यूपी में कांग्रेस ने एक-एक कर कैसे खोया ब्राह्मण चेहरा?

बीते साल सितंबर महीने में ललितेश पति त्रिपाठी के कांग्रेस छोड़कर जाने के बाद यूपी कांग्रेस में अब एक भी ब्राह्मण चेहरा ऐसा नहीं बचा है, जिसकी जनता के बीच खास पकड़ हो.

एक वक्त था जब यूपी में कांग्रेस पार्टी के इन बड़े चेहरों की ब्राह्मण वोटर्स के बीच खासी पकड़ थी. तब कांग्रेस पार्टी, ब्राह्मणों की नंबर वन च्वॉइस होती थी, लेकिन अब इनमें से ज्यादातर बड़े चेहरे कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जा चुके हैं. कांग्रेस छोड़ने वाले बड़े चेहरों में ललितेश त्रिपाठी, जितिन प्रसाद, रीता बहुगुणा जोशी, एनडी तिवारी, प्रमोद तिवारी, उनकी बेटी आराधना मिश्रा और राजेश मिश्रा तक का नाम शामिल है, जिनकी अपने अपने क्षेत्रों में अच्छी पकड़ रही. आइए, जानते हैं इन हस्तियों का कांग्रेस पार्टी के साथ कितना लंबा संबंध था और इनके जाने पर राजनीति के जानकार क्या कहते हैं…

-सुषमाश्री

बीते कुछ वर्षों में यूपी कांग्रेस के कई ब्राह्मण चेहरे, जिनकी जनता के बीच अच्छी खासी पकड़ थी, ने पार्टी छोड़ दी. जो हैं, उन्हें पार्टी बहुत तरजीह भी नहीं दे रही. ललितेश त्रिपाठी, जिनका परिवार बीते 100 वर्षों से कांग्रेस के साथ बना हुआ था, ने भी सितंबर 2022 में कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. बीते साल सितंबर महीने में ललितेश पति त्रिपाठी के कांग्रेस छोड़कर जाने के बाद यूपी कांग्रेस में अब एक भी ब्राह्मण चेहरा ऐसा नहीं बचा है, जिसकी जनता के बीच खास पकड़ हो.

बीते पांच वर्षों में जितिन प्रसाद, रीता बहुगुणा जोशी और दिवंगत एनडी तिवारी जैसे प्रभावशाली ​ब्राह्मण चेहरों ने कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ दिया. उन सभी ने पार्टी छोड़ते हुये यही तर्क दिया कि उनके समर्थकों का कहना है कि कांग्रेस में उनकी बात अब कोई नहीं करता. जितिन प्रसाद के लिये तो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाना काफी फायदे का सौदा भी साबित हुआ. सितंबर 2021 में योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट विस्तार के दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया.

ललितेश त्रिपाठी उस परिवार से आते हैं, जिनकी कई पीढ़ियां ​बीते 100 सालों से कांग्रेस की सेवा करती रहीं. इसके बावजूद पार्टी में उनकी उपेक्षा होती रही. इसके बाद ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का निर्णय लिया.

पार्टी छोड़ते हुये उन्होंने कहा था, जब पार्टी के ऐसे कार्यकर्ताओं की भी अनदेखी की जायेगी, जिन्होंने बुरे वक्त में भी हमेशा पार्टी का साथ दिया, तो फिर ऐसी पार्टी में रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता. उन्होंने यह भी कहा कि मेरे लिये भी पार्टी छोड़ने का निर्णय आसान नहीं था क्योंकि हमारी कई पीढ़ियों का इतिहास कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है.

त्रिपाठी परिवार का इतिहास

कांग्रेस पार्टी की सेवा करने वाले त्रिपाठी परिवार में ललितेश चौथी पीढ़ी के कांग्रेसी नेता रहे. उनके परदादा कमलापति त्रिपाठी, केंद्र में रेल मंत्री और यूपी में सीएम भी रह चुके हैं. कमलापति के बड़े बेटे लोकपति त्रिपाठी भी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं. लोकपति के बेटे राजेश पति यूपी में एमएलसी रहे. साल 2012 में राजेश के बेटे ललितेश मिर्जापुर से कांग्रेस विधायक भी चुने गये.

त्रिपाठी परिवार का नेहरू-गांधी परिवार के साथ बेहद आत्मीय संबंध भी रहा है. 70 के दशक में जब भी इंदिरा गांधी यूपी आयीं, उनके बगल वाली सीट में बैठने वाले कमलापति त्रिपाठी ही होते थे. उनकी मौत के बाद भी इस परिवार के साथ नेहरू गांधी परिवार की आत्मीयता बनी रही. त्रिपाठी परिवार को करीब से जानने वाले बताते हैं कि गांधी परिवार से ये सीधे संपर्क में थे. ऐसे में इनका पार्टी छोड़कर जाना पश्चिमी यूपी में कांग्रेस के लिये एक बड़ा झटका साबित होगी.

ललितेश ने जब पार्टी छोड़ी थी, तो गांधी परिवार के लिये यह हजम करना आसान नहीं था. इसके पीछे उनका वह आत्मीय संबंध ही था. आज भी गांधी परिवार के साथ इनका संपर्क नहीं टूटा है. राजेशपति और ललितेश पार्टी छोड़ने के समय तक भी गांधी परिवार के साथ सीधे संपर्क में रहते थे. यही वजह थी कि पार्टी छोड़ने के बावजूद लोग इस खबर पर यकीन नहीं कर पा रहे थे.

प्रसाद परिवार का इतिहास

पिछले साल के शुरुआत में यूपी कांग्रेस का एक और ब्राह्मण चेहरा, जितिन प्रसाद, कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गया था, जिन्हें बाद में योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट विस्तार में भी जगह दी गयी. बीजेपी की योजना थी कि उन्हें विधान परिषद के लिये चुना जाये. पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद कभी राहुल गांधी के बेहद करीबी सहयोगी हुआ करते थे.

उनके पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने साल 2000 में सोनिया गांधी के विरूद्ध पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा था. वे कांग्रेस के दो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सचिव भी रह चुके हैं. साल 1995 में वे UPCC अध्यक्ष के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. जितेंद्र के पिता ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस के एमएलसी रह चुके हैं.

जानकार बताते हैं कि सोनिया गांधी के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष के पद के लिये चुनाव में खड़े होेना और सोनिया को चुनौती देना कहीं न कहीं जितेंद्र प्रसाद और गांधी परिवार के बीच दूरियां पैदा करने का कारण बना. वरना जितेंद्र प्रसाद की राजीव गांधी के साथ अच्छी बॉन्डिंग थी. राजीव गांधी की मौत के बाद कांग्रेस हाई कमान ने उनकी पत्नी को टिकट दिया था लेकिन वह उपचुनाव वे हार गयी थीं.

साल 2004 में जितिन प्रसाद को टिकट मिला और वे चुनाव जीत गये. 2008 में UPA-1 सरकार में जितिन प्रसाद को केंद्रीय मंत्री बनने का सौभाग्य भी मिला. UPA-2 सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया. लेकिन इसके बाद 2014 से 19 के बीच लगातार तीन चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यूपी में वे पार्टी अध्यक्ष के संभावित नामों में से एक थे, लेकिन पार्टी ने यूपी कांग्रेस के मुखिया के तौर पर उनका चुनाव नहीं किया.

बहुगुणा परिवार का इतिहास

बीजेपी सरकार में सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने साल 2016 में कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया था. वे साल 2007 से 2012 तक UPCC की प्रमुख भी रह चुकी हैं.

रीता बहुगुणा के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा, अविभाज्य उत्तर प्रदेश के घाटी क्षेत्रों, जिसे आज उत्तराखंड कहा जाता है, से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं. हेमवंती नंदन बहुगुणा 1973 से 1975 तक अविभाज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.

1977 में, जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल हटा लिया और लोकसभा के लिए नए सिरे से चुनाव का आह्वान किया, तो हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ दी और बाबू जगजीवन राम और नंदिनी सत्पथी के साथ कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी (CFD) नामक एक नई पार्टी का गठन किया. हेमवती नंदन बहुगुणा ने 1984 में भारतीय लोक दल के टिकट पर कांग्रेस उम्मीदवार अमिताभ बच्चन के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे.

हेमवती नंदन के बेटे विजय बहुगुणा 2012 से 2014 तक उत्तराखंड के सीएम रहे. वे टिहरी गढ़वाल से दो बार सांसद भी रहे. उन्होंने 2016 में कांग्रेस छोड़ दी. बाद में उनकी बहन रीता बहुगुणा ने भी इसी साल पार्टी छोड़ दी. अब दोनों बीजेपी में हैं.
बहुगुणा परिवार के एक करीबी सूत्र ने बताया था कि रीता और विजय दोनों नाराज थे क्योंकि कांग्रेस पार्टी में उन्हें लगातार उपेक्षित किया जा रहा था.

पिछले दिनों रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे मयंक जोशी के लिये बीजेपी से लखनऊ कैंट टिकट मांगती दिखीं, जिसके बदले में उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा देने तक का फैसला कर लिया. हालांकि, इस पर ​बीजेपी अब तक मौन है और रीता बहुगुणा जोशी को इंतजार है कि पार्टी इस पर क्या निर्णय लेती है.

इसे भी पढ़ें:

यूपी के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण की ‘बल्ले-बल्ले’

एनडी तिवारी की विदाई

उत्तराखंड की पहाड़ियों के एक और वरिष्ठ नेता माने जाने वाले नारायण दत्त तिवारी अविभाज्य उत्तर प्रदेश में तीन बार यूपी के सीएम रह चुके थे और विभाजन के बाद एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भी अपनी सेवा दे चुके थे. 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले वे भाजपा में शामिल हो गए थे. तिवारी एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता थे, जिन्होंने आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी अपनी सेवायें दी थीं.


उनके बेटे रोहित शेखर को अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के शासन में यूपी परिवहन विभाग का सलाहकार नियुक्त किया गया था. हालांकि, 2017 के यूपी चुनाव से ठीक पहले तिवारी, उनकी पत्नी और बेटे भाजपा में शामिल हो गए.

क्या कहते हैं जानकार

बड़ी संख्या में कांग्रेस छोड़कर जाने वाले यूपी के ब्राह्मण चेहरों को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब से कांग्रेस ने OBCs पर फोकस करना शुरू कर दिया, उसके बाद से ही कांग्रेस पार्टी के कई पुराने और दिग्गज ब्राह्मण नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया.

एक वक्त था जब यूपी में कांग्रेस पार्टी के इन बड़े चेहरों की ब्राह्मण वोटर्स के बीच खासी पकड़ थी. तब कांग्रेस पार्टी, ब्राह्मणों की नंबर वन च्वॉइस होती थी, लेकिन अब ज्यादातर कांग्रेस पार्टी को ज्यादातर बड़े चेहरे छोड़कर जा चुके हैं. कांग्रेस छोड़ने वाले बड़े चेहरों में प्रमोद तिवारी, उनकी बेटी आराधना मिश्रा और राजेश मिश्रा का नाम भी शामिल है, जिनकी अपने अपने क्षेत्रों में अच्छी पकड़ रही है.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

two × four =

Related Articles

Back to top button