मोदी सरकार द्वारा संसद में पारित कृषि विधेयकों का नफ़ा नुक़सान

किसानों और विपक्ष के विरोध का मतलब

मोदी सरकार के लाये किसानों से संबंधित 3 फार्म्स बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गये।

इसके बाद एनडीए में शामिल अकाली दल से मंत्री हरसिमरत कौर ने मंत्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिया।

उनका इस्तीफा धमाका करने के लिए था पर असर पिटपिटिया वाला रह गया।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में किसानों पर कोई काम नहीं हुआ, उसने अपने को अर्थव्यवस्था सुधार, अर्थव्यवस्था के छेदों को बन्द करने, विदेश नीति को प्रतिष्ठापूर्ण आवाज देने, प्रतिरक्षा तंत्र को किसी भी खतरे से निपटने लायक बनाने, आंतरिक सुरक्षा को छिद्र रहित करने और अवसंरचना को सुदृढ़ करने व उसके विस्तार को अपेक्षित गति देने में लगाया।

पर दूसरे कार्यकाल में बढ़े आत्मविश्वास के कारण कश्मीर को खून-खराबे और ऐतिहासिक अलगाववाद की यथस्थिति से उबार कर नये युग में लाने, नागरिकता कानून को सुधारने के बाद कोविड 19 पैनडेमिक का प्रबन्धन करने में अब तक 17 महीने का समय बिताया है।

इस दौरान चीन वाला नासूर फिर फदकने लगा तो कूटनीतिक मरहम-पट्टी के पहले उसमें नश्तर लगाकर चीन सहित पाकिस्तान, नेपाल और अन्य को स्पष्ट संदेश दे दिया कि सीमा में रहो, मोदी कहता है तो करता भी है।

मार्च- अप्रैल 2019 में चुनाव की गरमा-गरमी में राफेल को लेकर कांग्रेस की उडा़ई दुर्गन्ध के बीच किसानों से वादा किया था कि सत्ता में आये तो किसानों की आय दुगुनी करेंगे, शोषण से सुरक्षित करेंगे।

और अब वह समय आ गया है।

मोदी सरकार ने इस सप्ताह तीन बिल संसद में पारित कराये।

इनका उद्देश्य कि अन्नदाता किसान को वर्तमान निराशाजनक माहौल से निकालकर नये स्वस्थ माहौल में ले जाना है।

मूल उद्देश्य है किसानों को एकाधिकारी मार्केटिंग यानी केवल मण्डी परिषद की जगह बहुविकल्पीय मार्केटिंग सुविधा उपलब्ध कराना। किसान को मण्डी परिषद की जमीन्दारी से मुक्त कराते हुए मूल्यसमर्थन ढांचे के कमीशन एजेण्टों की धींगामुश्ती से मुक्त कराना।

कृपया इसे भी पढ़ें : https://mediaswaraj.com/decentralisation_panchaytiraj_unemployment/

अब तक ठगा रहता आया है किसान

जब आषाढ़ में पहली वर्षा के बादल आसमान में देख किसान हल उठाता है तो उसके पास पीढि़यों पुराना फसल चक्र का कैलेण्डर होता है।

नया लक्ष्य, नयी प्रेरणा नहीं होती।

बाजार से डुप्लीकेट बीज, खाद और कीटनाशक लेकर वह खेत में मौसम की मार खाने को खड़ा होता है।

यह भी पता नहीं कि लागत जो पहले दिन ही मिट्टी में फेंक रहा है, 10 से 12 हजार रुपये एकड़, उसका रिटर्न क्या मिलेगा?

सरकार के एमएसपी पर उसका धान या गेहूं बिकेगा या नहीं?

क्रय एजेन्सियां और क्रय एजेण्ट इतनी शर्तें और कटौतियों व फिजिकल तकलीफें उपस्थित कराते हैं कि मजबूर किसान 300 से 400 रुपये प्रति कुण्टल कम दाम पर आढ़तियों को अनाज बेचकर महीनों भुगतान का इंतजार करता है।

आलू, प्याज, टमाटर आदि का तो एमएसपी भी नहीं होता।

परिणामत: किसान ठगा सा रहता है और मुस्कराते हैं मण्डी संचालक, उनके आढ़तिये, क्रय एजेंसियों के सब एजेण्ट और लोकल ट्रेडर्स जो किसानों से कम दाम पर क्रय करके अनाज क्रय एजेन्सियों को बेचते हैं।

मोदी जमीनी नेता हैं और उन्हें जमीन की अन्धेरगर्दियों का पूरा पता है।

इसीलिए जिन 3 बिलों को संसद ने पारित किया है वे अपने प्रावधानों और उद्देश्यों में किसान और बाजार के संबन्धों में संतुलन का माहौल बनाने वाले प्रतीत होते है।

कम से कम सन् 2003 के एग्रोप्राॅडक्ट मार्केट सोसाइटी एक्ट से कई कदम आगे है क्योंकि यह किसानों को एकाधिकारी मंडी युग से निकालकर बहुविकल्पीय  विपणन युग में ला रहा है।

पूंजीविहीन किसान को सूदखोर के बजाय एग्रोप्रॉडक्ट बिजनेसमैन से जुड़ने का अवसर दे रहा है।

मण्डी की भौगोलिक सीमाओं से आजाद करा कर एक भारत एक मार्केट के युग मे ला रहा है।

नया ऐक्ट पूरे भारत में किसान को एक कोने से दूसरे कोने तक अपना उत्पाद बैरियर फ्री भेजने का अधिकार दे रहा है।

सीमांत किसान का सवाल

सवाल यह उठाया जा रहा है कि 2 हेक्टेअर का मालिक सीमांत किसान क्या करेगा?

इस सवाल का जवाब अभी प्रचलित मंडी ही है। तो मंडी तो नये ऐक्ट के बाद भी रहेगी और बड़े किसान भले ही एक भारत मंडी का प्रयोग करें, छोटे किसान को तो अन्न निर्यातक, प्रसंस्करणकर्ता या व्यापारी अथवा मण्डी का उपयोग करने के अवसर रहेंगे ही।

छोटे किसान उत्तर प्रदेश में आज भी इन अनौपचारिक साधनों का आश्रय मार्केटिंग के लिए प्रयोग करते है़ं।

कुल मिलाकर विरोध का कोई व्यावहारिक अनुभव का धरातल नहीं है।

कतिपय आशंकाओं और राजनैतिक लाभ पाने की गूढ़ उद्देश्य से विरोध करना एक दूसरी बात है।

देश में किसान परिवारों की संख्या 10.07 करोड़ है यानी देश की आबादी का 51 प्रतिशत हिस्सा किसान है।

राज्यों में किसानों की आय में गंभीर असमानता नजर आती है।

नाबार्ड रिपोर्ट के मुताबिक देश में किसानों की सबसे कम मासिक आय मध्य प्रदेश (7,919 रुपये), बिहार (7,175 रुपये), आंध्र प्रदेश (6,920 रुपये), झारखंड (6,991 रुपये), ओडिशा (7,731 रुपये), त्रिपुरा (7,592 रुपये), उत्तर प्रदेश (6,668 रुपये) और पश्चिम बंगाल (7,756 रुपये) है।

तुलनात्मक रूप से किसानों की ऊंची औसत मासिक आय पंजाब (23,133 रुपये), हरियाणा (18,496 रुपये) में दर्ज की गई।

ऐसी पृष्ठभूमि में मोदी सरकार का एग्री मार्केट फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एण्ड कॉमर्स (प्रमोशन ऐण्ड फैसिलिटेशन) बिल 2020, कान्ट्रैक्ट फार्मिंग द फार्मर (एम्पॉवरमेण्ट ऐण्ड प्रोटेक्शन) एग्रीमेण्ट आफ प्राइस एश्योरेन्स ऐण्ड फार्म सर्विसेज बिल 2020 तथा द इसेन्सियल कमोडिटीज (अमेन्डमेण्ट) बिल 2020 आया और संसद में पारित हुआ है।

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