अथर्ववेद : ग्रहण के बाद , सूर्यदेव की आराधना

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

चंद्र विजय चतुर्वेदी

अथर्ववेद के  सत्रहवें काण्ड का प्रथम सूक्त आदित्य सूक्त है ,जिसमे कुल तीस मन्त्र हैं  इन मन्त्रों का अवगाहन करते हुए ,यह कविता –सूर्यग्रहण के बाद प्रस्तुत है। 

हे सहमान सूर्यनारायण 

आपके तेज के समक्ष 

सारे तेज धुंधले हो जाते हैं 

शत्रुओं के तेज के विजेता 

सर्वदा उदित सहमान 

अपने तेज से हमें 

प्रकाशवान करते रहें 

हम जो कुछ देख पा रहे हैं 

और जो नहीं भी देख पा रहे हैं 

उसे हमारी बुद्धि को दिखाएँ 

अंतहीन शक्तियों के स्वामी 

हे परम ऐश्वर्य वाले सूर्यनारायण 

ऊर्जा के अजस्र स्रोत 

आप किसी के द्वारा भी 

हिंसित नहीं हो सकते 

आपकी जो विभूतियाँ 

जल में पृथ्वी पर आकाश में 

अंतरिक्ष के वायु में 

सतत गतिशील है 

ये अनंत शक्तियां हमें सुख प्रदान करें 

चारों दिशाओं की रक्षा करने वाले 

अपनी किरणों से सभी भुवनो को 

प्रकाशित करने वाले सूर्यनारायण 

आप ही स्वर्ग के स्वामी हैं 

निरंकार ब्रह्म में प्रतिष्ठित यह जगत 

तुम्हारी शक्तियों से ही दृश्यमान है 

हे दीप्तिशाली सूर्यनारायण 

हम सम्पूर्ण भाव से 

आपके दीप्ती की उपासना करते हैं 

हम उदय होते सूर्य को नमस्कार करते हैं 

हम अतिशय प्रकाशित सूर्य को नमस्कार करते हैं 

हम अस्त होते सूर्य को नमस्कार करते हैं 

हे आदित्य सम्पूर्ण सृष्टि को 

आध्यात्मिक आधिभौतिक तथा आधिदैविक 

विविध बाधाओं से मुक्त करने वाले पर 

कोई ग्रहण नहीं लग सकता 

यह हम पृथ्वी और पृथ्वी के प्राणी 

दुष्ट ग्रहों के वक्री गतिविधियों से आहत  हैं 

उनके ग्रहण से त्रस्त हैं 

हे सूर्यनारायण हमें अपने सत्य के 

किरणों से आच्छादित कर अभिमंत्रित करें 

सूर्य कवच प्रदान कर हमें पाप मुक्त करें 

जिससे हम अपने प्राण स्थापित रख सकें 

हमारी इन्द्रियां चेष्टावान रहें 

हम दीर्घायु प्राप्त कर 

लौकिक और वेदों का कार्य करते हुए 

सूर्यदेव की आराधना करते रहें 

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