डोर टू डोर कैंपेन करने के लिए क्यों मजबूर है बीजेपी

पार्टी कार्यकर्ताओं को भी डोर टू डोर कैंपेन के जरिये मोटिवेट किया जाता है

उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में डोर टू डोर कैंपेन का अहम रोल रहा है. खासकर बीजेपी ने तो इसके लिये कोरोना नियमों को भी ताक पर रख दिया. केंद्रीय गृहमंत्री व बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह के डोर टू डोर कैंपेन की ही बात करें. कोरोना प्रोटोकॉल को धत्ता बताते हुये कभी उनके घर घर जाकर सलाइवा लगे पर्चे बांटने का वीडियो वायरल हुआ तो कभी तंग गलियों में कोरोना नियमों को ताक पर रखकर नियम से ज्यादा लोगों को साथ लेकर कैंपेन करने का. हालांकि, चुनाव आयोग उन्हें लेकर उठे सवालों पर हमेशा मौन ही रही. बावजूद इसके, ये सवाल बार बार जनता के जेहन में आता है कि आखिर बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी को डोर टू डोर कैंपेन की जरूरत क्यों है? या डोर टू डोर कैंपेन के लिये भाजपा मजबूर क्यों है?

सुषमाश्री

देश में बढ़ते कोरोना मामलों और 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर चुनावी रैलियों और रोड शो पर चुनाव आयोग की ओर से 31 जनवरी तक प्रतिबंध लगाया गया था. हालांकि, सोमवार को चुनाव आयोग की बैठक हुई, जिसमें इस बैन को 11 फरवरी तक बढ़ाने का फैसला लिया गया, लेकिन इन प्रतिबंधों के साथ थोड़ी राहत भी दी गई है. यानी प्रतिबंध के साथ-साथ रैली में अब 1000 लोग शामिल हो सकेंगे. हालांकि इस बीच सवाल ये उठता है कि आखिर बीजेपी जैसी देश की सबसे बड़ी पार्टी को इसकी क्या जरूरत पड़ जाती है कि वो डोर टू डोर कैंपेन करे. आइए, इस चुनावी गणित को आज समझने की कोशिश करते हैं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के जरिये.

कोरोना गाइडलाइन रही मजबूरी

द ​इंडियन पोस्ट के संपादक कुमार भवेश चंद्र कहते हैं कि अब तक बीजेपी समेत अन्य राजनीतिक दल भी डोर टू डोर कैंपेन करने को मजबूर थे. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह चुनाव आयोग की कोरोना नियमों को ध्यान में रखकर तैयार की गयी गाइडलाइंस ही रही है. हालांकि, आज सोमवार को आयोग की नई गाइडलाइन आ चुकी है. इसके बाद अब राजनीतिक दल 1000 लोगों के साथ चुनावी रैलियों को संबोधित कर सकेंगे. साथ ही इनडोर सभाओं में 500 लोगों के बैठने की अनुमति होगी. जबकि प्रत्याशी के साथ डोर टू डोर कैंपेन में 20 लोग जा सकेंगे.

उन्होंने आगे कहा कि इससे पहले कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए चुनाव आयोग ने पांचों राज्यों में 22 जनवरी तक रैलियों और रोड शो पर रोक लगाई थी. हालांकि, फिर इसे बढ़ा कर 31 जनवरी कर दिया गया था. 8 जनवरी को चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद 15 जनवरी को चुनाव आयोग ने बड़ी रैलियों और सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे 22 जनवरी को दोबारा बढ़ाया गया. 31 जनवरी को दोबारा बढ़ाकर इसे 11 फरवरी तक कर दिया गया है, लेकिन इसमें कुछ छूट भी बढ़ा दी गई है.

कोरोना नियमों को धत्ता बताकर अमित शाह सलाइवा लगाकर पर्चे बांटते हुये दिखे. इस​के बाद शाह का ये वीडियो वायरल हो गया.

रोक से पहले ही हो चुकी थी यूपी में रैलियां

हालांकि, अगर हम चुनावी रैलियों की बात करें तो चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही PM नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे की हर तीन में से दो एसेंबली सीटों पर रैली या रोड-शो कर चुके थे. प्रतिशत के लिहाज से समझें तो यह आंकड़ा 68% का होता है. अगर सीटों के हिसाब से बात करें तो यूपी की 403 सीटों में से 275 पर यह तिकड़ी पहले ही पहुंच चुकी थी.

पार्टी कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करना

कुमार भवेश कहते हैं, हालांकि बीजेपी के डोर टू डोर कैंपेन के पीछे बड़ी वजह एक और भी है. बीजेपी ने हमेशा से ही बूथ लेवल पर प्रचार का काम किया है. इससे जनता तक सीधे पहुंच बनाने में आसानी होती है. साथ ही, जनता का मन अपनी ओर खींचने में भी आसानी होती है. इसके अलावा पार्टी कार्यकर्ताओं को भी डोर टू डोर कैंपेन के जरिये मोटिवेट किया जाता है. बीजेपी के दिग्गज नेता जब घर घर जाकर खुद ही पर्ची बांटते हैं और लोगों से बीजेपी को वोट देने की अपील करते हैं, तो पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ता है कि जब इतने बड़े बड़े नेता गली गली घर घर घूमकर वोट मांग सकते हैं तो हम क्यों नहीं? इससे पार्टी के प्रति कार्यकर्ताओं के मन में लगाव और काम करने की प्रेरणा को बल मिलता है.

माहिलाओं तक अपनी पहुंच कैसे बना पायेंगे

वहीं, यूपी की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शंभु नाथ शुक्ला कहते हैं डोर टू डोर कैंपेन तो बहुत जरूरी है. बीजेपी ही क्यों, आज प्रियंका गांधी ने भी कांग्रेस की ओर से नोएडा पहुंचकर महिलाओं से मुलाकात की. उनके साथ बातचीत की और उनकी भी सुनी. मैं तो कहता हूं कि अखिलेश यादव को भी ऐसा करना चाहिये. मैं पूछता हूं कि अगर आप डोर टू डोर कैंपेन नहीं करेंगे तो भला आधी आबादी यानी माहिलाओं तक अपनी पहुंच कैसे बना पायेंगे? क्या आपको उनका वोट नहीं चाहिये? महिलाओं तक पहुंचने के लिये मेरे ख्याल से डोर टू डोर कैंपेन से बेहतर और कुछ भी नहीं होता. हां, अगर आप सवाल करें कि बीजेपी के इतने बड़े बड़े दिग्गजों को घर घर जाकर वोट मांगने की क्या जरूरत है तो मैं उस पर कहूंगा कि पिछले पांच साल में आपने क्या किया, इस बारे में आप जनता को कैसे बतायेंगे. अपना पुराना संकल्प पत्र लेकर जब आप जनता के बीच पहुंचेंगे और अपनी पांच साल की उपलब्धियां गिनवायेंगे, तभी तो वे ये समझ पायेंगी कि आखिर उन्हें आपको वोट क्यों देना है? ऐसा क्या आपने पांच सालों में कर दिया है? ऐसे में घर घर जाकर वोट मांगना एक बेहतरीन तरीका है जनता तक सीधी पहुंच बनाने के लिये.

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