किसानों के शिखर पुरुष क्रांतिकारी स्वामी सहजानंद सरस्वती

26 जून पुण्य तिथि पर विशेष

सुनीलम , समाजवादी नेता

सुनीलम

किसान आंदोलन के शिखर पुरुष ,समाज सुधारक सहजानंद जी की आज 70 वी पुण्यतिथि है।स्वामी सहजानंद का जन्म 22 फरवरी 1889 में गाजीपुर जिले के देवा गांव में हुआ था। वे महात्मा गांधी,सुभाष चंद्र बोस एवं विभिन्न समाजवादी नेताओं के साथ असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे । उन्होंने रोटी को भगवान और किसान को भगवान से बढ़कर बताया।उन्होंने नारा दिया था “जो अन्न वस्त्र उपजाएगा,अब सो कानून बनाएगा , ‘भारतवर्ष उसी का है, अब वही शासन चलाएगा’ ।उन्होंने जमीदारों साहूकारों एवं पोंगापंथियों के खिलाफ संघर्ष किया।
हजारीबाग केंद्रीय कारागार में उन्होंने “किसान क्या करें” पुस्तक लिखी। सहजानंद सरस्वती जी पर सैकड़ों किताबें लिखी गई है। आधुनिक भारत के निर्माता-‘ सहजानंद सरस्वती ‘ नामक किताब जिसे राघव शरण शर्मा द्वारा लिखी गई किताब को प्रमाणिक माना जाता है ।

सहजानंद

1927 में किसान सभा का गठन किया । उल्लेखनीय है कि किसान सभा का नेतृत्व आचार्य नरेंद्र देव, डॉ राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण ,पी सुंदरैया, ईएमएस नम्बूदरीपाद ,बंकिम मुखर्जी एवं एन जी रंगा सक्रिय थे। एक बार जब सहजानन्द जी गिरफ्तार हुए तब सुभाष चंद्र बोस जी ने पूरे देश में हड़ताल कराई थी ।1934 में जब बिहार में प्रलय कारी भूकंप आया तब उन्होंने राहत और पुनर्वास का कार्य किया।जमींदारों द्वारा विकट परिस्थिति में भी वसूली किए जाने के खिलाफ उन्होंने नारा दिया ‘कैसे लोगे मालगुजारी,लट्ठ हमारा जिंदाबाद।’
स्वामी जी का निधन 26 जून 1950 को हुआ उनके निधन पर रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था ,आज दलितों का सन्यासी चला गया । उनके जीते जी तो जमीदारी प्रथा का अंत नहीं हुआ परंतु आजादी के बाद जमीदारी प्रथा को कानून बनाकर खत्म किया गया ।
सहजानंद सरस्वती जी ने मेरा जीवन संघर्ष तथा अन्य किताबें लिखी थी। इतिहासकार राम शरणशर्मा जी ने सोवियत संघ की यात्रा के बाद लिखा था कि सोवियत संघ में महात्मा गांधी के बाद जिस नेता को सबसे ज्यादा सम्मान की नजर से देखा जाता था वह सहजानंद सरस्वती जी हैं ।

डाक टिकट सहजानंद

किसान कैसे लड़ते हैं? किसान सभा के संस्मरण ,स्वामी जी द्वारा संपादित पत्र , कार्यकलाप जैसी कई किताबें उन्होंने लिखीं । हुंकार पत्रिका भी निकाली। स्वामी सहजानंद सरस्वती की रचनावली भी अब उपलब्ध है।यह दुखद है कि उन्हें भूमिहारों के नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कई भूमिहारों के जातीय संगठनों द्वारा की जाती है। जबकि वह जाति,धर्म, लिंग, भाषा के ऊपर थे ।वह समाजवादी विचारक ही नहीं समाजवादी आचरण करने वाले किसान नेता थे ।

1936 से 1944 के बीच स्वामी जी ने बिहटा( पटना के नज़दीक) में स्थित सीताराम आश्रम में काफी लंबा समय गुजारा।देश के हर किसान को स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की जीवनी पढ़नी चाहिए तथा किसान नेताओं को उनके संगठन और संघर्ष शैली का अध्ययन करना चाहिए।किसान संघर्ष समिति, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, भूमि अधिकार आंदोलन एवं अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

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