नीर, नारी और नदी का सम्मान करना जरूरी: जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह

पालारू और सेयरु नदी पर बांध बनने के कारण बहुत बिगाड़ हुआ है : जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की मानें तो हमें नीर, नारी और नदी का सम्मान करना सीखना होगा, क्योंकि नारी पोषक है, नदी प्रवाह और जल जीवन है। आज समाज ने तीनों का सम्मान करना छोड़ दिया है। नीर को हमने खरीदना प्रारंभ कर दिया है, नारी को हेय दृष्टि से देखना शुरू कर दिया और नदी को मैला ढोने वाली मालगाड़ी बनाकर, प्रवाह क्षेत्र को भी बाधित कर दिया है, जिससे नदियों में मिट्टी का कटाव और जमाव हो रहा है। जहां से मिट्टी कट कर आती है, वहां से सुखाड़ लाता है।

मीडिया स्वराज डेस्क

आज दिनांक 12 नवम्बर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा सुबह-सुबह तमिलनाडु के कांजीपुरम् में पालारू और सेयरू नदी के संगम पर पहुँची। यह नदी कर्नाटक के नंदी हिल्स से निकलकर आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु से होकर बहती है।

यहां जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि हमें नीर, नारी और नदी का सम्मान करना सीखना होगा, क्योंकि नारी पोषक है, नदी प्रवाह और जल जीवन है। आज समाज ने तीनों का सम्मान करना छोड़ दिया है।

नीर को हमने खरीदना प्रारंभ कर दिया है, नारी को हेय दृष्टि से देखना शुरू कर दिया और नदी को मैला ढोने वाली मालगाड़ी बनाकर, प्रवाह क्षेत्र को भी बाधित कर दिया है, जिससे नदियों में मिट्टी का कटाव और जमाव हो रहा है। जहां से मिट्टी कट कर आती है, वहां से सुखाड़ लाता है।

इस नदी पर बने नए बांध देखकर जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने बताया कि इन बाँधों को देखकर बड़ा दुख हुआ है। आज यहाँ सेयरू नदी में आश्चर्यजनक बिगाड़ देखा है, यहां पर हमने देखा कि, नदी में विकास के नाम पर जो काम हुए हैं, वह बहुत विनाशकारी हैं। पहले इस नदी का जल प्रवाह प्राकृतिक रूप से नियमित तौर पर तालाबों को भरता रहता था, लेकिन अभी इस नदी का तल रेत निकालने के कारण नीचा हो गया है। इस कारण अब पानी तालाबों में नहीं जाता, तालाब सूखे रह जाते हैं, भूजल भंडार नहीं भरते। इस कारण यह इलाका बेपानी होता जा रहा है।

इस नदी में से लगभग 7 मीटर तक रेत निकाल ली गई है, जिसके कारण नदी का तल बहुत नीचे चला गया है। इस नदी में बांध ऐसी जगह बना है, जहाँ पहले ही बारिश में मिट्टी से भर गया, मिट्टी का जमाव हो गया है। इस कारण नदियों में पानी नहीं जा पा रहा है।

इन नदियों की मिट्टी बहुत मोटी और अच्छी है, जिससे 40 प्रतिशत तक पानी यह अपने अंदर भर लेती है, इसलिए यहां के चेन्नई, कांचीपुरम आदि जितने भी व्यापार के काम हो रहे हैं, वह नदी के रेत के उत्खनन से हो रहे हैं। इस नदी में से लगभग 7 मीटर तक रेत निकाल ली गई है, जिसके कारण नदी का तल बहुत नीचे चला गया है। इस नदी में बांध ऐसी जगह बना है, जहाँ पहले ही बारिश में मिट्टी से भर गया, मिट्टी का जमाव हो गया है। इस कारण नदियों में पानी नहीं जा पा रहा है।

जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने वहाँ के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि सरकार ने जो प्रोजेक्ट दिया, हमने वही बनाकर दे दिया।

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नारी ही नर की प्रवाहमान शक्ति है

तब जलपुरुष ने कहा कि, यह बांध बनाना अब बड़ी कंपनियों का धंधा बन गया है। इन बांधों के कारण बाढ़ और सूखा हमारे देश में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हमारी अन्न, जल, वायु और अपने जीवन की सुरक्षा, जीवन की जरूरत को पूरा करने की सुरक्षा, स्वास्थ्य की सुरक्षा के बारे में व्यापारी नहीं सोचते। ये केवल अपने लाभ की बात सोचते हैं। आज यह सब जानकर, सीख लेकर स्वराज यात्रा की जरूरत और महत्व बढ़ जाता है।

यह मानव निर्मित बाढ़-सुखाड़, हमारी विरासत को बिगाड़ने का काम कर रहा है। इसको रोकने और भारतीय ज्ञानतंत्र एवं आधुनिक शिक्षा के संबंधों को ठीक करना विरासत स्वराज यात्रा का लक्ष्य है। इस सब के साथ जो हमारा व्यवहार बदला है, इस व्यवहार को अगर वापस नहीं बदला तो धरती का बुखार और मौसम का मिजाज बहुत तेजी से बदलेगा। जिससे धरती और प्रकृति बीमार होगी, इसे ठीक करने हेतु हमें नीर, नारी और नदी के सम्मान को वापस लाना होगा।’

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“इसलिए कि मैं नारी हूँ” : नारी मन का जीवंत दस्तावेज है

इसके उपरांत यात्रा थिरुमुकूडियल किसानों की सभा में पहुँची। यहाँ जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने किसानों से वार्ता करते हुए कहा कि, हमारी किसानी, जवानी और पानी की विरासत की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इन विरासतों पर हो रहे अतिक्रमण और शोषण को रोकना होगा। यह तभी संभव होगा जब हम प्रकृति और मानवता का बराबर सम्मान करेंगे।

ये किसान अपनी मेहनत, पसीने की कमाई से अपना जीवन चलाते हैं, इनकी श्रम निष्ठा, इनको गौरवशाली और स्वाभिमानी बनाकर रखती है, लेकिन इस आधुनिक विकास और आधुनिक शिक्षा ने इनके मूल ज्ञान तंत्र और जीवन दर्शन में बिगाड़ पैदा कर दिया है।

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