UP Election 2022 समाजवादी पार्टी को क्यों जीत की उम्मीद

1989 से अब तक किसी भी पार्टी की लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनी

UP Election 2022 समाजवादी पार्टी : उत्तर प्रदेश के हाल के राजनीतिक इतिहास में जनता ने मुख्यमंत्री की गद्दी के लिए किसी को भी दूसरा मौका नहीं दिया है. चुनावी इतिहास देखें तो साल 1989 से अब तक किसी भी पार्टी की लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनी. इसके अलावा यूपी में कोई मुख्यमंत्री पाँच वर्षों का कार्यकाल पूरा करने बाद फिर से सत्ता की गद्दी पर आये. साल 1990 से शुरुआत के 15 वर्षों में यूपी की राजनीति बिखरी सी थी. लेकिन 2007 में यह समीकरण बदला जब बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) बहुमत के साथ सत्ता में आयी. साल 2012 में समाजवादी पार्टी (SP) को और फिर 2017 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को बहुत मिला .

Source: Social Media

इस साल 2022 में अखिलेश यादव की अगुआई में बढ़ रही सपा पार्टी, पिछड़े वर्गों और मुस्लिम वोट के आधार पर खेल बदल सकती है. हालांकि 2022 का चुनाव रण बीजेपी बनाम सपा दिख रहा है फिर भी बसपा और कांग्रेस अपनी पावर के लिए लड़ रहे है. लखनऊ यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के डिपार्टमेंट प्रमुख रह चुके प्रोफेसर एसके द्विवेदी का कहना है कि इस समय निश्चित रूप से लड़ाई सपा और बीजेपी की है. दूसरी पार्टियां भी प्रयास कर रही हैं पर उन्हें वोटरों से भाव नहीं मिलेगा. बसपा का वोट बैंक खत्म हो चुका है और पार्टी इस समय लोगों के राजनीतिक पलायन से जूंझ रही है. इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी का जमीनी स्तर से कोई जुड़ाव नहीं है. ऐसे में सपा और बीजेपी ही ऐसे दो हैं जिनसे कवायद लगाई जा सकती है.

समाजवादी पार्टी इस समय पूरी तरह से तैयार है. पार्टी ने चुनावी प्रचार अब डिजिटल माध्यम से शुरू किया है. चुनाव आयोग के कोविड दिशानिर्देशों के कारण पार्टी घर घर जाकर प्रचार कर रही है. इस बार सपा साल 2017 की तरह कमज़ोर नहीं है जिसमे सिर्फ 47 सीट ही मिले थे जबकि साल 2012 में 403 सीटों में कुल 224 मिली थी.

सपा पार्टी यादव परिवार विवाद से उबर चुकी है. उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव की लड़ाई पार्टी लम्बे समय तक पावर से बाहर रही. उस वक्त पार्टी अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव ने एक दर्शक की तरह चाचा-भतीजे की लड़ाई को देखा । पार्टी अध्यक्ष पद भी गँवाया। लेकिन इस समय अखिलेश यादव की लीडरशिप गतिमान है और उनके पिता साथ खड़े हैं. चाचा शिवपाल यादव दुखी माँ से साथ हैं।

छोटे भाई की पत्नी अपर्णा यादव और मुलायम सिंह की पत्नी के कुछ रिश्तेदार भाजपा में चले गए हैं, पर जनाधार उनके साथ नहीं है।

फिर से सत्ता पाने के लिए अखिलेश यादव ने पार्टी की जमकर प्रचार किया है. छोटे दलों से गठबंधन है जिसमें लोकदल और भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी प्रमुख हैं।

योगी सरकार के तीन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह के अलावा ग्यारह विधायक भाजपा छोड़कर सपा में आए हैं।

पार्टी हर जगह यात्रा, साइकिल रैली, ब्राह्मण सभा और पिछड़ी जाति सभा से लेकर अल्पसंख्यकों और दलितों तक पहुंच सभा और सम्मलेन किये हैं. कोविड 19 के दूसरे लहर से पहले अखिलेश ने 40 जिलों की यात्रा की और लहर के बाद चुनाव की तारीख तय होने पर अपने विजय रथ यात्रा में सारे क्षेत्र पूरे कर लिए.

लखनऊ के मंदिरों में जानें और परशुराम की मूर्ति स्थापित करके इन्होने यथा कथित सॉफ्ट हिंदुत्व का चोला भी पहन लिया है.

समाजवादी पार्टी अपने जातीय समीकरण सँभालते हुए यह आशा कर रही है कि अखिलेश यादव द्वारा किये गए चुनावी वादे खास तौर पर 300 यूनिट मुफ्त बिजली, कर्मचारियों को पुरानी पेंशन बहाली, किसानों को मुफ्त बिजली और छात्रों को लैपटॉप, सभी फसलों के लिए MSP, ब्याज मुफ्त कृषि लोन, इंस्युरेन्स और किसान पेंशन आदि मददगार साबित होंगें.

साल 2017 में सपा ने 47 सीटें जीती जबकि बीजेपी ने 312 सीट के साथ बहुत पायी. बीजेपी के वोट शेयर साल 2017 में 39.67% तक आ गयी थी जबकि सपा के पास कुल 21.82% ही वोट थे.

फ़िलहाल सपा का ग्राफ़ बध रहा है और भाजपा का घाट रहा है। सर्वे अभी क़रीब पाँच फ़ीसद का अंतर दिखा रहे हैं। देखते की बात यह है कि इस चुनाव में सपा इस गैप को भरकर बीजेपी के आगे कैसे जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button