारा जागरुकता अभियान ऑनलाइन चीनी मोबाइल से ही चलाया जा रहा है. इससे अधिक प्रायोगिक और व्यवहारिक बात मैं भला क्या कह सकता हूँ प्रभु.  

प्रश्न : ऐसे में कोविड-19 का क्या हुआ संजय ?

उत्तर : कोविड-19 का संक्रमण भले बढ़ रहा हो, उसका भी बहुत कम हो गया है भगवन. इसको लेकर जनता भी एकदम सहज हो गई है. मौत के आंकड़े अब किसी दुर्घटना की तरह समाचारों में बस पढ़-सुन लिए जाते हैं. थोड़ी देर बाद टीवी या मोबाइल पर जीवन का कोई मधुर संगीत ट्यून हो जाता है. अब धीरे-धीरे यह लोगों की आदत में आ रहा है. जीवन डर-डर कर जीने की बजाय लोग आत्मनिर्भर होकर काम पर निकल पड़े हैं. जिंदगियां खत्म हो रही हैं. मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं, लेकिन कोरोना से डर का प्रतिशत बड़ी तेजी से घट गया है प्रभु. मैं दिव्य दृष्टि से देख रहा हूँ कि इसकी औषधि भी बाजार में शीघ्र आने वाली हैं, उसके बाद कोरोना को नागरिक डेंगू-मलेरिया की दृष्टि से देखने लगेंगे भगवन. कोरोना से संक्रमित व्यक्ति भी सामान्य ज्वर की भांति औषधि ग्रहण कर निरोगी हो जाएगा. यह भी दूसरे रोगों की तरह जीवन का हिस्सा हो जाएगा.

 

(लेखक सतना के स्वतंत्र पत्रकार हैं)

(नोट : संजयउवाच महाभारत के दो प्रमुख पात्रों के सहारे विभिन्न विषयों पर व्यंग्य लिखने की कोशिश है. इसका महाभारत से कोई सम्बन्ध नहीं है।)

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