नवरात्र मातृशक्ति की उपासना का पर्व है

-डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी –प्रयागराज


नवरात्र मातृशक्ति की उपासना आराधना का पर्व है \सम्पूर्ण विश्व में मातृशक्ति के शोषण प्रदुषण का षंडयंत्र चल रहा है –जिसमे किसी न किसी रूप में हमसब सहभागी रहे हैं –क्या नवरात्र के समापन पर प्रायश्चित का व्रत ले मुक्ति की कामना करना चाहेंगे \
–मातृशक्ति है -स्त्री –प्रकृति -विज्ञान \
–स्त्री मात्र सौंदर्य के औद्यौगिकीकरण तथा देह के उपभोक्तावाद का साधन नहीं है
–नारी मुक्ति के संघर्ष के पाश्चात्य दर्शन के उत्तरआधुनिक विचारों ने भी नारी को मुक्ति नहीं दिलाई –बल्कि अन्य कई पाशों में जकड दिया –नारी देह की देह ही रह गई \
–नारी शोषण के निदान हेतु पितृसत्तात्मक सत्ता में निहित उपभोक्तावादी विभीषिका को समझाना होगा \
–ध्वस्त हो रहे परिवार और समुदाय के आर्गेनिक संरचना को पुनर्जीवित करना होगा \
–स्त्री पुरुष में भिन्नता है –स्त्री -स्त्री में भिन्नता है –जो शिक्षा संस्कृति के आलोक में भी कमतर नहीं हो पा रहा है \
–इस अपरिमित भिन्नता में –स्त्री पुरुष दोनों की पहिचान मानव के रूप में गुम होती जा रही है \
–स्त्री और पुरुष पृथक पृथक एब्स्यूलूट सत्ता नहीं हैं
–स्त्री पुरुष का एकत्व ही किसी सत्ता को निर्मित करता है –जैसे शिवशक्ति -प्रकृति पुरुष –श्रद्धा विश्वास –सीताराम –राधाकृष्ण \
–जगतजननी के क्षिति जल पावक गगन समीर से ही मानव और सृष्टि का अस्तित्व है जिसे हम निरंतर नष्ट करने के पाप के भागी हैं
–स्त्री समस्ता सकला जगत्सु –सारा संसार स्त्रीमय है –विज्ञानं भी मास्वरूपा कल्याणकारी है \
–विज्ञानं प्रद्योगिकी से जन्मा भोगवादी संस्कृति की विनाशकारी धारणा ने -शक्ति को शिव अर्थात कल्याण से अलग करदिया है
–श्रद्धा को विश्वास से पृथक कर दिया है
–सीता को राम से और राधा को कृष्ण से इस संस्कृति ने अलग करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी है \
–इन साजिशों का उत्तर नवरात्र पर्व का सन्देश –मातृशक्ति की उपासना है –परमराध्या मां ही हमारी चेतना और अस्तित्व है
–या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

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