कोरोना वाइरस की विपदा और सौमनस्य  का आवाहन

आपत्ति की इस बेला में परस्पर सौमनस्य परम आवश्यक है

 

डॉ. चन्द्र विजय चतुर्वेदी, प्रयागराज

डा चंद्र विजय चतुर्वेदी, वैज्ञानिक, प्रयागराज 

कोरोना वाइरस के आतंक से आज विश्व का समूचा मानव समाज आतंकित है –आपत्ति की इस बेला में परस्पर सौमनस्य परम आवश्यक है 

–सम्पूर्ण ,मानव मात्र में सौमनस्यता के आवाहन हेतु –अथर्ववेद की ऋचाओं से अभिषेक –अथर्ववेद छठा खंड –सूक्त ६४ -तीन ऋचा 

— एक –सं जानिध्वं सं पृच्यध्वं सं वो मनांसि जानताम 

——-देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना  उपासते 

अर्थात –हे सौमनस्य के आकांक्षी –तुम समान ज्ञान वाले बनो और समान कार्य में संलग्न हो जाओ —

–ज्ञान के उत्पत्ति के निमित्त तुम्हारे अन्तःकरण समान हो \

–जिस प्रकार देवगण एक ही कार्य को जानते हुए यजमान द्वारा दिए गए हवि को ग्रहण कर लेते हैं –उसी प्रकार तुम भी विरोध त्यागकर इच्छित फल प्राप्त करो

दो –समानो मंत्रः समितिः समानी समानं व्रतं सह चित्तमेषाय 

—–समानेन वो हविषा जुहोमि समानं चेतो अभिसंविशध्वं 

–अर्थात –हमारे गुप्त भाषण एकरूप हों –हमारे कार्यों की प्रवृत्ति समान हो 

–हमारा कर्म भी एकरूप हो –हमारा अंतःकरण भी इसी प्रकार का हो 

–फल पाने के लिए हे देवो –हम एकता उत्पन्न करने वाले आज्य आदि से आपके निमित्त हवन करे 

–इससे हममे एकचित्तता हो सके

तीन-समानी व  आकूतिः समाना हृदयानि वः 

—-समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति 

अर्थात –हे सौमनस्य चाहने वालों –तुम्हारे संकल्प समान हों 

—तुम्हारे संकल्पों को उत्पन्न करने वाले ह्रदय समान हो 

–तुम्हारा मन एकरूप हो जिससे तुम सब सभी कार्य ठीक से कर सको ।

 

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